वन्य जीव एवं जैव विविधता

जंगली सुअर के जरिए फैल रहा है खतरनाक ट्रिचिनेल्ला परजीवी का संक्रमण

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के जंगलों में ट्रिचिनेल्ला से संक्रमित जानवरों की संख्या 24 हो चुकी है। यह खतरे की घंटी है।

Jyoti Pandey

खतरनाक ट्रिचिनेल्ला परजीवी का संक्रमण यूपी और उत्तराखंड के जंगलों में तेजी से बढ़ रहा है। साल भर के भीतर ही इस तरह के मामलों की संख्या दोगुनी हो गई है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के अध्ययन में यह बात सामने आई है। यह संक्रमण सुअर का भुना मांस खाने वाले इंसानों के लिए भी अपनी जद में ले सकता है।

आईवीआरआई के परजीवी विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक हीराराम पोर्क एसोसिएटेड जूनोटिक पैरासाइट नाम के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। हीराराम ने बताया कि 2017 तक उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 12 जानवरों में ट्रिचिनेल्ला का संक्रमण मिला था। उत्तरकाशी, देहरादून, हरिद्वार और पौड़ी के जंगलों में रहने वाले 7 तेंदुए में यह परजीवी पाया गया था। पांच संक्रमित जानवर उत्तर प्रदेश के जंगलों में पाए गए थे। अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के जंगलों में ट्रिचिनेल्ला से संक्रमित जानवरों की संख्या 24 हो चुकी है। यह खतरे की घंटी है।

हीराराम ने बताया कि यूपी में ट्रिचिनेल्ला संक्रमण का पहला मामला पीलीभीत के मृत जंगली सुअर में मिला था। पीलीभीत के दो मृत जंगली सुअरों के सैंपल आईवीआरआई में पोस्टमॉर्टम के लिए आए थे। इसमें एक सुअर में परजीवी संक्रमण मिला। एक मिलीमीटर से भी कम आकार के भारी संख्या में परजीवी मांस में रेंगते मिले। इसके बाद दुधवा नेशनल पार्क के कतर्नियाघाट से आए तेंदुए के शव में भी ट्रिचिनेल्ला संक्रमण मिला था।

सुअर और चूहे हैं परजीवी के वाहक

वैज्ञानिकों का कहना है कि सुअर और चूहे इस परजीवी के वाहक हैं। संक्रमित सुअर या चूहे को शेर, बाघ, तेंदुआ, लोमड़ी, भेड़िया खा लें तो वे भी संक्रमित हो सकते हैं। यह परजीवी जानवर का मांस गलने के बाद भी जिंदा रहता है और किसी जीव के शरीर में जाने के मात्र सात दिन के भीतर अपना जीवनचक्र पूरा कर लेता है। मृत जानवरों के अवशेष जंगल में पड़े रहते हैं। इसे कुत्ते या चूहे खाते हैं। कुत्तों को अक्सर शेर, तेंदुए और बाघ खा लेते हैं। इसी कारण से बाघ और तेंदुए में भी यह संक्रमण फैल रहा है। जंगलों में संक्रमित जानवरों के अवशेष सही से निस्तारित न होने के कारण इसका संक्रमण खतरनाक तरह से बढ़ा है।

इंसानों के लिए भी बना हुआ है खतरा

वैज्ञानिक हीराराम ने बताया कि पौड़ी में वर्ष 2011 में ट्रिचिनेल्ला परजीवी से इंसानी मौतें हो चुकी हैं। भोज में सुअर का मांस खाने वाले कई लोग 10 दिन बाद बीमार पड़े। इनमें से 11 लोगों की मौत हो गई। बचे लोगों ने बताया कि उन्होंने भोज में सुअर का मांस खाया था। इंसान किसी सुअर का संक्रमित मांस खाता है तो यह परजीवी इंसान के शरीर में प्रवेश कर जाता है। फिर यह फेफड़ों की परतों में और जहां मांस की अधिकता होती है वहां ठिकाना बनाता है। यह लगभग सात दिन में जीवन चक्र पूरा करता है। संक्रमण का समय से पता चलने पर ही इसका इलाज हो सकता है। 

सुअर का भुना मांस खाना संक्रमण को न्यौता

वैज्ञानिकों का कहना है कि सुअर का मांस खाने में डरने की जरूरत नहीं है। बशर्ते वह कुकर में अच्छी तरह से पका हुआ हो। कच्चा और भुना हुआ मांस पसंद करने वालों के लिए वाकई डरने की बात है। परजीवी भूने मांस में भी जीवित बचा रह सकता है। ट्रिचिनेल्ला इतना हठी परजीवी है कि फ्रीजर में डेढ़ महीने तक रखे जाने के बावजूद जिंदा पाया गया।