नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को वन अतिक्रमण के बारे में जानकारी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। 19 अप्रैल को दिए आदेश के दायरे में संरक्षित, आरक्षित, डीम्ड वन, अभयारण्य और अन्य सभी प्रकार के वन शामिल हैं। उनसे मार्च 2024 तक वन क्षेत्र को जो हानि हुआ है, उसका विवरण भी प्रतिशत में देने को कहा है।
ट्रिब्यूनल ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अपने जवाब की एक प्रति पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भेजनी के लिए भी कहा है। इसके साथ ही इसकी एक प्रति ट्रिब्यूनल में भी जमा करनी होगी। अदालत ने पर्यावरण मंत्रालय के सचिव से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा दी गई सभी जानकारियों को एकत्र करने के लिए भी कहा है।
गौरतलब है कि यह मामला देशभर में वन भूमि पर बड़े पैमाने पर होते अतिक्रमण से जुड़ा है। पिछली कार्यवाही में ट्रिब्यूनल ने इस तथ्य पर गौर किया था कि असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर में अतिक्रमण के कारण वन क्षेत्र 56 फीसदी तक गिर गया है।
मछलियों में फॉर्मेल्डिहाइड के उपयोग को रोकने के लिए क्या की गई कार्रवाई, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने मांगी जानकारी
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 19 अप्रैल, 2024 को कामरूप के संबंध में एक हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कोर्ट के अनुसार इसमें मछलियों में फॉर्मेल्डिहाइड के उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अनुसार मत्स्य विभाग द्वारा की गई कार्रवाई का विवरण होना चाहिए।
गौरतलब है कि इस बारे में असम सरकार द्वारा नौ फरवरी, 2024 को एक और हलफनामा दायर किया था। इस हलफनामे में जानकारी दी गई थी कि प्रस्तावित दिशानिर्देशों (एसओपी) को आधिकारिक तौर पर मंजूरी दे दी गई है और उसे अधिसूचित कर दिया गया है। इसे 20 जनवरी, 2024 से लागू कर दिया गया है। इसका उद्देश्य सरकार द्वारा फार्मल्डिहाइड के उपयोग के मुद्दे को संबोधित करना है। इसके तहत एक राज्य स्तरीय टास्क फोर्स और जिला स्तरीय टास्क फोर्स का भी गठन किया गया है। इसका उद्देश्य सड़क या नदी द्वारा परिवहन के दौरान मछली को लंबे समय तक संरक्षित करने के लिए फॉर्मेल्डिहाइड के उपयोग को सीमित करना है।
उच्च न्यायालय ने इस हलफनामे को तीन सप्ताह के भीतर जमा करने के लिए कहा है। इसमें 20 जनवरी को जारी एसओपी के तहत सौंपी गई एजेंसियों के परीक्षण परिणाम होने चाहिए। साथ ही इसमें मुद्दे से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य और आंकड़े भी दिए जाने चाहिए। इस मामले में अगली सुनवाई 13 मई 2024 को होगी। यह निर्देश गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विजय बिश्नोई और न्यायमूर्ति सुमन श्याम ने जारी किए हैं।
बता दें कि इस मामले में एनजीटी की पूर्वी बेंच ने 10 अप्रैल, 2024 को असम के सरकारी अधिकारियों को मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया था।
मामले में याचिकाकर्ता का कहना है कि एसओपी में कई खामियां हैं। उनके मुताबिक 2023 में राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला, मत्स्य पालन कॉलेज, गौहाटी विश्वविद्यालय, नागांव कॉलेज, डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय और जिला मत्स्य विभाग अधिकारियों जैसी विभिन्न एजेंसियों द्वारा किए गए निरीक्षणों में भिन्नता है।
याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि जहां अन्य एजेंसियों को दूसरे राज्यों से आयात की गई मछलियों में फॉर्मेल्डिहाइड मिला है, वहीं मत्स्य विभाग ने अपने सर्वेक्षण में कहा है कि सभी नमूने ठीक थे। ऐसे में याचिकाकर्ता का कहना है कि केवल राज्य ही नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र एजेंसी से उनकी रिपोर्ट लेना महत्वपूर्ण है।