वन्य जीव एवं जैव विविधता

दुनिया में हर मिनट नष्ट हो रहे 21.1 हेक्टेयर में फैले जंगल

2021 में उष्णकटिबंधीय प्राथमिक वनों को जो नुकसान पहुंचा है, उसके कारण 250 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ है जोकि भारत के वार्षिक जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के बराबर है

Lalit Maurya

भले ही कॉप-26 सम्मलेन में दुनिया के 140 से भी ज्यादा देशों के शीर्ष नेताओं ने वनों को बचाने की प्रतिज्ञा की थी। इसके बावजूद दुनिया में हर मिनट 21.1 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में फैले जंगल नष्ट हो रहे हैं, जिनका क्षेत्रफल 10 फुटबाल मैदानों जितना है।

इस तरह यदि पूरे वर्ष के हिसाब से देखा जाए तो 2021 में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में करीब 111 लाख हेक्टेयर में फैले जंगल खत्म हो गए थे। यह जानकारी मैरीलैंड विश्वविद्यालय द्वारा जारी नए आंकड़ों में सामने आई है जोकि ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच पर उपलब्ध हैं। गौरतलब है कि कॉप-26 सम्मलेन में दुनिया के 141 देशों ने दुनिया भर के जंगलों के बढ़ते विनाश को 2030 तक न केवल रोकने की प्रतिज्ञा की थी साथ ही इस बात पर भी सहमति जताई थी कि वो इन जंगलों की पुनः बहाली के लिए काम करेंगें।

इनमें से 37.5 लाख हेक्टेयर में फैले वो जंगल हैं जो उष्णकटिबंधीय प्राथमिक वर्षावनों के भीतर मौजूद थे और जलवायु के लिहाज से बहुत ज्यादा मायने रखते थे। ऐसे में उनका खत्म होना विशेष रूप से चिंता का विषय है। यह जंगल कार्बन भंडारण और जैव विविधता के लिए बहुत ज्यादा महत्त्व रखते हैं। अनुमान है कि 2021 में उष्णकटिबंधीय प्राथमिक वनों को जो नुकसान पहुंचा है, उसके कारण 250 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ है जोकि भारत के वार्षिक जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के बराबर है।

रिपोर्ट के मुताबिक इन आंकड़ों में विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय जंगलों को हुए नुकसान पर विशेष रूप से इसलिए ध्यान केंद्रित किया है क्योंकि इन जंगलों के 96 फीसदी नुकसान के लिए इंसानों द्वारा किया जा रहा इनका विनाश जिम्मेवार था, जिसमें कृषि और मवेशियों के लिए भूमि को साफ करना एक प्रमुख वजह था।

आंकड़ों के मुताबिक उष्णकटिबंधीय प्राथमिक वन क्षेत्र को हो नुकसान हो रहा है वो पिछले कई वर्षों से लगातार समान दर से जारी है। हालांकि 2020 की तुलना में इन वन क्षेत्रों को हो रहे नुकसान  में 11 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं 2019 से 2020 के बीच इनमें 12 फीसदी की वृद्धि आई थी, जिसके लिए कहीं हद तक जंगलों में लगने वाली आग जिम्मेवार थी।

आंकड़ों के अनुसार प्राथमिक जंगलों को जो नुकसान पहुंचा है उसमें से 40 फीसदी से ज्यादा अकेले ब्राजील में दर्ज किया गया है। जहां लगभग 15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले जंगल इंसानी लालच की भेंट चढ़ गए हैं। इस बारे में पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो की नीतियों के चलते हाल ही में इनके विनाश में तेजी आई है।

गौरतलब है कि हाल ही में ब्राजील के नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (इनपे) द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले 15 वर्षों में पहली बार ब्राजील में जंगलों को इतने बड़े पैमाने पर काटा गया है। अनुमान है कि अगस्त 2020 से जुलाई 2021 के बीच इन जंगलों में करीब 13,235 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है, जोकि 2006 के बाद से सबसे अधिक है।

क्या बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा, खुद उसके विनाश का कारण तो नहीं बन जाएगी

ब्राजील का यह अमेजन वर्षावन हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इस जंगल में पेड़ पौधों और जानवरों की 30 लाख से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। यही नहीं यह जंगल करीब 10 लाख वनवासियों को आसरा प्रदान करता है।

वहीं इन उष्णकटिबंधीय प्राथमिक वर्षावनों को होने वाले नुकसान के मामले में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो दूसरे स्थान पर था जहां 2021 में 5 लाख हेक्टेयर में फैले वन नष्ट हो गए थे।  वहीं बोलीविया ने अपने लगभग 3 लाख हेक्टेयर में फैले वन क्षेत्र को इस दौरान को दिया है।  

वहीं दुनिया के अन्य क्षेत्रों जैसे बोरियल और समशीतोष्ण जंगलों को हुए नुकसान के लिए वानिकी और जंगलों में लगने वाली आग जिम्मेवार थी। पता चला है कि बोरियल वन क्षेत्र मुख्य रूप से जो रूस में है उसमें 2021 के दौरान जंगलों को हुए विनाश के लिए बड़े पैमाने पर लगने वाली आग जिम्मेवार थी। 

आंकड़ों के मुताबिक 2021 में कनाडा, रूस और अलास्का जैसे सुदूर उत्तरी क्षेत्रों में पाए जाने वाले ठंडे बोरियल वनों ने करीब 80,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले जंगलों को खो दिया है, जोकि 2001 के बाद से सबसे ज्यादा है। देखा जाए तो यह जंगल हमारी दुनिया के फेफड़े हैं जो न केवल प्रदूषित हवा को साफ करते हैं साथ ही जैवविविधता को भी बचाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। 

इसके साथ ही यह जंगल जलवायु के दृष्टिकोण से भी बहुत मायने रखते हैं। जो दुनिया भर में उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों के एक बहुत बड़े हिस्से को सोख लेते हैं, जिसकी वजह से तापमान में होती वृद्धि को रोकने में मदद मिलती है। ऐसे में इनकों होता विनाश जलवायु परिवर्तन के खतरे को भी और बढ़ा रहा है। ऐसे में सबसे बड़ी चिंता का विषय तो यही है कि क्या बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा, खुद उसके ही विनाश का कारण तो नहीं बन जाएगी।