वन्य जीव एवं जैव विविधता

कुलडीहा वन्यजीव अभयारण्य में खनन, एनजीटी ने तलब की रिपोर्ट

मोहाली में फ्लैटों के निर्माण के दौरान पर्यावरण मंजूरी से जुड़ी शर्तों की अनदेखी के मामले की जांच के आदेश

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), 14 अगस्त, 2023 को दिए अपने आदेश में कहा है कि कुलडीहा वन्यजीव अभयारण्य के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र में होने वाली खनन गतिविधियों की शिकायत पर विचार करने की जरूरत है। मामला ओडिशा के बालासोर जिले का है।

इस मामले में ट्रिब्यूनल ने ओडिशा सरकार, ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए), सहित अन्य संस्थाओं को नोटिस भेजने का निर्देश दिया है।

मामले में आवेदक ग्रामीण सामाजिक अधिकारिता संगठन (आरओएसई) ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 36-ए के तहत 20 जनवरी, 2023 को जारी एक अधिसूचना के बारे में चिंता जताई है। यह सिमलीपाल-हदगढ़-कुलडीहा कंजर्वेशन रिजर्व के पास 97 रेत सैरात स्रोतों के पट्टे से जुड़ी है।

आरोप है कि जिस क्षेत्र को पट्टे पर दिया गया है उक्त रेत सैरात स्रोत क्षेत्र घने जंगलों में है। इस क्षेत्र को आरक्षित वन क्षेत्र के रूप में नामित करने पर विचार किया जा रहा है। इसे विशेष रूप से सुखुआपाटा आरक्षित वन के रूप में जाना जाता है।

ऐसे में केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना कुलडीहा वन्यजीव अभयारण्य के इको-सेंसिटिव जोन में की गई खनन गतिविधियां अवैध हैं। जो वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 का भी उल्लंघन करती हैं।

इसके अलावा, यदि ऐसी खनन गतिविधियों को बेरोकटोक जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो इससे क्षेत्र में पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। साथ ही इसकी वजह से वन्यजीवन और बहुमूल्य जैव विविधता को गंभीर नुकसान होने की आशंका है।

यह भी आरोप है कि यह अधिसूचना सुप्रीम कोर्ट के फैसले (बिनय कुमार दलेई और अन्य बनाम ओडिशा राज्य) के खिलाफ है, जहां शीर्ष अदालत ने ओडिशा को स्थाई समिति द्वारा अनुशंसित "व्यापक वन्यजीव प्रबंधन योजना" को लागू करने का निर्देश दिया था। पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र में किसी भी खनन को अनुमति देने से पहले एनबीडब्ल्यूएल की स्थाई समिति द्वारा दिए सुझावों के अनुसार योजना बनाना अनिवार्य है।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को अधिनियम की धारा 36ए के तहत पारंपरिक हाथी गलियारे को संरक्षण रिजर्व के रूप में नामित करने की प्रक्रिया को तुरंत पूरा करने का भी निर्देश दिया है। ऐसा होने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक खनन कार्य की अनुमति दी जाएगी।

क्या औरंगाबाद के पोइवान वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना के लिए तय नियमों का किया गया है पालन: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) जानना चाहती है कि क्या औरंगाबाद के पोइवान में वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना के लिए नियमों को ध्यान में रखा गया था। इस मामले में एनजीटी की पूर्वी पीठ ने 14 अगस्त, 2023 को अधिकारियों को जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है।

आवेदकों की शिकायत है कि उक्त वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट उनके गांव के पास है, जहां घनी बसावट है। इतना ही नहीं टेकारी नदी उक्त यूनिट से केवल 50 से 100 मीटर के दायरे में बहती है।

जानकारी दी गई है कि कूड़े को गांव से करीब 300 मीटर की दूरी पर डंप किया जाता है। यहां पूरे जिले का कूड़ा जमा होता है और जिला प्रशासन द्वारा कूड़ा प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की गई है।

निर्माण के दौरान पर्यावरण मंजूरी से जुड़ी शर्तों की अनदेखी के मामले में एनजीटी ने दिए जांच के आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 17 अगस्त, 2023 को तीन सदस्यीय समिति को निर्देश दिया है कि वो फ्लैटों के निर्माण के दौरान पर्यावरण मंजूरी से जुड़ी शर्तों की अनदेखी के मामले की जांच करे। इन फ्लैटों का निर्माण ग्रेटर मोहाली एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा किया गया है। इस मामले में पंजाब राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मुख्य नोडल एजेंसी होगी। कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई 8 नवंबर 2023 को करेगा।

गौरतलब है कि आवेदक ने ग्रेटर मोहाली क्षेत्र विकास प्राधिकरण को 6360 फ्लैटों के लिए दी गई पर्यावरणीय मंजूरी पर चिंता जताई थी। यह फ्लैट 117.118 एकड़ क्षेत्र में फैले हैं। इनमें 1080 टाइप 1, 2520 टाइप II और 2760 टाइप III फ्लैट हैं। यह मंजूरी 14 मार्च, 2013 को राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण द्वारा इस शर्त पर दी गई थी कि इस परियोजना को पांच साल की समय सीमा के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। 

हालांकि, परियोजना प्रस्तावक पांच साल की समय सीमा के भीतर इस परियोजना को पूरा करने में विफल रहा है। यह भी आरोप है कि परियोजना प्रस्तावक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना के साथ-साथ पर्याप्त पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने, वर्षा जल संचयन प्रणाली को लागू करने और ठोस अपशिष्ट को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने से संबंधित पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) की शर्तों का पालन करने में असफल रहा है।