वन्य जीव एवं जैव विविधता

उष्णकटिबंधीय जंगलों को काट कर ताड़ के पेड़ लगाना ठीक नहीं: अध्ययन

Dayanidhi

दुनिया भर में वनों को काटने से कई उष्णकटिबंधीय जंगल प्रभावित हो रहे हैं, ऐसे कटे हुए जंगलों को कमतर आंका जाता है। क्योंकि यहां के जंगलों से वनस्पति संरचना, बायोमास और जमा कार्बन का नुकसान हो चुका होता है। लेकिन शायद ही कभी इस बात का विश्लेषण किया गया हो कि क्या इन पारिस्थितिकी तंत्रों के स्वास्थ्य और कार्यक्षमता पर इसका समान रूप से प्रभाव पड़ता है।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि वर्षावन उनके स्वस्थ पारिस्थितिकी कार्य के खजाने हैं। यहां तेल के लिए पेड़ों को काटने तथा उनकी जगह पर ताड़ का वृक्षारोपण करना ठीक नहीं है।

मुख्य अध्ययनकर्ता और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पर्यावरण परिवर्तन संस्थान में पारिस्थितिकी तंत्र विज्ञान के प्रोफेसर यदविंदर मल्ही कहते हैं, हम इस बात से बहुत हैरान थे कि पुराने जंगल की तुलना में काट छांट किए गए इन वनों के माध्यम से कितनी अधिक ऊर्जा प्रवाहित हो रही थी और यह पुराने पेड़ों के विकास वाले जंगलों में पाई जाने वाली अलग-अलग प्रकार की प्रजातियों की तरह बढ़ती रहती है।

ये जंगल ऊर्जावान पारिस्थितिक तंत्र हैं, यहां उगने वाले पौधों से स्तनधारी जीव अपना पेट भरते हैं और इन पेड़ों पर लगने वाले फलों को पक्षियों खाते हैं। शोधकर्ताओं ने बोर्नियो में तेल के लिए किए जा रहे ताड़ के वृक्षारोपण तथा काटे गए उभरते पुराने जंगलों से 248 कशेरुक प्रजातियों की आबादी के आंकड़ों के साथ 36,000 से अधिक पेड़, जड़ और इनसे घिरे इलाके की माप की।

अध्ययन में पाया गया कि तेल वाले ताड़ के वृक्षारोपण करने से पहले काटे गए इन पुराने जंगलों के द्वारा पारिस्थितिकी में ऊर्जा प्रवाह ताड़ के पेड़ों की तुलना में 2.5 गुना अधिक था।

अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया हैं कि पुराने जंगल पारिस्थितिकी के हिसाब से अभी भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, ये कार्बन की बड़ी मात्रा को जमा रखते हैं और जहां तक संभव हो, जंगलों को बरकरार रखने की जरूरत है। लेकिन यह अध्ययन उन घने जंगलों को कमतर आंकने पर सवाल उठाता है, जबकि वे पारिस्थितिक रूप से जीवंत होते हैं। 

प्रोफेसर मल्ही ने कहा कि उष्णकटिबंधीय जंगलों में और शायद कई अन्य पारिस्थितिकी तंत्रों में, जो कुछ भी टूटा हुआ दिखता है, वह टूटा हुआ नहीं है।

अध्ययन में जंगल के दूर-दूर तक लगभग सभी पक्षी और स्तनपायी प्रजातियों की सावधानीपूर्वक गणना करने के साथ-साथ पेड़ों और उनकी पत्तियों और जड़ों की वृद्धि दर को मापने की जरूरत थी।

केंट विश्वविद्यालय में संरक्षण विज्ञान के सह-अध्ययनकर्ता डॉ. मैथ्यू स्ट्रूबिग ने कहा कि सुबह में, पक्षी विज्ञानी पक्षियों के बारे में जानकारी लेते थे, जबकि शामें विशेष जाल में चमगादड़ों को पकड़ने में बिताई जाती थीं। इस बीच, कैमरे और पिंजरे और जाल के साथ 77,000 से अधिक रातें बिताई, जिनमें पेड़ में रहने वाले शांत से लेकर शोर मचाने वाले जीवों, सन बेयर और हाथियों से गुप्त और मायावी स्तनधारियों के बारे में बहुत आवश्यक जानकारी हासिल की गई।

एक्सेटर विश्वविद्यालय में सह-अध्ययनकर्ता डॉ. टेढ़ी रिउट्टा ने कहा, मलेशिया में हमारे साथ काम करने वालों और शोध सहायकों के कई वर्षों के विस्तृत फील्डवर्क, कठिन परिस्थितियों में किए गए सहयोग के बिना यह काम संभव नहीं था।

इंपीरियल कॉलेज लंदन में जीवन विज्ञान विभाग के सह-लेखक प्रोफेसर रॉबर्ट इवर्स ने कहा, पारिस्थितिकी विज्ञानी अक्सर एक पारिस्थितिकी तंत्र के एक पहलू का अध्ययन करते हैं, जैसे कि इसके पेड़ या इसके पक्षी। यह अध्ययन यहां रहने वाली की हर जीवंत चीज को सावधानीपूर्वक सामने लाता है।

यह अध्ययन प्रजातियों की बड़ी श्रृंखला लोगों के हावी रहने वाली दुनिया पारिस्थितिक तंत्र की प्रकृति में आश्चर्यजनक और महत्वपूर्ण नई जानकारी प्रदान कर सकती है। यह अध्ययन नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।