वन्य जीव एवं जैव विविधता

कीटों की संख्या में 63 फीसदी तक की गिरावट के लिए दोषी कौन?

दुनिया भर के उन क्षेत्रों में कीटों की आबादी में भारी कमी देखने को मिली है जो बड़े पैमान पर अनियोजित तरीके से होती खेती और जलवायु में आते बदलावों से प्रभावित हैं

Lalit Maurya

जलवायु संकट के चलते वैश्विक स्तर तापमान में होती वृद्धि और भूमि उपयोग में तेजी से आते बदलावों ने दुनिया के कई हिस्सों में कीटों की आबादी को करीब आधा कर दिया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह दोनों मिलकर दुनिया भर में न केवल कीटों बल्कि अन्य जीवों की आबादी के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं।

पता चला है कि इंसानी प्रभाव से अनछुए क्षेत्रों की तुलना में जिन स्थानों पर सघन खेती की जा रही है, साथ ही तापमान में भी पर्याप्त वृद्धि आई है, वहां कीटों की आबादी में करीब 49 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। इतना ही नहीं उन स्थानों पर अन्य प्रजातियों की संख्या में भी करीब 29 फीसदी की गिरावट देखी गई है।

यह जानकारी यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है जोकि 20 अप्रैल 2022 को जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है। देखा जाए तो कीटों को होने वाला यह नुकसान ने केवल पर्यावरण के दृष्टिकोण से हानिकारक है, जहां कीट स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

साथ ही यह इंसानी स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है। विशेषरूप से उन कीटों में आती गिरावट जो पराग कणों को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। करीब 200 देशों के आंकड़ों से पता चला है कि दुनिया की 87 प्रमुख खाद्य फसलों से प्राप्त होने वाले फल, सब्जियां और बीज कहीं न कहीं इन कीट परागणकों पर निर्भर हैं।    

शोधकर्ताओं का मानना है कि कीटों को होने वाला यह नुकसान उनकी जानकारी से कहीं ज्यादा बड़ा हो सकता है, क्योंकि कई क्षेत्रों में इस बारे में बहुत सीमित जानकारी उपलब्ध है। पता चला है कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्र इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

यहां उन क्षेत्रों में कीटों की आबादी में भारी कमी देखने को मिली है जो बड़े पैमान पर अनियंत्रित तरीके से होती खेती और जलवायु में आते बदलावों से प्रभावित हैं। गौरतलब है कि कीटों की अनुमानित 55 लाख प्रजातियों में से अधिकांश इन्हीं क्षेत्रों में पाई जाती है।  

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर 6,000 स्थानों में मिलने वाली कीटों की लगभग 20,000 प्रजातियों से जुड़े साढ़े सात लाख रिकॉर्ड के एक समृद्ध डेटासेट का विश्लेषण किया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अलग-अलग क्षेत्रों में कीटों की जैव विविधता इस बात पर निर्भर करती है कि उन क्षेत्रों में कितनी गहन खेती की जा रही है साथ ही ऐतिहासिक रूप से स्थानीय जलवायु में कितना बदलाव आया है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक अलग-अलग क्षेत्रों में कीटों की जैव विविधता इस बात पर निर्भर करती है कि उन क्षेत्रों में कितनी गहन कृषि की जा रही है साथ ही ऐतिहासिक रूप से स्थानीय जलवायु में कितना बदलाव आया है। शोध से पता चला है कि जिन स्थानों में तापमान में व्यापक वृद्धि आई है लेकिन वहां इससे बचने के लिए करीब 75 फीसदी भूमि पर समृद्ध प्राकृतिक आवास मौजूद थे वहां कीटों की आबादी में केवल 7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। गौरतलब है कि ऐसे क्षेत्रों में अभी भी गहन कृषि नहीं की जा रही है।

वहीं इसके विपरीत जहां तापमान में होती वृद्धि तो लगभग सामान थी लेकिन केवल 25 फीसदी भूमि पर समृद्ध प्राकृतिक आवास मौजूद थे, वहां कीटों में तुलनात्मक रूप से 63 फीसदी की गिरावट देखी गई है। यह स्पष्ट रूप से इन जीवों के लिए समृद्ध प्राकृतिक आवास के महत्व को दर्शाता है। बहुत सारे कीट गर्म दिनों से बचने के लिए इन छायादार पेड़-पौधों पर निर्भर करते हैं। ऐसे में यदि उनके आवास को नुकसान होता है तो वो जलवायु में आते बदलावों के लिए उन्हें कहीं ज्यादा संवेदनशील बना देगा।  

बनाना होगा तेजी से फैलती कृषि और प्राकृतिक आवास के बीच संतुलन

इस बारे में वरिष्ठ शोधकर्ता डॉक्टर टिम न्यूबॉल्ड का कहना है कि जिन क्षेत्रों में गहन कृषि की जा रही है वो पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती पैदा कर रही है, क्योंकि एक तरफ जहां हमें तेजी से बढ़ती इंसानी आबादी का पेट भरने के लिए खाद्य पदार्थों की मांग को पूरा करने की जरुरत है।

वहीं दूसरी तरफ पिछले शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है कि परागण करने वाले कीट विशेष रूप से तेजी से होते कृषि विस्तार के कारण प्रभावित होते हैं। यह कीट प्राकृतिक आवासों की तुलना में उन क्षेत्रों में 70 फीसदी कम नजर आते हैं जहां गहन कृषि की जा रही है। ऐसे में कृषि क्षेत्रों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन जैसे कि खेतों के पास प्राकृतिक आवास को संरक्षित करना यह सुनिश्चित कर सकता है कि वो कीट अभी भी पनप रहे हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि इंसानी प्रभावों के चलते कीड़ों की आबादी में आती गिरावट उनके निष्कर्षों से कहीं ज्यादा हो सकती है क्योंकि इस अध्ययन के शुरू होने से पहले भी कई क्षेत्र लम्बे समय से इंसानी गतिविधियों से प्रभावित रहे हैं। ऐसे में वहां की जैवविविधता को पहले ही प्रदूषण आदि कारकों से काफी नुकसान हो चुका है, जिसका कोई हिसाब नहीं है।

इस बारे में शोध से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता और यूसीएल के सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी एंड एनवायरनमेंट रिसर्च से सम्बन्ध रखने वाली डॉक्टर चार्ली ओथवेट का कहना है कि बढ़ते इंसानी दबाव के आगे कई कीट बड़े कमजोर प्रतीत होते हैं। जैसे-जैसे जलवायु में बदलाव और कृषि क्षेत्रों में विस्तार जारी है यह समस्या गंभीर होती जा रही है।

ऐसे में वो प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करने के साथ ही इन क्षेत्रों में अनियंत्रित तरीके से किए जा रहे कृषि क्षेत्रों के विकास को धीमा करने का सुझाव देती है।  साथ ही उनका कहना है कि वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ते उत्सर्जन में तत्काल कटौती करने की जरुरत है। 

हमें यह समझना होगा कि यह छोटे जीव हमारी धरती का एक अभिन्न अंग हैं, जिनके बिना इसके अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। धरती पर इनकी जैवविविधता कितनी समृद्ध है इसका अंदाजा इसी से लगा जा सकता है कि तितलियां/पतंगे, भृंग, मधुमखियां/ततैया/चीटियां और मक्खियों सहित इनके 29 प्रमुख कीट समूह हैं।

 इनमें से प्रत्येक समूह में दस लाख से ज्यादा प्रजातियां शामिल हैं। हालांकि आपको यह जानकारी हैरानी होगी की दुनिया में अभी भी कीटों की 80 फीसदी प्रजातियों को खोजा नहीं जा सका है, जिनमें से कई उष्णकटिबंधीय प्रजातियां हैं।