यह बता पाना असंभव है कि बाघ भारत में अब आए? अनुवांशिकी के जानकारों, इतिहासकारों और विशेषज्ञों के इस संबंध में भिन्न-भिन्न मत हैं। बंगलुरू स्थित नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेस में मोलेक्यूलर इकोलॉजिस्ट और असिस्टेंट प्रोफेसर उमा रामाकृष्णन कहती हैं, “हम केवल यह बता सकते हैं कि भारत में बाघ के रहने लायक परिस्थितियां कब बनीं या वे अन्य बाघों की तुलना में अलग कैसे बने।”
सोनीपत स्थित अशोका विश्वविद्यालय में इतिहास और पर्यावरण अध्ययन से संबद्ध महेश रंगराजन कहते हैं कि कोई भी विद्वान इसकी सही तारीख नहीं बता सकता। वह बताते हैं कि विद्वान बस समय के साथ उपलब्ध हुए एक्सीडेंटल सरवाइविंग के प्रमाण ही देंगे। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं कि अगर आप शिवानी बोस की नई किताब “मेगा मेमल्स इन एंसिएंट इंडिया: राइनो, टागर्स एंड एलिफेंट” के संदर्भ को देखें तो पाएंगे कि बाघ ऐतिहासिक समय से यहां हैं, करीब 5,000 साल पहले से। उन्होंने अपनी किताब में गैंडों, हाथियों और बाघों का इतिहास पता लगाने के लिए प्राचीन भारत के पुरातात्विक अभिलेखों और चित्रों का सहारा लिया है। उनकी किताब के अनुसार, “जीवाश्म रिकॉर्ड में बाघों की मौजूदगी ठीक से पता नहीं चलती लेकिन मेसोलिथिक महादहा, नियोलिथिक लोबनर तृतीय, स्वात के अलीग्रामा, अतरंजी खेड़ा और मादरडीह के पुरातात्विक अभिलेखों में इनकी मौजूदगी पता चलती है।” जीवाश्म रिकॉर्ड में बाघ के धुंधले प्रमाण के बावजूद प्राचीन भारत के ग्रंथों और तस्वीरों में ये बहुतायत में हैं।
भारत के टाइगर मैन वाल्मिक थापर 2002 में प्रकाशित अपनी किताब “द कल्ट ऑफ द टाइगर” में लिखते हैं, “भारतीय महाद्वीप में बाघ की शुरुआती झलक 2,500 ईसा पूर्व की हड़प्पा संस्कृति की मुहर से मिलती है। कभी-कभी बाघ के सींग दिखाई देता है और वह किसी मांद जैसी जगह के सामने खड़ा दिखता है। अन्य मुहर में एक अनोखी आकृति है। इसके पिछले हिस्से में बाघ है और अगला हिस्सा एक महिला का है। इस महिला के हाथ में लंबी-सी एक विचित्र प्लेट है और उसके सिर पर पेड़ उगा है। एक अन्य मुहर में एक निर्वस्त्र महिला दिखाई देती है। उसके एक तरफ दो बाघ खड़े हैं। इस चित्र का महत्व स्पष्ट नहीं है लेकिन माना जा रहा है कि इसमें महिला का बाघ से संबंध दर्शाया गया है। यह संबंध प्रजनन या जन्म से जुड़ा हो सकता है।
चीनी संबंध
हालिया इतिहास में विशेषज्ञों ने वह अनुमानित तारीख सुझायी है जो इस महाद्वीप में बाघ के आने की हो सकती है। रामाकृष्णन, एंड्रयू सी किचनर और एंड्रयू जे डगमोर की किताब “बायोज्योग्राफिकल चेंज इन द टाइगर, पेंथरा टिगरिस” का हवाला देकर बताती हैं, “आवास और जलवायु मॉडलों पर आधारित अध्ययन बताते हैं कि अधिकांश भारत में बाघों ने 12,000 साल पहले अपनी उपस्थिति दर्ज की।” रामाकृष्णन के मुताबिक, पहले के अध्ययन संकेत देते हैं कि बाघ दक्षिण चीन क्षेत्र के आसपास विकसित हुए और यहां से दूसरे हिस्सों में फैल गए। थापर अपनी किताब में लिखते हैं कि 50 हजार साल पहले बाघ सहित बड़ी बिल्लियां एक ही पूर्वज से विकसित हुए। ये पूर्वज आधुनिक तेंदुए या चीते जैसे हो सकते हैं। रामाकृष्णन के मुताबिक, “जीनोम सीक्वेंसिंग पर आधारित हमारे अध्ययन बताते हैं कि करीब 8,000-9,000 साल पहले भारतीय बाघ अन्य बाघों से अलग हो गए।
अब एक सवाल यह उठता है कि अगर बाघ चीन में विकसित हुए तो वे किस रास्ते से दक्षिण एशिया में पहुंचे? रामाकृष्णन इस प्रश्न का उत्तर सुझाती हैं “जीनोम सीक्वेंसिंग पर आधारित बाघों के जनसांख्यकीय इतिहास के मॉडल बताते हैं कि भारत के उत्तरपूर्व में पाए जाने वाले बाघ दक्षिण एशियाई बाघों से काफी मिलते हैं। साथ ही ये भारतीय बाघों से काफी भिन्न भी हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि बाघ उत्तरपूर्व के रास्ते से भारत में आए होंगे।”
भारतीय शेरों और चीतों पर दो चर्चित किताब लिखने वाले दिव्यभानू सिंह चावड़ा रामाकृष्णन की बातों से सहमत हैं। वह बताते हैं, “आपको नेपाल और भूटान के बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बाघ मिल रहे हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि बाघों ने अरुणाचल और असम के ऊपरी हिस्से से हिमालय पार किया हो।” डाउन टू अर्थ के अंग्रेजी संस्करण (16-31 मार्च 2019) में “रोर्स इन लॉस्ट लैंड” शीर्षक से प्रकाशित आलेख में बताया गया था कि 2017 और 2018 में बर्फ से आच्छादित पूर्वी हिमालय के अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में बाघों का कैसे उभार हुआ। डाउन टू अर्थ ने यह सवाल उठाया था कि क्या बाघ यहां हमेशा से थे या बेहतर आवास की खोज में यहां पहुंच गए। भारत में आने के बाद ये सभी जगह कैसे फैल गए? थापर इसका समय और मार्ग नहीं बताते लेकिन अपनी किताब “द कल्ट ऑफ द टाइगर” में लिखते हैं, “बाघ बहुत तेजी से संपूर्ण भारत में फैल गए। ये दलदले वनों, सदाबहार जंगलों, सूखे वनों और भारत में फैली अन्य वनस्पतियों के बीच पहुंच गए।”
रामाकृष्णन एक और संकेत देती हैं, “समस्त जीनोम सीक्वेंस से संकेत मिलता है कि उत्तरपूर्व भारत में पाए जाने वाले बाघ सबसे अलग हैं। भारत में अन्य बाघों की भी आबादी है, जैसे मध्य भारत के बाघ, पश्चिमी घाट के बाघ और दक्षिण भारत के बाघ, लेकिन ये सभी एक ही बाघ से विकसित हुए हैं।”
अंत: यह कहा जा सकता है कि भारत में बाघ करीब 12,000 पहले आए, संभवत: पूर्वी हिमालय की ओर से। हालांकि यह मत बदल भी सकता है। चावड़ा मानते हैं, “विकास का पूरा व्यवसाय निरंतर चल रहा है। हर दिन कुछ नया निकलकर सामने आ जाता है।”