वन्य जीव एवं जैव विविधता

त्रिपुरा से रिलायंस के वनतारा चिड़ियाघर ले जाए जा रहे थे हाथी, स्थानांतरण पर उठे सवाल

एक हथिनी और उसके बच्चे को त्रिपुरा से जामनगर के रिलायंस समूह द्वारा संचालित चिड़ियाघर में ले जाते समय वाहन को असम में रोक दिया गया था

Anupam Chakravartty

असम के एक वन्यजीव कार्यकर्ता ने एक पत्र में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) के फैसलों में पारदर्शिता की कमी पर चिंता जताई है। उन्होंने यह पत्र उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) दीपक वर्मा को लिखा है। 

मामला पूर्वोत्तर भारत से हाथियों को रिलायंस समूह के चिड़ियाघर वनतारा में स्थानांतरित करने से जुड़ा है। यह चिड़ियाघर गुजरात के जामनगर में स्थित है। कार्यकर्ता की यह चिंता डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट से उपजी हैं, जिसमें एक मादा हथिनी हाथी और उसके बच्चे को त्रिपुरा से वनतारा में स्थानांतरित करने के बारे में जानकारी दी गई है।

गौरतलब है कि डाउन टू अर्थ ने पांच मई 2024 को छपी अपनी एक रिपोर्ट में जानकारी दी है कि प्रतिमा नाम की एक हथिनी और उसके बच्चे को वनतारा ले जाते समय असम वन विभाग के अधिकारियों द्वारा रास्ते में रोक दिया गया था। यह हथिनी घायल बताई गई  थी। ऐसा लगता है कि इनके स्थानांतरण के दौरान कई नियमों को तोड़ा गया। त्रिपुरा वन विभाग ने भी स्वीकार किया कि स्थानांतरण के दौरान प्रतिमा गर्भवती थी, जबकि उसकी कागजी कार्रवाई की जांच की जा रही है।

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के पास बोकाखाट के वन्यजीव कार्यकर्ता रोहित चौधरी ने प्रतिमा और उसके बछड़े को गुजरात स्थानांतरित करने के फैसले पर चिंता जताई। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद उन्होंने उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) दीपक वर्मा को लिखे एक पत्र में अपनी चिंताओं से अवगत कराया है। बता दें कि इन्हें वनतारा स्थानांतरित करने का फैसला उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने लिया था।

पत्र में उन्होंने लिखा है कि, "मैं गहरी चिंता के साथ लिख रहा हूं कि मौजूदा हाथियों का स्थानांतरण, हालांकि अच्छे इरादों और तात्कालिकता के साथ किया गया। लेकिन यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया और इस दौरान पूर्वोत्तर में देखभाल के लिए स्थापित स्थानीय नेटवर्क की अनदेखी की गई। एचपीसी ने उपचार के लिए आस-पास के विकल्पों की खोज नहीं की"।

उनके मुताबिक एचपीसी ने उपचार के लिए आस-पास के विकल्पों की खोज नहीं की, नतीजन एक मादा हथिनी जो अपने बच्चे की देखभाल कर रही थी। बच्चा भी दूध के लिए अपनी मां पर निर्भर था। ऐसे में यह हथिनी इतनी लम्बी यात्रा करने में असमर्थ थी, इसके बावजूद उसे भीषण गर्मी के दौरान 3,000 किलोमीटर की कठिन यात्रा करनी पड़ी। हालांकि इससे बचा जा सकता था।

उनका आरोप है कि यह स्थानांतरण 1972 के वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम और कैप्टिव हाथी (स्थानांतरण और परिवहन) नियम, 2024 का उल्लंघन है। पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) की भारतीय शाखा और स्थानीय पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि प्रतिमा और उसके बछड़े को त्रिपुरा के उनाकोटी जिले के एक हिस्से कैलाशहर में गैरकानूनी तरीके से रखा गया था।

हाथियों को स्थानांतरित करने का नियम कहता है कि केवल वैध स्वामित्व प्रमाण पत्र और आनुवंशिक रिकॉर्ड वाले हाथियों को ही स्थानांतरित किया जा सकता है। ऐसे में चौधरी ने प्रतिमा और उसके बछड़े के स्थानांतरण को गलत बताया, क्योंकि उनके पास स्वामित्व के कागजात या डीएनए मैपिंग नहीं थी। उनका कहना है कि हाथियों के अवैध व्यापार पर अंकुश लगाने के लिए इन वैध दस्तावेजों का होना महत्वपूर्ण है और केवल एचपीसी के आदेश पर इस नियम की अनदेखी नहीं की जा सकती।

उनका आगे कहना है कि वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम की धारा 50 के तहत एक अवैध हाथी संरक्षक जानवर को ऐसे ही या उपहार के रूप में नहीं दे सकता। इनके कानूनी हस्तांतरण के मामले में हाथी की जब्ती, और संभालने की कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए। वन्यजीव कार्यकर्ता ने सवाल किया है कि त्रिपुरा के मुख्य वन्यजीव वार्डन ने किस आधार पर यह निर्णय लिया कि जामनगर, जो 3,000 किलोमीटर दूर है, वहीं हाथी का इलाज हो सकता है।

उच्चाधिकार प्राप्त समिति को लिखे अपने पत्र में उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई है कि हाथियों को इलाज के नाम पर पूर्वोत्तर में उनके प्राकृतिक आवास से हमेशा के लिए दूर किया जा सकता है।

पत्र में कहा गया है कि हाथियों को बचाने के लिए इस समिति को दी गई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को इसके निर्णयों और कार्रवाई में गोपनीयता के कारण गलत समझा जा रहा है। इससे क्षेत्र में डर पैदा हो गया है कि आखिरकार, पूर्वोत्तर के सभी हाथियों को जामनगर ले जाया जाएगा।

चौधरी का कहना है कि जामनगर में अगले स्थानांतरण के लिए 25 से 30 हाथियों को तैयार किया जा रहा है। ऐसे में उन्होंने अनुरोध किया है कि एचपीसी को अपनी कार्यवाही सार्वजनिक करनी चाहिए। साथ ही स्थानांतरण के अनुरोधों को पारदर्शी ढंग से निपटाना चाहिए। उन्होंने एचपीसी से पूर्वोत्तर भारत के विशेषज्ञों को शामिल करने और क्षेत्र में बचाव और पुनर्वास केंद्रों की पहचान करने का भी अनुरोध किया है। साथ ही उन्होंने एचपीसी से यह भी आग्रह किया है कि नियम के तौर पर हाथियों को उनके आवासों से दूर न किया जाए।

इस बीच, त्रिपुरा वन्यजीव अधिकारियों ने डाउन टू अर्थ को जानकारी दी है कि केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के दिशानिर्देश गर्भवती हाथियों को स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं देते हैं।

त्रिपुरा के मुख्य वन्यजीव वार्डन (सीडब्ल्यूडब्ल्यू) आरके श्यामल का कहना है कि, वनतारा के पशु चिकित्सकों ने पुष्टि की है कि घायल हथिनी गर्भवती थी। हालांकि, हमारे पास यहां उसकी देखभाल के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। इसलिए, एचपीसी के आदेशों के बाद, हाथियों को गुजरात के वनतारा भेज दिया गया।"

श्यामल, जो एचपीसी के सदस्य भी हैं, उनका आगे कहना है कि वन विभाग प्रतिमा और उसके बच्चे के स्वामित्व के कागजात की जांच कर रहा है।

श्यामल ने आगे जानकारी दी है कि इन हाथियों के स्वामित्व प्रमाण पत्र थे, जो शायद समाप्त हो चुके हैं। हमारा विभाग कागजात की जांच कर रहा है। इन हाथियों में माइक्रोचिप लगाई गई है और सत्यापन के लिए, हमने उनके डीएनए के नमूने देहरादून के भारतीय वन्यजीव संस्थान को भेज दिए हैं।

यह हाथी उनाकोटी में कैलाशहर के जहरुद्दीन के थे। उन्होंने त्रिपुरा और मिजोरम जैसे आसपास के राज्यों में लकड़ी की अवैध कटाई के लिए प्रतिमा का इस्तेमाल किया।

कैसे शुरू हुआ ये सब

कैलाशहर स्थित गो ग्रीन एंड हेल्प स्ट्रे एनिमल ऑर्गनाइजेशन की महासचिव कुंतला सिन्हा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि, "जहरुद्दीन को कैंसर था ऐसे में वो हाथियों की देखभाल नहीं कर सकते थे, इसलिए उनका बेटा अकबरुद्दीन इन हाथियों का मालिक बन गया। हमने पाया कि इन हाथियों का उपयोग तब भी किया जा रहा था, जब उनके महावत का लाइसेंस समाप्त हो गया था।

यह संगठन जानवरों को बचाने में मदद करता है। सिन्हा को एक स्थानीय व्यक्ति से एक वीडियो मिला था जिसमें दिख रहा है कि प्रतिमा और उसके बछड़े को गंभीर चोट लगी है। उन्होंने त्रिपुरा के वन और पशु संसाधन विकास विभागों से संपर्क किया और उन्हें प्रतिमा और उसके बछड़े की दुर्दशा के बारे में बताया।

सिन्हा ने कहा, "इन सरकारी विभागों ने मेरे बार-बार किए अनुरोधों को नजरअंदाज कर दिया। 14 अप्रैल को, मैंने सोशल मीडिया पर एक लाइव प्रसारण किया, जिसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स सहित कई लोगों ने साझा किया। मैं वनतारा के इंस्टाग्राम पेज को फॉलो कर रही हूं और मुझे उनका काम पसंद आया। मैंने उन्हें संदेश भेजा और बाद में ईमेल के माध्यम से पत्र-व्यवहार किया, 17 अप्रैल तक वनतारा से पशु चिकित्सकों की एक टीम कैलाशहर में थी।''

सिन्हा के मुताबिक उन्होंने इस वीडियो के साथ लोकसभा सदस्य मेनका गांधी से भी संपर्क किया था। गांधी ने वन विभाग को हाथी को तुरंत पकड़ने के लिए कहा। हालांकि, त्रिपुरा उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ही वन विभाग ने इस मामले में कार्रवाई की। मालिकों ने बचाव का विरोध किया। यह केवल वन अधिकारियों और स्थानीय पुलिस की भागीदारी का ही नतीजा था जो हाथी को बचाया जा सका।

अगरतला की एक वकील परमिता सेन, जिन्होंने इस हथिनी को बचाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था, उन्होंने डाउन टू अर्थ को जानकारी दी कि हथिनी बैठ या सो नहीं सकती। पशु चिकित्सकों का कहना है कि वह अपने पैरों की गंभीर स्थिति के कारण पिछले एक साल से नहीं सोई है। हमारे राज्य में वह सपोर्ट सिस्टम नहीं है। वह गर्भवती भी थी, इसलिए, उसके तत्काल बचाव की आवश्यकता थी, अन्यथा उसका भ्रूण भी खतरे में पड़ जाता।

वनतारा की टीम ने हथिनी का 10 दिनों तक इलाज किया ताकि उसे स्थानांतरित किया जा सके। पशु चिकित्सा स्टाफ ने कैलाशहर में मेरे घर के पास प्रतिमा की मदद करने के लिए कड़ी मेहनत की। हमें अपडेट मिल रहे हैं कि हथिनी और उसका बच्चा क्वारंटाइन में हैं और उन्हें वो सारी देखभाल मिल रही है, जिनकी उन्हें जरूरत है।

हालांकि सिन्हा के मुताबिक, केवल प्रतिमा और उसका बच्चा ही नहीं है, जिनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और उन्हें अवैध रूप से कैलाशहर में रखा गया। प्रतिमा की करीब पांच से छह साल की एक छोटी बच्ची भी है। 12 मई को, मैंने उसका एक और वीडियो देखा, जिसमें वह पास के जंगलों में घूम रही थी। मुझे संदेह है कि उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया और बाद में वन विभाग की कार्रवाई के डर से बंधक बनाने वालों ने उसे छोड़ दिया। मैंने वन विभाग से संपर्क किया है लेकिन उसे बचाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

सेन का मानना है कि त्रिपुरा में बंधक बनाने वाले लोग प्रतिमा जैसे घायल और बूढ़े हाथियों को पाल रहे हैं ताकि उनका दूसरे हाथियों के साथ अवैध व्यापार कर सकें। वन अधिकारियों का कहना है कि त्रिपुरा में करीब 64 बंदी हाथी हैं, जिनमें से 40 फीसदी कैलाशहर उपखंड में हैं। हालांकि, सिन्हा का तर्क है कि इन आंकड़ों पर विवाद हो सकता है, क्योंकि कई हाथियों को अवैध रूप से रखा जाता है और मिजोरम और नागालैंड के लकड़ी उद्योग में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।

खत्म हो गई जवाबदेही?

हालांकि इन बंदी हाथियों को वनतारा में स्थानांतरित करने से भारत के शीर्ष संरक्षणवादी खुश नहीं हैं। पर्यावरण पत्रकार और संरक्षणवादी प्रेरणा सिंह बिंद्रा, जो राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की सदस्य भी थीं, उनके मुताबिक इस स्थानानंतरण से जुड़ा मूल मुद्दा जवाबदेही का है।

उन्होंने  डाउन टू अर्थ को बताया कि वनतारा के पास फिलहाल 'सर्वोत्तम सुविधाएं' हो सकती हैं। हालांकि, चूंकि यह एक निजी व्यवसाय है, इसलिए हम इसे एक सरकारी संस्थान की तरह जवाबदेह नहीं ठहरा सकते। यदि भगवान न करे, ऐसी निजी सुविधा अपने जानवरों के साथ दुर्व्यवहार करती है या बदली हुई परिस्थितियों के कारण उनकी देखभाल नहीं कर पाती, तो ऐसे में कोई नागरिक क्या कर सकता है।

बिंद्रा का यह भी कहना है कि, "इसे एक बचाव और पुनर्वास केंद्र के रूप में प्रचारित किया जाता है। लेकिन 'पुनर्वास केंद्र' का वास्तव में क्या मतलब है? मुझे लगता है कि पुनर्वास का मतलब है वैज्ञानिक दिशानिर्देशों का पालन करते हुए जानवर को वापस जंगल में छोड़ना इसका लक्ष्य होना चाहिए। हालांकि, ऐसा नहीं लगता कि उसका यह मुख्य उद्देश्य है।"

बिंद्रा के मुताबिक ऐसा लगता है जैसे राज्य किसी निजी संग्रह की मदद कर रहा है। उनका आगे कहना है कि, "अगर इस केंद्र के मालिक वास्तव में वन्य जीवन और संरक्षण की परवाह करते हैं, तो सबसे अच्छा तरीका जानवरों को उनके प्राकृतिक आवासों में संरक्षित करना, जंगली क्षेत्रों की रक्षा करना और इस पर सरकारों के साथ काम करने में मदद करना है।"

उनका कहना है कि सरकार ने हाथियों को केंद्रीय स्थान पर स्थानांतरित करने में अपनी पूरी मशीनरी लगा दी है। दुर्भाग्य से, इस प्रक्रिया के चलते बीमार, गर्भवती और युवा हाथियों को कठोर परिस्थितियों में लंबी दूरी तक ले जाया जा रहा है, जो बेहद क्रूर है। उन्होंने इसे एक दिखावा बताया है। उनका प्रश्न है कि जब सरकार जानती है कि हाथी कैद में हैं तो वो उन्हें स्थानांतरित करने के बजाय उपचार के लिए सुविधाएं क्यों नहीं स्थापित कर रही।

उन्होंने सवाल किया कि क्या सरकार के पास अपने जानवरों की देखभाल के लिए धन की कमी है, क्योंकि हाथियों को वनतारा ले जाया जा रहा है। उनका कहना है कि जंगली जानवरों को इस सुविधा तक ले जाने को लेकर बार-बार चिंताएं सामने आई हैं। हालांकि इसके बावजूद यह अब भी जारी है और फिर भी हम हाथियों को पूजने का दावा करते हैं।

(अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद ललित मौर्या ने किया है)