वन्य जीव एवं जैव विविधता

यूपी में वन क्षेत्र खस्ताहाल फिर भी 632 नए लकड़ी उद्योगों को बांटे लाइसेंस

लकड़ी की कुल संभावित उपलब्धता की भ्रामक गणना के बाद एनजीटी ने 3000 करोड़ रुपये के निवेश वाले नए उद्योगों को स्थापित करने और सभी लाइसेंस को निरस्त कर दिया है।

Vivek Mishra

उत्तर प्रदेश में वन क्षेत्र की हालत खस्ता है फिर भी 1215 नए लकड़ी आधारित उद्योगों में 632 को प्रोविजनल लाइसेंस बांट दिया गया। एक गैर सरकारी संस्था सम्वित फाउंडेशन के जरिए यह मामला जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में पहुंचा तो 1 अक्तूबर, 2019 को प्रधान पीठ ने यथास्थिति का आदेश दिया और अब 18 फरवरी 2020 को सभी पक्षों और तथ्यों पर विचार करने के बाद निर्णायक आदेश में कहा कि यह गौर किया गया है कि यदि नए लकड़ी आधारित उद्योगों को लाइसेंस दिया गया तो न सिर्फ अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई बढ़ेगी बल्कि वन क्षेत्र की स्थिति और भी ज्यादा खराब हो जाएगी साथ ही यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी उल्लंघन होगा। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश किया गया लकड़ी की उपलब्धता का आंकड़ा वास्तविकता के बिल्कुल करीब नहीं है इसलिए नए उद्योगों को स्थापित करने और चलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली एनजीटी की प्रधान पीठ ने अपने आदेश में कहा कि “हम उत्तर प्रदेश सरकार के जरिए नए लकड़ी आधारित उद्योगों / आरा मिलों को स्थापित करने वाली 1 मार्च, 2019 को निर्गत की गई सूचना और सभी प्रोविजनल लाइसेंस को रद्द करते हैं।”

उत्तर प्रदेश सरकार और प्रोविजनल लाइसेंस हासिल करने वाले औद्योगिक ईकाइयों को इस आदेश से बड़ा झटका लगा है। सरकार ने नए लकड़ी आधारित उद्योगों की स्थापना और संचालन की जरूरत को लेकर अपनी दलील में कहा था कि यह कदम ग्रामीण क्षेत्रों में 80 हजार लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करेगा। इसमें 3,000 करोड़ रुपये का निवेश होगा और इससे 1200 करोड़ रुपये का टर्नओवर होगा।

सरकार ने यह दुहाई भी दी थी कि 1215 औद्योगिक ईकाइयों में जिन 632 को प्रोविजनल लाइसेंस दिया गया वे संचालन को बिल्कुल तैयार हैं। इन औद्योगिक ईकाइयों ने बैंक से कर्ज लेकर यह उद्योग शुरु किए हैं। इसलिए इन्हें राहत दी जाए। हालांकि, पीठ ने इस दलील को ठुकरा दिया।

वहीं याचीकर्ता ने कहा था नई आधुनिक मशीनें मौजूदा मशीनरी के मुकाबले चार गुना ज्यादा खपत करेंगी। जबकि उत्तर प्रदेश में दर्ज वन क्षेत्र (आरएफए) 16,592 वर्ग किलोमीटर है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 6.88 फीसदी है। यह लक्ष्य इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2019 के लक्ष्य 33 फीसदी से काफी कम है। ऐसे में नई इंडस्ट्री इस वन क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।

पीठ ने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित है “लकड़ी आधारित उद्योग/आरा मिलों को सिर्फ तभी संचालन की इजाजत मिल सकती है जब यह सुनिश्चित हो कि लकड़ी और कच्चे माल की उपलब्धता इन उद्योगों को जिंदा बनाए रख सकती हैं। यह सिर्फ अनुमान पर नहीं बल्कि वास्तविक गणना पर ही आधारित होगा। मौजूदा मामले में हमने पाया कि उत्तर प्रदेश का यह पक्ष स्वीकार करना मुश्किल है कि लकड़ी या कच्चे माल की उपलब्धता नए लकड़ी आधारित उद्योगों या आरा मिलों को टिकाए रखेंगी।”  

प्रधान पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 18 दिसंबर, 2019 को जो हलफनामा दाखिल किया है उसमें बताया गया है कि यूपी में प्रतिवर्ष लकड़ी की कुल संभावित उपलब्धता 80.30 लाख घन मीटर है, जिसमें 2.5 घन मीटर सरकारी वन और 77.74 लाख घन मीटर बाहरी क्षेत्र के पेड़ (टीओएफ) शामिल हैं। सरकार के मुताबिक 80.30 लाख घन मीटर लकड़ी की संभावित उपलब्धता में प्रमुख रूप से यूकेलिप्टिस (28 लाख घन मीटर) और पॉपुलर प्रजाति (15 लाख घन मीटर) शामिल है जो कि संयुक्त रूप से 43 लाख घन मीटर की हिस्सेदारी करता है।

जिन पेड़ों का लगाना तय नहीं वे भी गणना में शामिल

पीठ ने सरकार के इन आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए कहा कि एफसआई इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 77 लाख घन मीटर बाहरी लकड़ी की उपलब्धता बाहरी वनक्षेत्र से बताई गई है।  लकड़ी की संभावित उपलब्धता 77 लाख घन मीटर तब हो सकती है जब किसान उन पेड़ों को लगाएं। यह तस्वीर वास्तविक नहीं है बल्कि पूरी तरह भविष्यगत अनुमान पर आधारित है। साथ ही इस गणना में उन पेड़ों को भी बाहर नहीं किया गया जो संभव है कि तत्काल या नजदीक भविष्य में नहीं लगाए जाएंगे।

सरकार के दावे से उलट आधी ही लकड़ी उपलब्धता

पीठ ने कहा कि प्रजाति के आधार पर लकड़ी की संभावित उपलब्धता के ग्रोइंग स्टॉक ( दी गई संबंधित भूमि पर वन क्षेत्र और पेड़ों से हासिल हो सकने वाली लकड़ी) और उसकी रोटेशनल उम्र की गणना के लिए सरकार ने वॉन मैंटेल फॉर्मूले का इस्तेमाल किया है। वहीं राष्ट्रीय स्तर के सर्वे (भारतीय वन सर्वेक्षण) में मानक त्रुटि पांच फीसदी है जबकि राज्य स्तर में करीब 15 फीसदी। यदि जिलावार देखें तो यह त्रुटि 25 से 30 फीसदी है। प्रजाति के हिसाब से लकड़ी की उपलब्धता को लेकर की गई गणना में मानक त्रुटि काफी ज्यादा है।

सरकार ने बताया जरुरत से ज्यादा अनुमान

सरकार ने रिपोर्ट दाखिल करते हुए इस मानक त्रुटि को दिमाग में नहीं रखा। इस आधार पर यूकेलिप्टस और पापुलर प्रजाति से उद्योगों को लकड़ी की उपलब्धता 43 लाख घन मीटर नहीं बल्कि करीब 32 लाख घन मीटर होगी। वहीं, अन्य प्रजातियों से बमुश्किल 10 से 12 लाख घन मीटर ही लकड़ी की उपलब्धता हो पाएगी। इस प्रकार प्रत्येक वर्ष सभी प्रजातियों से उपभोग के लिए कुल लकड़ी की उपलब्धता अनुमानित 80.30 लाख घन मीटर के विरुद्ध महज 40 से 45 लाख घन मीटर ही है। पीठ ने सरकार के 77.74 लाख घन मीटर संभावित लकड़ी की उपलब्धता को जरूरत से ज्यादा लगाया गया अनुमान बताया है। पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र और पंजाब की तर्ज पर जिलावार प्रजाति व व्यास के हिसाब से इन्वेंटरी तैयार होनी चाहिए। यदि ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है तो इसे तैयार किया जाना चाहिए।