वन्य जीव एवं जैव विविधता

देश में स्वर्ण अयस्क का सुरक्षित भंडार 50 करोड़ टन: सरकार

बिहार में सबसे ज्यादा है स्वर्ण अयस्क, उसके बाद राजस्थान और कर्नाटक में

DTE Staff

नेशनल मिनरल इंवेंटरी डाटा के मुताबिक देश में 1 अप्रैल 2015 तक स्वर्ण अयस्क का कुल भंडार 50.183 करोड़ टन है। इनमें से 1.722 करोड़ टन को सुरक्षित श्रेणी में और शेष को संसाधनों की श्रेणी में रखा गया है। यह जानकारी केंद्रीय कोयला खनन मंत्री प्रल्हाद जोशी ने 26 जुलाई 2021 को राज्यसभा में दी ।

उन्होंने बताया कि संसाधनों की श्रेणी वाले स्वर्ण अयस्क का सबसे बड़ा हिस्सा यानी 44 फीसद बिहार में, उसके बाद 25 फीसद राजस्थान में और 21 फीसद कर्नाटक में मौजूद है। इसके बाद पश्चिम बंगाल और  आंध्र प्रदेश में 3-3 फीसद और झारखंड में यह 2 फीसद है। अयस्क का शेष 2 फीसदी हिस्सा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में स्थित है। सोने समेत अन्य धातुओं की खुदाई में आने वाला खर्च खान की प्रकृति पर निर्भर करता है।

केंद्रीय मंत्री के मुताबिक, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) संभावित खनिज समृद्ध क्षेत्रों की पहचान करने और संसाधनों को स्थापित करने के लक्ष्य से विभिन्न खनिज वस्तुओं की खोज और सर्वेक्षण के बाद भूवैज्ञानिक मानचित्रण में सक्रिय तौर पर लगा हुआ है। हर साल फील्ड सीजन कार्यक्रम की अनुमति के अनुसार जीएसआई खनिज संसाधनों के परिवर्धन के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में खनिजों के अन्वेषण की परियोजनाएं चलाता है।

उन्होंने कहा कि हाल ही में केंद्र सरकार ने सोने सहित अन्य धातुओं की ख्ुादाई खनिजों से संबंधित नियमों में संशोधन किया है, जिससे गहराई में दबी सोने समेत अन्य धातुओं के लिए जी-4 स्तर का लाइसेंस देने के लिए नीलामी की जा सके। इससे खनिजों की खोज  और खनन के क्षेत्र में उन्नत तकनीक के साथ निजी खिलाड़ियों की ज्यादा भागीदारी होने के आसार हैं, जिससे सोने को निकालने में लगने वाली लागत कम होने की उम्मीद है।

इससे पहले 19 जुलाई को जोशी ने राज्यसभा में जानकारी दी थी कि केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के मुताबिक, 2020-21 में थर्मल पॉवर स्टेशनों को कुल 59.60 करोड़ टन कोयले की प्राप्ति हुई थी। इसमें से 44.49 करोड़ टन कोयले की आपूर्ति कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा की गई थी। पॉवर सेक्टर को मिलने वाले कुल कोयले का यह लगभग 75 फीसद था। कोल इंडिया लिमिटेड का निजी खदानों पर कोई नियंत्रण नहीं है क्योंकि वे उसके अधिकार-क्षेत्र में नहीं आते।

2020-21 में 12 जुलाई 2021 तक कोल इंडिया लिमिटेड के पास उसकी खदानों के निकासों पर 5.9 करोड़ टन कोयले का भंडार था जबकि पॉवरहाउसों के पास 2.5 करोड़ टन कोयले का भंडार था। आने वाले महीनों में जब कोयले की मांग बढ़ेगी तो कोयले का उत्पादन भी बढ़ने की उम्मीद है, जिसके चलते मौजूदा वित्तीय वर्ष के बाकी बचे दिनों में कोयले का भंडार भी बढ़ने के आसार हैं।

सरकार के मुताबिक, पॉवर सेक्टर की जरूरतों को पूरा करने के लिए कोल इंडिया लिमिटेड के पास कोयले का पर्याप्त भंडार है। उसने पिछले तीन सालों में पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए कोयला निकालने के लिए बहु-स्तरीय रणनीति तैयार की है। इसके तहत आवागमन के लिए उसने तुलनात्मक तौर पर रेलमार्ग का उपयोग बढ़ाया है। कोयले के आवागमन का लगभग 80 फीसद गैर-सड़क मार्गों से किया जाता है।

2020-21 में 32.5 करोड़ टन कोयले के आवागमन के लिए रेलमार्ग का इस्तेमाल किया गया जबकि 13.1 करोड़ टन कोयला सड़क मार्ग से भेजा गया। रेल मार्ग का इस्तेमाल करने से कई तरह के फायदे हैं, जिसमें यातायात में जाम न लगाना, कम सड़क दुर्घटनाएं और वायु गुणवत्ता पर कम असर आदि शामिल है। इसी सत्र में कोयले के भंडार के लिए तीन कोष्ठागार भी तैयार किए गए, जिससे इसे क्षेत्र की आधारभूत संरचना और मजबूत हुई है।

कोयले के आवगमन और उसकी लदाई के तंत्र को आधुनिक बनाने के लिए कोल इंडिया लिमिटेड ने ‘फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी’ परियोजनाओं के तहत कई कदम उठाए हैं। ‘फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी’ परियोजना, कोयला खदान के निकासी केंद्र से शुरू कर उस जगह तक के आवागमन को कहा जाता है, जहां कोयले को पहुंचाना होता है।