जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के चलते भारतीय जंगलों में आग लगने का खतरा बढ़ रहा है। यह जानकारी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन में सामने आई है।
इसमें कोई शक नहीं कि बढ़ता तापमान और जलवायु में आते बदलाव दुनिया के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं, भारत भी उनसे सुरक्षित नहीं है। यही वजह है कि इसके अलग-अलग प्रभाव देश में अलग-अलग रूपों में सामने आ रहे हैं। इसमें से एक है जंगल में धधकती आग का खतरा। आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि बढ़ते तापमान के साथ भारतीय जंगलों के आग से झुलसने का खतरा समय के साथ बढ़ता जाएगा।
अध्ययन के जो निष्कर्ष सामंने आए हैं उनसे पता चला है कि सदी के अंत तक हिमालयी क्षेत्र के साथ-साथ मध्य और दक्षिण भारत में फायर वेदर इंडेक्स (एफडब्ल्यूआई) में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। मतलब कि इन क्षेत्रों में दावाग्नि की घटनाएं पहले के मुकाबले बढ़ जाएंगी। आशंका है कि इन क्षेत्रों में आग लगने का सीजन 12 से 61 दिन बढ़ जाएगा।
कुल मिलकर देखें तो अध्ययन के मुताबिक देश के शुष्क जंगलों में, आग लगने के गंभीर खतरे वाले दिनों की संख्या 60 फीसदी तक बढ़ जाएगी, जबकि नम, आर्द्र जंगलों में, यह आशंका 40 फीसदी तक कम हो जाएगी।
वहीं यदि पूरे देश में जंगल में आग लगने की संभावना वाले समय की बात करें तो वो तीन से 61 दिनों के बीच बढ़ जाएगा, और मानसून से पहले, 55 फीसदी से अधिक जंगलों में आग का मौसम कहीं ज्यादा विकराल रूप ले लेगा।
इस बढ़ते खतरे को समझने के लिए आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने भविष्य के जलवायु अनुमानों का एक बहुत ही हाई रिजॉल्यूशन डेटा सेट तैयार किया है। उन्होंने इन आंकड़ों का उपयोग भारत के वन क्षेत्रों के लिए फायर वेदर इंडेक्स (एफडब्ल्यूआई) की गणना के लिए किया है।
बढ़ते तापमान से भारतीय जंगलों में बढ़ जाएगा आग का खतरा
शोधकर्ताओं के मुताबिक जो नतीजे सामने आए हैं वो इस तथ्य से मेल खाते हैं कि बढ़ते तापमान से जंगल में आग लगने का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन साथ ही अध्ययन में एक और जो दिलचस्प बात सामने आई है वो यह है कि पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्व के कुछ हिस्सों के आर्द्र उष्णकटिबंधीय वनों में बढ़ते तापमान के बावजूद बारिश और आद्रता बढ़ जाएगी।
इसके चलते तापमान बढ़ने के बावजूद इन क्षेत्रों में फायर वेदर इंडेक्स में गिरावट देखने को मिलेगी। मतलब कि आग लगने की घटनाएं कम हो जाएंगी। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल कम्युनिकेशन्स अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं।
सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज के प्रमुख और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर डॉक्टर सोमनाथ बैद्य रॉय ने भारतीय जंगलों में आग लगने की घटनाओं की विस्तृत जांच करने की आवश्यकताओं पर जोर दिया है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारतीय जंगलों में लगने वाली आग को समझने और उसे रोकने के लिए देश में जलवायु और जंगलों की विविधता को बहुत करीब से देखने की जरूरत है। उनके मुताबिक कम विवरण वाले व्यापक वैश्विक अध्ययन हमारी आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
देखा जाए तो वो हम इंसान ही हैं जो इन बदलावों के लिए जिम्मेवार हैं। आज इंसानी गतिविधियों के चलते पृथ्वी की जलवायु में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहें हैं जिसका खामियाजा सभी जीवों को भुगतना पड़ रहा है। अनुमान है कि जिस तरह से वैश्विक उत्सर्जन में होती वृद्धि जारी है। उसकी वजह से धरती बड़ी तेजी से गर्म हो रही है और तापमान बढ़ने का यह सिलसिला भविष्य में भी जारी रहेगा।
रिसर्च में सामने आया है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते तापमान, बारिश, हवा की गति और सापेक्ष आर्द्रता में बदलाव आने की आशंका है, इसके साथ ही भविष्य में जंगलों में लगती आग की घटनाओं में भी बदलाव आ जाएगा।