वन्य जीव एवं जैव विविधता

जलवायु परिवर्तन के कारण राजस्थान में काले हिरणों की संख्या हुई आधी

Anil Ashwani Sharma

जलवायु परिवर्तन ने अकेले मानव को ही प्रभावित नहीं किया है बल्कि इसके कारण वन्य जीवों पर भी अत्याधिक प्रतिकूल असर न केवल पड़ा है बल्कि यह प्रक्रिया लगातार जारी है।

जलवायु परिवर्तन के कारण पश्चिमी राजस्थान के पांच जिलों में काले हिरणों की संख्या पिछले दो दशक में आधी हो गई। कारण कि जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले 20 से 25 सालों के दौरान लगातार पश्चिमी राजस्थान बाढ़ग्रस्त क्षेत्र बन गया है।

कहने के लिए सदियों से यह क्षेत्र सूखा रहा है लेकिन अब यहां बाढ़ से जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित होने लगा है। बाढ़ के कारण पश्चिमी इलाकों के कई ऐसे इलाके हैं, जहां बड़ी संख्या में काले हिरणों का बसेरा हुआ करता था। आज की तारीख में वे इलाके बाढ़ के कारण दलदली हो गए हैं।

इसके कारण काले हिरणों को इधर-उधर विचरण करने में परेशानी होने लगी है। और कई इन दलदली इलाकों में फंस कर दम तोड़ देते हैं। यही नहीं इन इलाकों में पहले सूखी गर्मी पड़ती थी और आज हालात ये हैं कि इन इलाकों में भारी उमस रहती है। यह मौसम काले हिरणों के लिए अनुकूल नहीं माना जाता।

पर्यावरण के जनहित मामलों के याचिका कार्यकर्ता प्रेम सिंह राठौर ने बताया कि समूचे मारवाड़ में चीतों को भी चकमा देने में माहिर काले हरिणों की संख्या में तेजी से कमी दर्ज की गई है। पश्चिमी राजस्थान के पांच जिलों में अब मात्र 2,346 काले हरिण ही बचे हैं। काले हरिणों के लिए प्रसिद्ध जोधपुर में भी लगभग 600 काले हरिण ही बचे हैं।

सीमावर्ती बाड़मेर जिले में तो ये लुप्त प्राय: होने की कगार पर पहुंच गए हैं, जबकि जैसलमेर व जालोर में एक भी काला हरिण नहीं बचा है। राज्य सरकार द्वारा हाल ही में कराए गए वन्यजीव गणना के बाद यह चौंकाने वाला खुलासा इस बात का संकेत देता है कि यह रेगिस्तान बीस साल पहले वाला नहीं है। अब इसकी आबोहवा बदल चुकी है।

ऐसे में हिरणों की संख्या का कम होना इस बात का पर्याप्त संकेत है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही यहां के वातावरण में तेजी से बदलाव हुआ है।

वन विभाग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार साल 2002 की वन्यजीव की गई गणना के मुकाबले में पश्चिमी राजस्थान के सभी पांच जिलों में इनकी संख्या आधी भी नहीं रह गई है। दो दशक पहले तक यहां 4,237 काले हिरण पाए जाते थे, लेकिन इस वर्ष की गणना के दौरान इस इलाके में मात्र 2,346 हिरण ही रह गए हैं।

इनमें जोधपुर में 606, सिरोही में 30, पाली में 1,699 व बाड़मेर में मात्र 11 ही काले हरिण बचे रह गए हैं। जालोर और जैसलमेर में तो इनकी संख्या शून्य हो गई है। हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि इनकी संख्या कम होने का प्रमुख कारण हिंसक हमलों, शहरी विकास, अवैध खनन, खेतों की बढ़ती तारबंदी, परम्परागत भोजन का खत्म होना और शिकार की घटनाएं बढ़ने को बता रहे हैं।

लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि हिरणों की संख्या में कमी का एक बड़ा कारण जलवायु परितर्वन ही है। पाली जिले के जिला कृषि केंद्र वैज्ञानिक डी सिंह कहना है कि रेगिस्तानी इलाके जैसे बाडमेर, जेसलमेर, बीकानेर, चुरु, सीकर और इसके आगे के इलाके जिसे अर्ध रेगिस्तानी इलाका भी कह सकते हैं, जैसे जालोर, सिरोही और पाली आदि जिले पिछले दस सालों में इन इलाकों में पानी अधिक हो गया है कि हालात ये हैं कि कई स्थानों पर उसे पंपिंग से निकाला जाता था चूंकि इस इलाके में नीचे जिप्सम होने के कारण पानी जमीन के नीचे कम ही जा पाता है। इसके चलते यह इलाका दलदली होते जा रहा है।

वह कहते हैं कि जब साल में बारिश के दिन अधिक हो जाते है तो शुष्क क्षेत्र में उगाई जाने वाली फसलें सूखें से तो अपने बचा लेती हैं लेकिन वे बारिश से नहीं बचा पाती हैं। क्योंकि उनकी परिस्थितिकी ऐसी बन गई है। ऐसे में चारा का संकट आ खड़ा होता है और इस इलाके के वन्य जीव-जंतुओं को ऐसे में अपने को बचाना बहुत कठिन होते जा रहा है। इसी प्रकार इस इलाके का सांचोर इलाका लगातार बाढ़ के कारण दलदली हो गया है।

यहां हिरण जब इधर-उधर आते-जाते हैं तो इस दलदल में फंस कर रह जाते हैं। इसके अलावा राजस्थान विवि के इंदिरा गांधी पर्यावरण विभाग के पूर्व अध्यक्ष टीआई खान का कहना है कि जेसलमेर, बाडमेड और सांचोर में अभी भी और बरसात बढने के आसार हैं। हालांकि इस प्रकार से मानसून में तब्दीलियां क्षणिक न होकर हजारों सालों में होती हैं

लेकिन हम देख रहे हैं पिछलों सालों में मानवी गतिविधियां बहुत अधिक हो गई हैं और राजस्थान के पश्चिमी इलाकों में सबसे अधिक सिंचाई योजनाएं चल रही हैं। इसके चलते उमस उस इलाके में बहुत बढ गई है। उमस बढने के कारण ही बारिश अधिक हो रही है और यह वन्यजीवों के अनुकूल नहीं है।