भारत में लोगों और हाथियों के बीच संघर्ष तेजी से आम होते जा रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां मानवीय गतिविधियों ने प्राकृतिक हाथियों के आवासों पर कब्जा जमा लिया है। फोटो साभार: आईस्टॉक
वन्य जीव एवं जैव विविधता

एआई तकनीक हाथियों की चिंघाड़ को पहचानकर ग्रामीणों को करती है सतर्क

यह तरीका ग्रामीणों की सुरक्षा में अहम सुधार कर सकता है और किसानों को भारत में जंगली हाथियों से अपनी फसलों और घरों को बचाने में मदद कर सकता है।

Dayanidhi

एक नए शोध में शोधकर्ताओं ने दिखाया कि कैसे एक प्रशिक्षित एल्गोरिदम हाथियों की आवाज को पहचान सकता है, वह उन्हें लोगों और अन्य जानवरों की आवाजों से अलग कर सकता है।

यह तरीका ग्रामीणों की सुरक्षा में अहम सुधार कर सकता है और किसानों को भारत में जंगली हाथियों से अपनी फसलों और घरों को बचाने में मदद कर सकता है।

भारत में लोगों और हाथियों के बीच संघर्ष तेजी से आम होते जा रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां मानवीय गतिविधियों ने प्राकृतिक हाथियों के आवासों पर कब्जा जमा लिया है। विशेष रूप से जहां खेती और जंगल की सीमाएं आपस में मिलती हैं। ये संघर्ष न केवल एक पर्यावरणीय चिंता है, बल्कि ये लोगों के जीवन और आजीविका के लिए खतरा भी हैं।

भारत में जंगली हाथी बड़े शिकारियों की तुलना में अधिक लोगों के मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। उनकी मौजूदगी से फसलों और बुनियादी ढांचे का भी विनाश होता है, जिससे ग्रामीण लोगों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ता है।

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के द्वारा 22 जुलाई 2024 को प्रकाशित किए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हाथियों के कारण पिछले पांच सालों में 2,727 लोगों की मौत हुई।

बेशक हाथियों को दोष नहीं दिया जा सकता, वे जंगली जानवर हैं, जो जीवित रहने के लिए अपना सबसे अच्छा प्रयास करते हैं। सबसे बड़ा कारण खनन, बांध निर्माण, खेती, जलाऊ लकड़ी और पानी जैसे संसाधनों के लिए जंगलों में बढ़ते अतिक्रमण जैसी मानवीय गतिविधियों के कारण उनके आवासों का विनाश हो रहा है।

ऐसे में मानव-हाथी मुठभेड़ों को कम करने के लिए प्रभावी समाधान खोजना बहुत जरूरी होता जा रहा है। टीम का सुझाव है कि दुखद और महंगे परिणामों को कम करने का एक तरीका एक पूर्व-चेतावनी प्रणाली लागू करना है।

ऐसी प्रणाली हाथियों के व्यवहार को उनकी आवाज से पहचान लेगी और किसानों और अन्य लोगों को हाथियों से बचने या शायद आने वाले झुंड को गंभीर और विनाशकारी खतरा बनने से पहले सुरक्षित रूप से मोड़ने में सक्षम है।

शोधकर्ताओं ने यह निर्धारित करने के लिए कई मशीन लर्निंग मॉडल की तुलना की कि कौन सा मॉडल हाथी की आवाज को सबसे अच्छी तरह पहचानता है। परीक्षण किए गए मॉडल में सपोर्ट वेक्टर मशीन (एसवीएम), निकटतम पड़ोसी, नैवे बेयस और कन्वोल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क शामिल थे। उन्होंने इनमें से प्रत्येक एल्गोरिदम को पांच अलग-अलग प्रजातियों के 450 जानवरों की आवाज के नमूनों के डेटासेट पर प्रशिक्षित किया।

इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण चरण फीचर एक्सट्रैक्शन है, जिसमें ऑडियो सिग्नल के भीतर विशिष्ट विशेषताओं की पहचान करना शामिल है, जैसे कि आवृत्ति, आयाम और ध्वनियों की अस्थायी संरचना। इन विशेषताओं का उपयोग तब हाथी की आवाज को पहचानने के लिए मशीन-लर्निंग मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाता है।

सबसे सटीक कन्वॉल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क (सीएनएन) था, जो एक डीप लर्निंग मॉडल है जो अधूरे आंकड़ों से जटिल विशेषताओं को स्वचालित रूप से सीखता है। ध्वनि डेटा में जटिल पैटर्न को पहचानने की उनकी क्षमता के कारण सीएनएनइस प्रकार के कार्य के लिए विशेष रूप से उपयुक्त हैं।

सीएनएन की सटीकता 84 फीसदी थी, जो मॉडल से कहीं बेहतर थी। इसमें सुधार किया जा सकता है, लेकिन यह इतनी सटीक है कि यह घरों और खेतों की ओर बढ़ रहे हाथियों का पता लगाने के लिए एक विश्वसनीय, स्वचालित प्रणाली की क्षमता रखती है।

यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंजीनियरिंग सिस्टम मॉडलिंग एंड सिमुलेशन में प्रकाशित किया गया है।