वन्य जीव एवं जैव विविधता

आवरण कथा: क्या गायब हो गए हैं 2.59 करोड़ हेक्टेयर में फैले जंगल

Sunita Narain

हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग एजेंसी ने करीब चार दशक पहले 1980 के दशक के मध्य में सैटेलाइट तस्वीरों के माध्यम से भारत के हरित आवरण (ग्रीन कवर) पर एक रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट में 1972-75 और 1980-82 के बीच वन आवरण (फॉरेस्ट कवर) का तुलनात्मक अध्ययन किया गया था और इसमें पाया गया था कि इस सात वर्षीय अवधि में भारत हर साल 13 लाख हेक्टेयर का वन क्षेत्र खो रहा है। यह अनुमान वन विभाग के वार्षिक अनुमान से अधिक था और इसने देश को चौंकाया भी। इसमें पहली बार आकाश से घटते वन आवरण की स्थिति की तस्वीर पेश की गई। इसने वन संरक्षण की कार्रवाई को बल दिया और वनीकरण की महती भूमिका पर रोशनी डाली। जल्द ही देहरादून स्थित भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) को कहा गया कि वह हर दो साल में भारत की हरित संपदा का मूल्यांकन प्रस्तुत करे।

ऐसी रिपोर्ट महत्वपूर्ण होती हैं क्योंकि इससे वनों के स्वास्थ्य की जानकारी मिलती है। यह जानकारी भारत जैसे देशों में आजीविका, आर्थिक विकास और कार्बन संकेंद्रण की दृष्टि से अहम होती है। भारत के जंगलों में बड़े पैमाने पर सबसे गरीब आबादी भी बसती है।



1988 में एफएसआई ने पहली बार “स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट” प्रकाशित की थी। तब से सैटेलाइट की क्षमता और वनों की व्याख्या में लगातार सुधार हुआ है लेकिन देश के वन आवरण की स्थिति के मामले में ऐसा नहीं है। मैं इसे विस्तार से समझाती हूं।

13 जनवरी 2022 को जारी हुई “इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021” (आईएसएफआर 2021) में 2019 और 2021 के दौरान वन आवरण में 1.6 लाख हेक्टेयर (0.2 प्रतिशत) की मामूली वृद्धि दिखाई गई है (देखें, नगण्य बढ़ोतरी)। वनों की गुणवत्ता भी स्थिर दिखाई दे रही है। यहां तक कि “अति सघन” वनों की श्रेणी (70 प्रतिशत से अधिक वितान आवरण अर्थात कैनोपी कवर) और “खुले” वन श्रेणी (10-40 प्रतिशत वितान आवरण) में कुछ हद तक वृद्धि हुई है। साथ ही “मध्यम” घने वन श्रेणी (40-70 प्रतिशत वितान आवरण) में भी लगभग समान वृद्धि हुई है। आप तर्क दे सकते हैं कि यह सटीक विश्लेषण-आलोचना अथवा प्रशंसा नहीं है। लेकिन यहां कुछ तथ्य गौर करने वाले हैं। पहला, ज्यादातर वन रिकॉर्डेड फॉरेस्ट अथवा अभिलिखित वन क्षेत्र (राज्य सरकारों के वन विभाग के अधीन वन भूमि) के बाहर उग रहे हैं। दूसरा, अधिकांश वन आईएसएफआर 2021 में वर्गीकृत “आदिवासी” क्षेत्रों में केंद्रित हैं। तीसरा, वन के बाहर के पेड़ों की गणना कर रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र बढ़ रहा है। चौथा, यहां तक कि रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र के बाहर वन स्टॉक बढ़ रहा है। आइए, अब इन तथ्यों का बिंदुवार विश्लेषण करते हैं।



‘खुले’ और ‘बाहर’ बढ़ते वन

आईएसएफआर 2015 में सबसे पहले रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र से बाहर के वन आवरण का विश्लेषण किया गया। दूसरे शब्दों में कहें तो यह पहली रिपोर्ट थी जिसमें राज्य सरकारों के वन विभाग के अधीन आने वाले वनों से बाहर के वनों का विश्लेषण किया गया। शुरुआत में राज्यों के वनों की डिजिटाइज्ड सीमा की अनुपस्थिति में भारतीय सर्वेक्षण विभाग की टोपोग्राफिकल (स्थलाकृतिक) शीट का इस्तेमाल हुआ। इसमें हरे रंग में दर्शाए गए ग्रीन वॉश नामक क्षेत्र को प्रदर्शित किया गया और इसे मोटे तौर पर रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र मान लिया गया। इस तरह रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र और बाहर के वनों के बीच अंतर स्पष्ट किया जा सकता है। जब आईएसएफआर 2021 रिपोर्ट जारी की गई, तब तक 24 वन विभागों ने अपने अधीन वन क्षेत्रों की डिजिटाइज्ड सीमा उपलब्ध करा दी थी। इससे इस विश्लेषण में और सुधार हो गया।



आईएसएफआर 2021 के अनुसार, करीब 28 प्रतिशत वन आवरण रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र के बाहर है। करीब 12 प्रतिशत अति सघन श्रेणी का वन भी रिकॉर्डेड फॉरेस्ट से बाहर है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि 2019 से 2021 के बीच वन आवरण में वृद्धि मुख्यत: रिकॉर्डेड फॉरेस्ट के बाहर के वनों की वृद्धि के कारण है। रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र के वन आवरण में वृद्धि न के बराबर है जबकि बाहर के वनों में 0.76 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह वृद्धि “खुले वन” श्रेणी में वृद्धि का नतीजा है। 2021 तक 1.178 करोड़ हेक्टेयर वन आवरण यानी देश के कुल वन आवरण का 16.5 प्रतिशत खुले वन श्रेणी के अंतर्गत आता है। यह रिकॉर्डेड क्षेत्र से बाहर है। यह असंतुलित वृद्धि वन आवरण की विवादित परिभाषा के कारण है। एफएसआई के अनुसार, अगर किसी भी एक हेक्टेयर जमीन पर वृक्ष वितान घनत्व (ट्री कैनोपी डेंसिटी) 10 प्रतिशत या अधिक है तो उसे वन माना जाएगा। अनुमान है कि 40 प्रतिशत खुले वन रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र के बाहर हैं। पूरी संभावना है कि ये वे क्षेत्र हैं, जहां चाय, कॉफी और अन्य निजी बागान हैं जिन्हें वन का हिस्सा मान लिया गया है।



स्थिर वन, लेकिन कहां?

साल 2021 में भारत का कुल वन आवरण बढ़कर 7.138 करोड़ हेक्टेयर हो गया जो देश के कुल भोगौलिक क्षेत्रफल का 22 प्रतिशत है। अगर श्रेणीवार बात करें तो अति सघन वन (70 प्रतिशत से अधिक वितान घनत्व) करीब 1 करोड़ हेक्टेयर, जबकि मध्यम घने व खुले वन करीब 3-3 करोड़ हेक्टेयर यानी 9 प्रतिशत हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस वन संपदा का करीब 60 प्रतिशत कुल वन आवरण और 73 प्रतिशत अति सघन वन उन जिलों में केंद्रित हैं जिन्हें आईएसएफआर 2021 में “आदिवासी” के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ये जिले संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल हैं क्योंकि यहां अनुसूचित जनजातियों की रिहाइश है। ऐसे 218 जिले हैं जो उत्तरपूर्वी राज्यों से मध्य भारत तक फैले हैं। प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध इन इलाकों में भारत की सबसे गरीब आबादी बसती है। यहां सामुदायिक आजीविका के अवसरों को वनों से तत्काल जोड़ने की जरूरत है।

पेड़ों का बढ़ना अच्छी खबर

आईएसएफआर 2003 के द्विवार्षिक सर्वेक्षण से वनों के बाहर पेड़ (टीओएफ) श्रेणी को शामिल किया जा रहा है। इस श्रेणी में एक हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल में टुकड़ों में फैले और अलग-थलग उगे पेड़ों को भी वन आवरण में शामिल कर लिया गया है। अंत: वन आवरण में सभी क्षेत्र शामिल हैं। इसमें स्वामित्व को नजरअंदाज किया गया है, चाहे वह एक हेक्टेयर से अधिक हो। टीओएफ में वनों के बाहर के पेड़ों की गणना की जाती है, भले ही उसके आकार को नजरअंदाज करना पड़े। इस तरह के बिखरे हुए पेड़ों की गणना उच्च रेजोल्यूशन डाटा और फील्ड इनवेंट्री डाटा की मदद से की जाती है। समग्र रूप से ये पेड़ लगभग 1 करोड़ हेक्टेयर भूमि क्षेत्र में हैं (देखें, गिनो और जोड़ो)। इस तरह 2021 में वन और रिकॉर्डेड फॉरेस्ट के बाहर के पेड़ देश के 8.9 प्रतिशत क्षेत्र में फैले हैं। यह देश के हरित आवरण का करीब 36 प्रतिशत है।

वनों के बाहर बढ़ता स्टॉक

वन स्टॉक का अनुमान वन क्षेत्र में सभी जीवित पेड़ों की मात्रा के आधार पर लगाया जाता है। यह टिकाऊपन-वनों की उत्पादकता को मापने का एक महत्वपूर्ण संकेतक है और इसी के आधार पर बायोमास और कार्बन स्टॉक की गणना होती है। आईएसएफआर 2021 ने जंगलों के अंदर 18,218 सैंपल प्लॉट और बाहर 41,630 सैंपल प्लॉट के आधार पर बढ़ते स्टॉक की गणना की है। यह कहता है कि 2019 की तुलना में देश में 4 प्रतिशत स्टॉक की वृद्धि हुई है। इसमें ज्यादातर वृद्धि रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र से बाहर हुई है। कुल 251 क्यूबिक मीटर की वृद्धि में से 137 क्यूबिक मीटर की बढ़ोतरी वनों से बाहर हुई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि जब बढ़ते स्टॉक के संदर्भ में तुलना की जाती है तो जंगल के बाहर पेड़ों वाली भूमि अधिक उत्पादक (61.35 क्यूबिक मीटर प्रति हेक्टेयर) होती है, जो रिकॉर्डेड फॉरेस्ट (56.60 घन मीटर प्रति हेक्टेयर) की तुलना में अधिक है। (देखें, पेड़ों की संख्या,)।

आप अब भी तर्क दे सकते हैं कि भारत में वनों की स्थिति ठीक है। लेकिन क्या सच में ऐसा है?