वन्य जीव एवं जैव विविधता

विलुप्ति की कगार पर पहुंचे अंडमान के मायावी डुगोंगों को किया जा सकता है फिर से बहाल: अध्ययन

अध्ययन के मुताबिक, भारतीय समुद्र में डुगोंग की संख्या 250 है, हालांकि अंडमान द्वीप समूह में इनके ज्ञात रिकॉर्ड हैं, लेकिन उन्हें वहां बहुत कम देखा जाता है।

Dayanidhi

भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के वैज्ञानिकों द्वारा डुगोंग पर निगरानी रखने के लिए एक सिटीजन साइंस नेटवर्क बनाया है। इस नेटवर्क के माध्यम से इस पर पांच सालों तक अंडमान द्वीप समूह के पानी में निगरानी रखी गई और पाया कि यहां डुगोंग पहले की तुलना में अधिक आम हैं।

मछुआरों, गोताखोरों, भारतीय रक्षा कर्मियों और वन विभाग सहित संरक्षणकर्ताओं के नेटवर्क ने निगरानी अध्ययन के हिस्से के रूप में, 2017 से 2022 के बीच अंडमान द्वीप समूह के आसपास के पानी में डुगोंग के झुंडों का अवलोकन किया।

शोधकर्ताओं ने बताया कि, सिटीजन साइंस नेटवर्क में शुरुआत में, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के वन विभाग के साथ शुरुआत की गई और फिर मत्स्य पालन, शिक्षा, जनजातीय कल्याण, तटरक्षक बल, नौसेना, समुद्री पुलिस इत्यादि जैसे अन्य संबंधित विभागों को इसमें शामिल किया गया।

अध्ययन के मुताबिक, सिटीजन साइंस नेटवर्क का एक अहम फायदा यह है कि स्थानीय समुदायों के पास अक्सर अध्ययन प्रणाली का ज्ञान और जानकारी होती है, जिसके बारे में उस क्षेत्र में आने वाले शोधकर्ताओं को जानकारी नहीं होती है। इसके अतिरिक्त, सिटीजन साइंस नेटवर्क विकसित करने और आंकड़े एकत्र करने की प्रक्रिया संरक्षण के बारे में जागरूकता में सुधार कर सकती है। 

डुगोंग सिरेनिया की केवल चार जीवित प्रजातियों में से एक है, समुद्री स्तनधारियों का एक विविध समूह जिसमें मैनेटीस शामिल हैं और ये भारत-प्रशांत क्षेत्र में कम से कम 39 देशों के तटीय जल में पाए जाते हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट के अनुसार डुगोंग को खतरे वाली प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है

अन्य क्षेत्रों में जहां डुगोंग पाया जाता है, वहां इसकी आबादी कम है, भारतीय समुद्र में इनकी संख्या 250 है। हालांकि अंडमान द्वीप समूह में डुगोंग के ज्ञात रिकॉर्ड हैं, लेकिन उन्हें वहां बहुत कम देखा जाता है।

मायावी डुगोंग पर चरम मौसम और मानवीय गतिविधियों का असर 

डुगोंग गर्म उथले तटीय जल में पाए जाने वाले समुद्री घास के मैदानों में रहते हैं, जो उनका एकमात्र भोजन स्रोत हैं। वे अक्सर झुंडों में पाए जाते हैं जिनका आकार भोजन की उपलब्धता के आधार पर कुछ डुगोंग से लेकर सैकड़ों तक होता है। जबकि बड़े झुंड और आबादी ऑस्ट्रेलिया के तटों और अरब की खाड़ी में आम हैं, वे भारतीय समुद्र में शायद ही कभी देखे जाते हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की 2016 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि सभी भारतीय तटीय जल में डुगोंग की कुल आबादी लगभग 200 की थी।

इस अध्ययन में, मछुआरों ने 40 से 50 साल पहले के झुंडों को देखे जाने की जानकारी दी थी, जिनका आकार 15 से  20 का था और इस अध्ययन में एक शोधकर्ता का साक्षात्कार लिया गया था जिसमें बताया गया था कि 1990 के दशक में अंडमान द्वीप के कुछ हिस्सों में आमतौर पर लगभग 10 डुगोंग के झुंड देखे जाते थे।

हालांकि, समुद्री घास के मैदानों पर चरम मौसम की घटनाओं और मानवीय गतिविधियों का भारी असर देखा जा रहा है। ड्रेजिंग, ट्रॉलिंग और अपवाह इन पारिस्थितिकी तंत्रों को बाधित कर सकते हैं। 2004 में आई सुनामी ने अंडमान द्वीप समूह के हिस्से, लिटिल अंडमान के आसपास समुद्री घास के मैदानों को इस हद तक नष्ट कर दिया कि डुगोंग को स्थानीय रूप से विलुप्त माना जाने लगा।

हाल के निष्कर्षों से पता चलता है कि अंडमान द्वीप समूह में डुगोंग आबादी ठीक हो रही है। डब्ल्यूआईआई के शोधकर्ता के अनुसार, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में छोटे आकार के समुद्री घास के मैदानों के कारण बड़े आकार के डुगोंग झुंडों की उम्मीद नहीं की जा सकती है। हालांकि, अंडमान के पानी में एक झुंड में लगभग 11 डुगोंगों को देखा जाना अपने आप में आश्चर्यजनक है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, 2017 से 2022 के बीच 63 डुगोंग झुंड देखे जाने की जानकारी दी गई, जिनका आकार तीन से 13 डुगोंग तक था, जो हाल के दशकों में किसी भी रिपोर्ट से काफी अधिक है। इसके अलावा, देखे गए झुंडों में से आधे से अधिक में बच्चे या बछड़े देखे गए।

हालांकि, ये परिणाम आवश्यक रूप से डुगोंग संरक्षण प्रयासों में महत्वपूर्ण या लंबे समय में सुधार की ओर इशारा नहीं दे सकते हैं। शोध के मुताबिक, डुगोंग धीमी गति से प्रजनन करने वाले जानवर हैं और भारत में गंभीर रूप से खतरे में हैं,  इसलिए, आबादी के आकार में किसी भी तरह के सुधार में समय लग सकता है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि, अरब की खाड़ी के पानी और ऑस्ट्रेलिया की तुलना में डुगोंग की यह संख्या बेहद कम है। मां और बच्चे की आबादी वाले झुंडों का अपेक्षाकृत अधिक देखा जाना यह संकेत नहीं देता है कि आबादी स्थिर है या ठीक हो रही है। बात सिर्फ इतनी है कि तकनीकी और समग्र जागरूकता के कारण, हाल के वर्षों में रिपोर्टिंग में वृद्धि हुई है।

विलुप्ति झेल रहे डुगोंग को बचाने के लिए भविष्य की योजनाएं

शोधकर्ताओं ने बताया कि, यह अध्ययन अंडमान द्वीप समूह में डुगोंग को फिर से बहाल करने वाले कार्यक्रम का एक हिस्सा है। पिछले सात वर्षों से चल रहा पहला चरण इस वर्ष समाप्त हो रहा है। हालांकि, परिणाम हासिल करने के लिए इस कार्यक्रम को अगले 15 वर्षों तक जारी रखना चाहिए क्योंकि यह प्रजाति धीमी गति से प्रजनन करती है और इसे ठीक होने में समय लगता है। इसके अलावा, हितधारकों, विशेषकर स्थानीय समुदायों के साथ निरंतर संपर्क बहुत महत्वपूर्ण है, अन्यथा, पहले के हमारे सभी प्रयास व्यर्थ हो जाएंगे।