वन्य जीव एवं जैव विविधता

निमेसुलाइड पर क्यों नहीं लगाया प्रतिबंध, दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र से पूछा सवाल

दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत सरकार से दवा 'निमेसुलाइड' पर प्रतिबंध न लगाने के लिए स्पष्टीकरण मांगा है

Susan Chacko, Lalit Maurya

एक सितंबर, 2023 को जस्टिस सतीश चंदर शर्मा और संजीव नरूला की अगुवाई में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत सरकार से दवा 'निमेसुलाइड' पर प्रतिबंध न लगाने के लिए स्पष्टीकरण मांगा है। मामले पर विचार-विमर्श के बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई 20 सितंबर, 2023 को करने का फैसला किया है।

आवेदक गौरव कुमार बंसल ने बताया कि पशु चिकित्सा की देखभाल में उपयोग की जाने वाली चार नॉन-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं (एनएसएआईडी) जो गिद्धों के लिए हानिकारक हैं, उनमें से तीन दवाओं एसेलोफेनिक, केटोप्रोफेन और डायक्लोफेनाक पर पहले ही प्रतिबंध लगाया जा चुका है। जबकि चौथी दवा  निमेसुलाइड अभी भी बाजार में बेची जा रही है।

पशु कल्याण से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है दिल्ली सरकार: उच्च न्यायालय

दिल्ली उच्च न्यायालय, छह सितंबर, 2023 को कहा है कि दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) जानवरों में कैनाइन डिस्टेंपर वायरस और पार्वोवायरस से पैदा होने वाले खतरों को लेकर जागरूक है। यही वजह है कि वो इसकी रोकथाम के लिए सक्रिय रूप से जानवरों का टीकाकरण कर रही है।

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि किस टीके को प्राथमिकता देनी है, यह तय करना उन पशु चिकित्सा विशेषज्ञों की जिम्मेवारी होनी चाहिए जिनके पास इस क्षेत्र में विशेषज्ञता है।

जानवरों के कल्याण को प्रभावित करने वाले किसी भी वायरस से निपटने की तात्कालिकता का निर्धारण करने के लिए विशेषज्ञों के बीच विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है। ऐसे में अदालत उपयोगकर्ताओं को मुफ्त में विशिष्ट टीकाकरण उपलब्ध कराने का आदेश नहीं दे सकती, क्योंकि यह उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

साथ ही कोर्ट ने पशुओं के 24x7 एम्बुलेंस सेवाएं, मोटरसाइकिल पर पैरा-पशु चिकित्सक, स्कूल के पाठ्यक्रम में बदलाव और पशु कल्याण के लिए एक विशेष कोष स्थापित करने जैसे कार्यों के लिए आदेश (परमादेश रिट) जारी करने से भी इनकार कर दिया है। इन कार्रवाइयों में बजट आबंटन, निर्माण सुविधाएं, कर्मचारियों को काम पर रखना और अन्य संसाधन जैसे विभिन्न जटिल घटक शामिल होते हैं। आमतौर पर, यह सरकारी नीतियां से जुड़े मुद्दे हैं। इसलिए अदालत का मानना है कि कोर्ट को इसपर आदेश देने के बजाय सरकारी अधिकारियों को इन मुद्दों को हल करना चाहिए।

याचिकाकर्ता ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जरिए जानकारी दी है कि उसने 2019 में कैनाइन डिस्टेंपर वायरस की वजह से अपने पालतू कुत्ते को खो दिया था। उन्होंने दावा किया कि उनके कुत्ते का इलाज करने वाले पशुचिकित्सक ने समय पर वायरस का इलाज नहीं किया था। याचिकाकर्ता तब और भी परेशान हो गए जब उन्हें पता चला कि दिल्ली में जानवरों के अंतिम संस्कार के लिए कोई विशिष्ट स्थान नहीं है।

उनका कहना है कि कैनाइन डीएचपीपीआई वैक्सीन (डिस्टेंपर कंबाइंड 9-इन-1 वैक्सीन) जो कई बीमारियों के इलाज के लिए दी जाती है, उस जैसे महत्वपूर्ण टीके की कमी, दिल्ली की पशु स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के बुनियादी ढांचे में भारी कमी को दर्शाती है। आवेदक ने यह भी जानकारी दी है कि उन्होंने वैक्सीन की उपलब्धता और पशु चिकित्सालयों में सुधार के लिए दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी), दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) से अनुरोध किया था, लेकिन उनकी दलीलों को अनसुना कर दिया गया।

बंदरों और आवारा कुत्तों की समस्या पर हिमाचल प्रदेश को सलाह दे भारतीय पशु कल्याण बोर्ड: उच्च न्यायालय

31 अगस्त, 2023 को, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने भारतीय पशु कल्याण बोर्ड जो मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की देखरेख करता है, उसे हिमाचल प्रदेश को बंदर और आवारा कुत्तों की समस्या से निपटने के लिए सलाह देने का आदेश दिया है। राज्य में यह समस्या काफी समय बनी हुई है जो लोगों के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है।

महाधिवक्ता ने आश्वासन दिया है कि राज्य सरकार और शिमला नगर निगम, पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय से इस बारे में सलाह लेंगें। कृषि विश्वविद्यालय में पशु चिकित्सा संबंधी ब्रांच है, जो बंदरों और आवारा कुत्तों की समस्याओं से निपटने में मदद कर सकती है। उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि शिमला नगर निगम की रिपोर्ट मामले से जुड़े अन्य सभी वकीलों के साथ साझा की जानी चाहिए।