वन्य जीव एवं जैव विविधता

एशियाई सरीसृपों की जैवविविधता में एक और इजाफा, चीन में खोजी गई छिपकली की एक नई प्रजाति

शोधकर्ताओं के मुताबिक इस नई खोजी गई प्रजाति कैलोट्स वांगी की लम्बाई नौ सेंटीमीटर से कम है और इसकी कुछ खास विशेषताओं में से एक इसकी नारंगी जीभ है

Lalit Maurya

वैज्ञानिकों ने चीन में छिपकली की एक नई प्रजाति के पाए जाने की पुष्टि की है। इस तरह एशिया में सरीसृपों की समृद्ध जैवविविधता में एक और नया जीव जुड़ गया है। वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति को ‘कैलोट्स वांगी’ या वांग के बगीचे की छिपकली नाम दिया है। बता दें कि छिपकली की इस नई खोजी गई प्रजाति को आधिकारिक तौर पर ओपन-एक्सेस जर्नल जूकीज में एक नई प्रजाति के रूप में दर्ज किया गया है।

इंसानों के लिए प्रकृति किसी अबूझ पहेली से कम नहीं, जितना ज्यादा हम इसे समझते जाते हैं उतनी ही नई चीजे हमारे सामने आती जाती हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिक इसे ज्यादा से ज्यादा समझने का प्रयास करते रहते हैं। इसी का परिणाम है कि आए दिन कोई न कोई नई प्रजाति हमारे सामने आती रहती है।

इसके खोज के बारे में रिसर्च से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता योंग हुआंग ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए बताया कि “2009 से 2022 के बीच हमने दक्षिणी चीन में क्षेत्रीय सर्वेक्षण किए थे। इस दौरान कैलोट्स वर्सिकलर प्रजाति के कई नमूने भी एकत्र किए गए।"

उनके मुताबिक इन पर की गई रिसर्च से पता चला है कि जिसे शोधकर्ता शुरू में दक्षिण चीन और उत्तरी वियतनाम में पाई जाने वाली कैलोट्स वर्सिकलर समझ रहे थे, वास्तव में वो छिपकली की एक नई प्रजाति है।

कैलोट्स वांगी का एक होलोटाइप; फोटो: हुआंग एट ऑल/ जर्नल जूकीज

कैसे छिपकली की दूसरी प्रजातियों से अलग है कैलोट्स वांगी

शोधकर्ताओं के मुताबिक इस नई खोजी गई प्रजाति कैलोट्स वांगी की लम्बाई नौ सेंटीमीटर से कम है और इसकी कुछ खास विशेषताओं में से एक इसकी नारंगी जीभ है। इसके बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए शोधकर्ताओं ने अध्ययन में बताया है कि इस प्रजाति के आवास क्षेत्रों में आमतौर पर दक्षिणी चीन और उत्तरी वियतनाम के उपोष्णकटिबंधीय सदाबहार और उष्णकटिबंधीय मानसूनी जंगल शामिल हैं।

यह छिपकलियां आमतौर पर पहाड़ी इलाकों के साथ-साथ जंगल के किनारों, कृषि योग्य भूमि, झाड़ीदार हिस्सों और यहां तक की शहरी इलाकों के हरेभरे क्षेत्रों में भी पाई जाती हैं। आमतौर पर यह जीव जंगल के किनारे पर ज्यादा सक्रिय रहते हैं और खतरा होने पर छिपने के लिए झाड़ियों में भाग जाते हैं या फिर पेड़ों की टहनियों पर चढ़ जाते हैं। जांच से पता चला है कि यह छिपकलियां रात के समय झाड़ियों की झुकी हुई शाखाओं पर आराम करती हैं।

शोध से पता चला है कि यह छिपकलियां हर साल अप्रैल से अक्टूबर के बीच सक्रिय रहती हैं, जबकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में यह मार्च से नवंबर या उससे भी अधिक समय तक सक्रिय रह सकती हैं। इनके आहार में विभिन्न तरह के कीड़े, मकड़ियां और अन्य आर्थ्रोपोड जीव शामिल होते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक अब तक जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक यह नई प्रजाति संकटग्रस्त नहीं है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में इनके आवास में बिखराव जरूर देखा गया है।

इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने रिसर्च पेपर में यह भी जानकारी साझा की है कि इनके शरीर का उपयोग औषधीय रूप से किया जाता है और साथ ही इन छिपकलियों को खाया भी जाता है। ऐसे में उन्होंने स्थानीय सरकारों को इनके आवासों की सुरक्षा और इनकी आबादी पर ध्यान देने की बात कही है।