23 दिसंबर 2019 को झारखंड विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार का बड़ा कारण आदिवासियों का गुस्सा व आक्रोश बताया जा रहा है। हालांकि कुछ विधानसभा क्षेत्रों में मतगणना जारी है लेकिन मुख्यमंत्री रघुबर दास हार के कगार पर हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संभावित मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बधाई दे चुके हैं।
चुनाव के दौरान राज्य भर में यात्रा करने वाले चुनाव विशेषज्ञ आशीष रंजन ने कहा कि रघुबर दास सरकार से आदिवासी समुदाय नाराज था। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने आदिवासी भूमि के अधिग्रहण के लिए कई कानूनी बदलाव शुरू किए थे। इससे समुदाय को डर था कि उनसे उनकी छीन ली जाएगी।
भाजपा सरकार ने हाल ही में 'मोमेंटम झारखंड' नामक एक कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसके तहत उद्योगपतियों को झारखंड में निवेश के लिए आमंत्रित किया गया था। इसके लिए, सरकार ने 21,000 एकड़ भूमि को चिन्हित किया था और उद्योगपतियों को अपनी सुविधा के अनुसार भूखंड चुनने के लिए कहा था।
भूमि का अधिग्रहण करने के लिए सरकार ने 2016 में छोटा नागपुर लैंड टेनेंसी एक्ट, 1908 और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट, 1949 में संशोधन करने की कोशिश की थी। हालांकि भारी विरोध के बाद राज्य के राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
विरोध प्रदर्शन के दौरान कई आदिवासियों ने अपने गांव के बाहर विशालकाय पट्टिकाएँ लगाई थीं, उन्होंने ग्राम सभा को एकमात्र संप्रभु प्राधिकरण घोषित किया था और बाहरी लोगों को गांवों में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
आदिवासियों का यह विरोध 'पत्थलगड़ी विद्रोह' के नाम से प्रसिद्ध हुआ और खोंटी, चाईबासा, लातेहार, लोहरदगा, शिमदेगा और अन्य जिलों में यह विरोध देखा गया।
आदिवासी कार्यकर्ता सुनील मिंज ने कहा कि सरकार ने कम से कम 10,000 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी और कई लोग अभी भी जेल में हैं। मिंज ने कहा कि आदिवासी, जो राज्य की 28 सीटों पर हावी थे, अब खुश हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि अब उनकी जमीन बच जाएगी।
उन्होंने कहा कि हालांकि शहर के लोग रघुवर दास सरकार से नाराज नहीं थे और वे केंद्र सरकार का समर्थन कर रहे थे। बावजूद इसके कुछ लोग महंगाई और बेरोजगारी बढ़ने से चिंतित जरूर थे।