वन्य जीव एवं जैव विविधता

नियमों के बावजूद हर साल इंसानी लालच की भेंट चढ़ रहीं आठ करोड़ से ज्यादा शार्क

आज दुनिया की हर तीसरी शार्क प्रजाति पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है

Lalit Maurya

भले ही किस्से-कहानियों और फिल्मों में शार्क को एक समुद्री हत्यारे के रूप में दर्शाया जाता रहा है, लेकिन सच यह है कि बढ़ते इंसानी लालच के चलते यह जीव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। इस बारे में किए नए अध्ययन से पता चला है कि नियमों के बावजूद शार्क का बड़े पैमाने पर शिकार किया जाता है।

यह जीव पिछले 40 करोड़ वर्षों से अस्तित्व में है, लेकिन इनके पंखों के प्रति बढ़ती इंसानी भूख ने इसकी कई प्रजातियों को विलुप्त होने के करीब पहुंचा दिया है। गौरतलब है कि आज दुनिया की हर तीसरी शार्क प्रजाति पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।

जर्नल साइंस में प्रकाशित अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि जहां 2012 में मछली पकड़ने के दौरान 7.6 करोड़ शार्कों की मृत्यु हुई थी। वहीं 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर आठ करोड़ पर पहुंच गया। बता दें कि इसमें वो सभी शार्कें शामिल हैं जिन्हें चाहे जान बूझकर या अनजाने में पकड़ा गया था, लेकिन इसकी वजह से उनकी मौत हो गई थी। गौरतलब है कि इनमें से 30 फीसदी यानी करीब ढाई करोड़ शार्क उन प्रजातियों से सम्बन्ध रखती हैं, जो पहले ही अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं।   

रिसर्च के दौरान जब उन शार्कों पर गौर किया गया, जिनकी शिकार के दौरान ठीक से पहचान नहीं हो पाई थी, तो 2019 में फिशिंग की वजह से मरने वाली शार्कों का कुल आंकड़ा बढ़कर 10.1 करोड़ तक पहुंच गया। यह तब है कि जब इस दौरान शार्कों को उनके पंखों के लिए किए जा रहे शिकार से बचाने के लिए कानूनों में दस गुणा इजाफा हुआ है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह सही है कि पंखों (फिन) के लिए बड़े पैमाने पर होते इनके शिकार को रोकने के दुनिया भर में प्रयास किए गए हैं, लेकिन इसके बावजूद वैश्विक स्तर पर शार्कों की आबादी कम हो रही है। इनके फिन की एशिया के कई देशों में बेहद मांग है। जहां शार्क-फिन सूप एक स्टेटस सिंबल तक बन गया है, जिसके महज एक कटोरे की कीमत 200 डॉलर से ऊपर जा सकती है।

तटीय क्षेत्रों में बढ़ रहा है शार्कों का शिकार

इस बारे में अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ शोधकर्ता डार्सी ब्रैडली का कहना है, "बड़ी मात्रा में शार्कों का किया जा रहा शिकार एक बड़ी वैश्विक समस्या है। यह ग्रह की कुछ सबसे प्राचीन और सम्मानित प्रजातियों के विलुप्त होने की वजह बन सकता है।" उनके मुताबिक इसके बेतहाशा होते शिकार पर अंकुश लगाने के लिए बनाए असंख्य नियमों के बावजूद हर साल पकड़ी जाने वाली शार्कों की संख्या कम होने की जगह बढ़ रही है।

शोध से पता चला है कि इनके शिकार में अधिकांश वृद्धि तटीय क्षेत्रों से हुई है। तटीय क्षेत्रों की यह गतिविधियां, दुनिया भर में फिशिंग के दौरान होने वाली शार्क की कुल मृत्युदर के 95 फीसदी के लिए जिम्मेवार हैं। 

आंकड़ों की मानें तो 2012 से 2019 के बीच तटीय क्षेत्रों में मछली पकड़ने के दौरान पकड़ी और मारी गई शार्कों की कुल संख्या में चार फीसदी का इजाफा हुआ है। इसके विपरीत खुले समुद्रों विशेष रूप से अटलांटिक और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में, पकड़ी और मारी गई शार्कों की संख्या में करीब 7 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। 

अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पकड़ी गई शार्कों की संख्या और विभिन्न देशों में इनकों पकड़ने के लिए बनाए नियमों के बीच के संबंधों का भी विश्लेषण किया है। इससे पता चला है कि इनकों पकड़ने पर लगाए प्रतिबन्ध और जिम्मेदार प्रशासन ही इनकी मृत्युदर में कमी लाने के एकमात्र उपाय थे। ब्रैडली के मुताबिक शार्कों के लिए अभयारण्य और इनके शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध इसमें मददगार साबित हो सकता है। 

शोध के मुताबिक आज वैश्विक स्तर पर करीब 70 फीसदी देशों और समुद्री क्षेत्रों में शार्क फिनिंग को रोकने के लिए नियम बनाए हैं। बता दें कि शार्क फिनिंग के चलते शार्क के पंखों को लेने के बाद उन्हें वापस समुद्र में फेंक दिया जाता था, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती थी। इनमें से कुछ नियम वो थे जो नब्बे के दशक में शुरू हुए थे।

आंकड़ों से पता चला है कि यह नियम अनजाने में कहीं ज्यादा शार्कों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पिछले दो वर्षों में जहां शार्क फिनिंग में थोड़ी कमी आई है, वहीं कुछ नियमों ने अनजाने में शार्क के मांस बाजार को बढ़ावा दिया है। फिन व्यापार और क्षेत्रीय तौर पर शार्कों में आती गिरावट के चलते अब मछुआरे किशोर और छोटी शार्कों को निशाना बना रहे हैं।

अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता बोरिस वर्म के मुताबिक, शोधकर्ता यह जानकर आश्चर्यचकित रह गए कि "शार्क के मांस, तेल और उपास्थि (कार्टिलेज) का व्यापार कितना आम है, और लोगों को पता चले बिना ही शार्क के कई हिस्सों को उत्पादों में उपयोग किया जा रहा है।"

जलवायु में आता बदलाव भी इन जीवों के लिए बन रहा है खतरा

जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक अन्य शोध से पता चला है कि जलवायु में आता बदलाव समुद्री जीवों के लिए भी खतरा बनता जा रहा है, जिससे शार्क, टूना जैसे शिकारी भी सुरक्षित नहीं हैं।

इस अध्ययन के मुताबिक, बढ़ते तापमान के साथ शार्क, टूना, मार्लिन और स्वोर्डफिश जैसी मछलियां अपने लिए उपयुक्त 70 फीसदी तक आवास क्षेत्रों को खो देंगीं। इसके चलते मजबूरन इन्हें मौजूदा बसेरों को छोड़ दूर जाना पड़ेगा। वहीं जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के हवाले से पता चला है कि समुद्री शार्क की 31 में से 16 प्रजातियां पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है जबकि इनकी तीन प्रजातियां समुद्री वाइटटिप शार्क, स्कैलप्ड हैमरहेड शार्क और ग्रेट हैमरहेड शार्क पर विलुप्त होने का गंभीर संकट हावी हो चुका है।

एक अन्य शोध के मुताबिक, पिछले 50 वर्षों में शार्क और रे मछलियों की आबादी 70 फीसदी से ज्यादा घट गई है। 

अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता लॉरेन शिलर का कहना है कि, “अत्यधिक विकसित समुद्री शिकारी होने के बावजूद, शार्क अविश्वसनीय रूप से कमजोर हैं। शार्क ने पृथ्वी पर अपना 99 फीसदी से अधिक समय मनुष्यों के बिना समुद्र में बिताया है, इसलिए कई मायनों में, वे हमारे और मछली पकड़ने के प्रभावों के लिए तैयार नहीं थी।"

उनके मुताबिक शार्क महासागरों को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण रूप से योगदान देती हैं। ऐसे में यदि हम इन प्रजातियों को खो देते हैं, तो इससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ सकता है।