वन्य जीव एवं जैव विविधता

डाउन टू अर्थ खास: शिकार का इंतजाम!

पर्याप्त शिकार उपलब्ध कराने के लिए राज्यों के टाइगर रिजर्वों में शाकाहारी व खुरदार जानवरों को स्थानांतरित किया जा रहा है

Himanshu Nitnaware

झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व में अक्टूबर 2023 से ही कई तरह की गतिविधियां चल रही हैं। मध्य प्रदेश वन विभाग ने इस टाइगर रिजर्व के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया है और 192 किलोमीटर दूर रांची की ओर मांझी गांव स्थित भगवान बिरसा बायोलॉजिकल पार्क से 300 शाकाहारी जानवरों को इस टाइगर रिजर्व में लाने के लिए विशेष वाहन का इंतजाम किया जा चुका है। पलामू टाइगर रिजर्व (दक्षिण) के उप निदेशक कुमार आशीष कहते हैं, “अब सिर्फ केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से हरी झंडी का इंतजार है। हरी झंडी मिलते ही 250 चित्तीदार हिरण, 20 काले हिरण, 10 हिरण, 10 साम्भर और 10 नील गाय को टाइगर रिजर्व लाया जाएगा।”

झारखंड में जानवरों के स्थानांतरण की यह पहली योजना है और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने इसे मंजूरी भी दे दी है। आशीष बताते हैं कि इन शाकाहारी व खुरदार जानवरों को पहले पलामू में एक बेड़े में रखा जाएगा ताकि वे स्थानीय आबोहवा में खुद को ढाल सकें और अधिकारी उनके स्वास्थ्य की निगरानी कर सकें। एक महीने के बाद उन्हें बाघ का शिकार बनने के लिए टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया जाएगा।

शिकार या वे जानवर जो बाघों का आहार बनते हैं, उनमें चित्तीदार हिरण, गौर, जंगली सूअर, नीलगाय और साम्भर शामिल हैं। आशीष विस्तार से बताते हैं, “पलामू टाइगर रिजर्व के आठ रेंज में से सिर्फ एक रेंज में ही 5,000 हिरण हैं। बाकी के रेंज में महज 100 से 200 हिरण और कुछ अन्य जानवर हैं। इस रिजर्व में कुल तीन बाघ हैं। एक बाघ एक साल में चीतल के आकार के 50 जानवरों को खाता है। इस हिसाब से 500-600 हिरणों की जरूरत है, जो लगातार प्रजनन करते हों।” वह आगे कहते हैं, “बाघों के लिए शिकार का घनत्व या प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में शिकारों की संख्या 25 होनी चाहिए। मगर फिलहाल यहां प्रति वर्ग किलोमीटर में चार शिकार हैं।” टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ाकर 15-20 करने की योजना है जिसके लिए 25,000 हिरणों की जरूरत होगी।

अपर्याप्त संख्या

झारखंड में भले ही शिकारों को स्थानांतरित करने की यह पहली योजना हो, लेकिन मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे राज्यों में यह काम पिछले एक दशक से हो रहा है। एनटीसीए में सहायक महानिरीक्षक (वन) हेमंत सिंह कहते हैं, “हाल के वर्षों में यह बढ़ा है।” वन अधिकारियों का कहना है कि बाघों व अन्य परजीवभक्षी जानवरों के लिए भोजन की कमी की वजह से ऐसा किया जा रहा है क्योंकि ठिकानों के विध्वंस, जंगली मीट के लिए तस्करी व शिकार तथा अतिक्रमण के चलते शिकारों की संख्या में गिरावट आई है। एनटीसीए की रिपोर्ट “स्टेटस ऑफ टाइगर – को-प्रीडेटर्स एंड प्रे इन इंडिया” के मुताबिक, देशभर के 18 राज्यों में स्थित 53 टाइगर रिजर्व में कुल 3,682 बाघ हैं। साल 2018 में इनकी संख्या 2,967 थी। हालांकि साल 2022 के आंकड़ों में शिकारों की संख्या उपलब्ध नहीं है, लेकिन पूर्व के आंकड़ों से पता चलता है उनका वितरण असमान है। साल 2018 तक राजस्थान के रणथम्भौर में बाघों की संख्या 55 थी। उस वक्त प्रति वर्ग किलोमीटर में चीतल की आबादी 21.62 और साम्भर की आबादी 13.95 थी। लेकिन, राजस्थान के ही मुकुंदरा टाइगर रिजर्व में चीतल का कोई घनत्व नहीं था, जबकि नीलगायों की संख्या प्रति वर्ग किलोमीटर 3.59 और चिंकारा की संख्या प्रति वर्ग किलोमीटर 2.05 थी।



आशीष कहते हैं कि औसतन एक नर बाघ को 30 वर्ग किलोमीटर और मादा बाघ को 10 वर्ग किलोमीटर का इलाका चाहिए। हालांकि, भौगोलिक स्थिति, वनस्पति और शिकारों के कारण इलाके का क्षेत्रफल घट-बढ़ सकता है। अगर शिकारों का घनत्व कम हो, तो भोजन के लिए शिकार की तलाश में बाघ लम्बी दूरी तय करेगा। उन्होंने कहा, “भोजन के लिए बाघ मनुष्यों की बसाहट में भी जा सकता है, जिससे मानव-बाघ के बीच संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है।” अतः शिकारों की संख्या को बाघ की जरूरतों के अनुकूल रखने के लिए मानव हस्तक्षेप की जरूरत है।

साल 2018 आंकड़ों के मुताबिक, मध्यप्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में चीतल की संख्या 4.24, हिरण की संख्या 2.49, साम्भर की आबादी 6.48 और नीलगाय की आबादी 2.56 है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के क्षेत्र निदेशक एल. कृष्णमूर्ति कहते हैं, “कम शिकार उपलब्ध होने का कारण जैविक दबाव मसलन चराई, ईंधन संग्रह, छोटे टिम्बर, लघु वनोपज, खेती के लिए अप्रवाही जल का अधिक इस्तेमाल और मछली पकड़ना हो सकते हैं।”

शाकाहारी जानवरों को टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित करने की बुनियादी वजह तो बाघों को भोजन मुहैया कराना है, लेकिन इन शाकाहारी जीवों की मौजूदगी से जैवविविधता को संरक्षित करने में भी मदद मिलती है। एल. कृष्णमूर्ति कहते हैं, “सतपुड़ा में गौर, साम्भर, नीलगाय और जंगली सूअरों की अच्छी जनसंख्या है, लेकिन चीतल कम हैं। अलग-अलग प्रजातियों के जानवरों के होने से खाद्य चक्र बनाए रखने में मदद मिलती है और यह बसाहट के संरक्षण को भी प्रोत्साहित करता है।” वह आगे जोड़ते हैं, “आबादी का घनत्व और शिकार की उपलब्धता को जारी रखने के लिए कभी-कभी ये जानवर उच्च घनत्व वाले इलाके से कम घनत्व वाले इलाकों में चले जाते हैं।”

स्थानांतरण जूलॉजिकल पार्कों को भी मदद करता है। तेलंगाना के वन विभाग के एक अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, “जूलॉजिकल पार्कों में कोई परजीवभक्षी जानवर के नहीं होने के चलते शाकाहारी जानवर बड़ी संख्या में बच्चे जनते हैं। ऐसे में इन जानवरों को अन्यत्र स्थानांतरित कर देने से टकराव की स्थिति नहीं बनती और साथ ही जानवर अपने निकट संबंधी जानवरों के साथ मिलकर बच्चे पैदा नहीं कर पाते हैं।”

अप्राकृतिक कदम

यद्यपि शिकारों का स्थानांतरण फायदेमंद साबित हो चुका है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह का स्थानांतरण वैज्ञानिक संरक्षण के विपरीत है। देहरादून के वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के पूर्व डीन वाई वी झाला कहते हैं, “दक्षिण अफ्रीका में बोमा तकनीक का इस्तेमाल होता है, जिसमें जानवरों को स्थानांतरित करने के लिए उन्हें ट्रेंकुलाइज नहीं किया जाता। इस तकनीक से स्थानांतरण करने में कम जानवरों की मृत्यु होती है। इससे स्थानांतरण में 90 प्रतिशत से अधिक सफलता की दर हासिल हुई है।”

उन्होंने कहा कि पार्कों से स्थानांतरित किए जाने वाले शाकाहारी और खुरदार जानवर कभी भी जंगलों में नहीं रहे और उनमें शिकारियों से लड़ने की शक्ति कमजोर होती है। रणथम्भौर के टाइगर वाच के संरक्षण जीवविज्ञानी धर्मेंद्र खंडाल कहते हैं, “इन शाकाहारी जानवरों को टाइगर रिजर्व में अपने लिए सुरक्षित जगह तलाशने में मुश्किल होगी।” वह आगे कहते हैं कि शिकार उपलब्ध कराने का कृत्रिम तरीका संरक्षण नहीं, बल्कि आबादी को बनाए रखना और प्रबंधन है।

बंगलुरू के मेटास्ट्रिंग फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी व बायोडायवर्सिटी कोलैबोरेटिव के समन्वयक रवि चेल्लम कहते हैं कि हिंसक जानवरों के लिए शिकार का इंतजाम करने का यह तरीका खर्चीला और त्रुटिपूर्ण है। उन्होंने कहा, “मसला बाघों को अतिरिक्त शिकार मुहैया कराने का नहीं है। स्थानांतरण बहुत ध्यान से और कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए किए जाने की जरूरत है, मसलन कि पार्क या रिजर्व में ये जानवर कितने समय तक रहते हैं, उनका लिंगानुपात, उम्र और आकार कितना है।” वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी के इंडिया प्रोग्राम के निदेशक के. उल्लास करंथ कहते हैं कि जानवरों की बसाहटों को अतिक्रमण व ह्रास से बचाया जाए, तो गुजरते वक्त के साथ इनकी आबादी बढ़ेगी। उन्होंने कहा, “हम इन बाघों को चिड़ियाघर की जगह नेशनल पार्क में खिला रहे हैं। प्राकृतिक रिकवरी तेज करना या बाघ और शिकार का घनत्व प्राकृतिक स्तर से अधिक बढ़ाना अवैज्ञानिक है और अक्सर मानव-वन्यजीवों के बीच टकराव का कारण बनता है। अन्य प्रकार की जैवविविधताओं पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। ऐसा कोई शोध नहीं है, जो इस तरह की कार्रवाइयों की जरूरतों का समर्थन करे।”

उन्होंने कहा कि बाघों की संभावित बसाहटों के 75 प्रतिशत हिस्से (झारखंड, ओडिशा व छत्तीसगढ़) में बाघों की आबादी प्राकृतिक घनत्व के अनुरूप नहीं है। एनटीसीए की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, 11 टाइगर रिजर्वों में या तो सिर्फ एक बाघ है या वह भी नहीं है। के. उल्लास करंथ ने कहा, “वहीं, दूसरी तरफ, बांदीपुर, नागरहोल और ताडोबा में बाघों की आबादी काफी ज्यादा है। ऐसे में कृत्रिम तरीके से शिकारों को इन रिजर्वों में छोड़ने से बाघों के बीच भी टकराव बढ़ेंगे।

क्या चीता के लिए शिकार सुलभ है?

शिकार केवल बाघों के लिए चिंता का कारण नहीं है। चीते की आबादी के पुनरोत्थान के लिए साल 2022 में कूनो नेशनल पार्क में लाए गए अफ्रीकी चीते के लिए भी ये चिंता का विषय है।

चीते सामान्य तौर पर शाकाहारी व खुरदार जानवरों मसलन हिरण की प्रजातियों व खरगोश को शिकार बनाते हैं। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, एनटीसीए और मध्यप्रदेश वन विभाग की तरफ से जनवरी 2022 में जारी रिपोर्ट “एक्शन प्लान ऑफ इंट्रोडक्शन ऑफ चीता इन इंडिया” कहती है कि कूनो में चीतल का घनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 38.48 के साथ शिकार प्रजातियों का घनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 51.58 है।

हालांकि, प्रोजेक्ट चीता पहल के मूल्यांकन के लिए 27 अक्टूबर 2023 को एनटीसीए की तरफ से गठित चीता प्रोजेक्ट स्टीरिंग कमेटी ने कहा कि जब तक जंगल में शिकार जानवरों की संख्या प्रति वर्ग किलोमीटर 35 और आदर्श स्थिति में इनकी संख्या प्रति वर्ग किलोमीटर 50 न हो जाए, तब तक चीता को नहीं छोड़ा जाएगा। इससे पता चलता है कि नेशनल पार्क में शिकारों की संख्या कितनी कम है। लेकिन, इन दावों को खारिज करते हुए कूनो के मुख्य संरक्षक उत्तम शर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि कूनो में शिकार जानवर कोई मुद्दा नहीं है। उन्होंने कहा कि शिकार जानवरों की संख्या का नियमित मूल्यांकन किया जाता है