वन्य जीव एवं जैव विविधता

नई-नई महामारियों को रोकने की चाबी है जैव विविधता का संरक्षण: अध्ययन

वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने प्राकृतिक क्षेत्रों को संरक्षित करके और जैव विविधता को बढ़ावा देकर अगली महामारी को कैसे रोका जाए, इसके लिए एक खाका तैयार किया है

Dayanidhi

25 वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने प्राकृतिक क्षेत्रों को संरक्षित करके और जैव विविधता को बढ़ावा देकर अगली महामारी को कैसे रोका जाए, इसके लिए एक खाका या रोडमैप का सुझाव दिया है। इससे जानवरों को पर्याप्त भोजन, सुरक्षित आश्रय और संपर्क सीमित करने और मनुष्यों में रोगजनकों के फैलने को सीमित करने के लिए दूरी प्रदान की जा सकती है। 

महामारी तब शुरू होती है जब रोग फैलाने वाले जीव जैसे चमगादड़, लोगों, मवेशियों या अन्य जानवरों के करीब आते हैं और नए रोगजनकों को फैलाते हैं। सार्स-सीओवी-2, सार्स-सीओवी-1, निपाह, हेंड्रा और इबोला जैसे वायरस घातक रूप से चमगादड़ से मनुष्यों तक पहुंचे हैं।

नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया का ध्यान इस बात पर केंद्रित है कि जब कोई नया रोगजनक मनुष्यों में फैल रहा होता है तो हम उसका कैसे पता लगा सकते हैं और फिर उस पर काबू कैसे पा सकते हैं, न कि हम उस रोगजनक को मानव आबादी में प्रवेश करने से कैसे रोक सकते हैं। 

महामारी-रोकथाम की रणनीति 2022 के अध्ययनों पर आधारित है जो संभावित रूप से जूनोटिक बीमारियों वाले सभी जानवरों पर लागू होने वाले केस स्टडी के रूप में काम करती है।

अध्ययन बताता है कि चमगादड़ कैसे घोड़ों और लोगों में घातक हेंड्रा वायरस फैला सकते हैं। जब चमगादड़ अपने प्राकृतिक आवास और सर्दियों के भोजन स्रोतों को खो देते हैं, तो उनकी बड़ी आबादी बिखर जाती है और वे छोटे समूहों में कृषि और शहरी क्षेत्रों में चले जाते हैं। वे तनावग्रस्त भी हो जाते हैं, आंशिक रूप से अपर्याप्त भोजन स्रोतों के कारण और वे अपने मूत्र के द्वारा अधिक वायरसों को बहाते हैं। वायरस जमीन पर गिरता है जहां चरने वाले घोड़े संक्रमित हो जाते हैं, बदले में घोड़े लोगों को संक्रमित कर सकते हैं।

लेकिन जब प्राकृतिक आवास पर्याप्त भोजन प्रदान कर सकते हैं, खासकर परती सर्दियों के महीनों में तो चमगादड़ इन आवासों में लौट आते हैं, बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं और वायरस फैलाना बंद कर देते हैं।

रोडमैप पर्यावरणीय बदलावों और जानवरों से मनुष्यों में रोगजनकों के फैलाव को जोड़ने वाले तंत्रों को समझाने के लिए इसका और अन्य अध्ययनों का उपयोग किया गया है। इन संबंधों को बाधित करने के लिए पारिस्थितिक हस्तक्षेपों की पहचान करता है और उन्हें लागू करने के लिए नीतिगत ढांचे की पहचान करता है।

पारिस्थितिक हस्तक्षेप उन स्थानों की रक्षा से शुरू होता है जहां जानवर खाते हैं। अध्ययन में अध्ययनकर्ता ने कहा, हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि साल के सभी समय में भोजन की प्रचुर आपूर्ति हमेशा उपलब्ध रहे, खासकर जब जानवर प्रजनन और प्रवास जैसे चरणों में हों।

इसके बाद यह संरक्षित करना महत्वपूर्ण है कि जानवर कहां बसेरा कर सकते हैं या एकत्र हो सकते हैं, क्योंकि हजारों चमगादड़ गुफाओं में बसेरा कर सकते हैं, इसलिए जब इन क्षेत्रों में गड़बड़ी होती है तो ये आबादी बिखर सकती है, दूसरी जगहों पर जा सकती है और अधिक वायरस फैला सकती है।

इसके अलावा, गुफा में रहने वाले चमगादड़ों के पास जाने के लिए अन्य गुफाएं नहीं होती हैं। ऐसी स्थिति में वे वहीं रहते हैं और अधिक तनावग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे में उनके अधिक वायरस फैलाने के आसार होते हैं।

लोगों और वन्यजीवों के बीच बफर के रूप में कार्य करने वाली भूमि की रक्षा करना भी महत्वपूर्ण है। प्रकृति में खरबों सूक्ष्मजीव हैं, लेकिन हम वास्तव में शायद ही कभी बीमार पड़ते हैं, क्योंकि हमारे और नए रोगजनकों के बीच कई बाधाएं हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि उन आबादियों के लिए जो जानवरों के संपर्क में आते हैं, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि लोगों को रोगजनकों के संपर्क से बचने के लिए सुरक्षा मिले। 

अध्ययन में अध्ययनकर्ता एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी या पैनल की आवश्यकता पर जोर देते हैं जो महामारी की रोकथाम, तैयारियों और प्रतिक्रिया पर आंकड़ों का आकलन और संश्लेषण कर सके और परिदृश्य, पारिस्थितिक अखंडता और जैव विविधता की अक्षुण्णता पर और आंकड़े एकत्र कर सके।