वन्य जीव एवं जैव विविधता

क्या भारत में रह पाएंगे अफ्रीका से आने वाले चीते, अगस्त में आने की संभावना

अब देश के लिए अगली चुनौती यह तय करना है कि ये जानवर भारत की नई जलवायु परिस्थितियों में जीवित रह सकें और ढल सकें। यह कैसे संभव होगा और भारत इस बड़ी चुनौती के लिए कितना तैयार है?

Shuchita Jha

भारत अगले महीने देश में आठ अफ्रीकी चीतों का स्वागत करने के लिए तैयार है। इसके लिए भारत और नामीबिया की सरकारों ने 20 जुलाई, 2022 को एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर भी किया है। इस करार के तहत अगस्त महीने में अफ्रीकी देश से चीतों को भारत लाया जाएगा।

लंबी देरी और हिचकी के बाद, दोनों देशों की सरकारों ने बड़ी बिल्लियों के पहले अंतर-महाद्वीपीय स्थानान्तरण के लिए एक आधिकारिक ज्ञापन में प्रवेश किया है।

डीटीई के साथ बातचीत में भारतीय वन्यजीव संस्थान के डीन वाई वी झाला ने कहा, "हम सभी को बधाई।" "यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है और वैश्विक महत्व के संरक्षण कदम की दिशा में बड़ा कदम है।"

प्रारंभिक योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि सीआईटीईएस के अनुसार, भारत के पास नामीबिया से 8 चीता- 4 नर और 4 मादा प्राप्त करने की अनुमति है, हालांकि आने वाले वास्तविक चीतों की संख्या उनके स्वास्थ्य और टीकाकरण की स्थिति जैसे कई कारकों पर निर्भर करेगी।

अब देश के लिए अगली चुनौती यह तय करना है कि ये जानवर भारत की नई जलवायु परिस्थितियों में जीवित रह सकें और ढल सकें। यह कैसे संभव होगा और भारत इस बड़ी चुनौती  के लिए कितना तैयार है?

1952 में भारत में एशियाई चीते विलुप्त हो गए थे ।प्रकृति को लेकर काम करने वाली एक वैश्विक संस्था, इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के अनुसार, दुनिया में लगभग एकहत्तर सौ (7,100) चीते ही बचे हैं और कई प्रयासों के बावजूद उनकी संख्या में गिरावट आई है।

चीता को वापस लाने की पहल 2010 में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने की थी। इसके एक दशक के बाद इस मामले में एक बड़ा मोड़ आया। 

पहली बार 28 जनवरी, 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को भारत में चीतों को लाने की अनुमति दी थी।   

साथ ही अदालत ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को चीतों के लिए एक उपयुक्त स्थान खोजने का आदेश दिया था। कई राष्ट्रीय उद्यानों पर विचार करने के बाद  विशेषज्ञों ने पृथ्वी पर सबसे तेज जानवर की देश में वापसी के लिए मध्य प्रदेश के श्योपुर में कुनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान को चुना।

अगर चीते भारत में आते हैं तो यह दुनिया का पहला अंतर-महाद्वीपीय चीता स्थानान्तरण होगा। यानी एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक चीते को पहली बार पहुंचाया जाएगा। इस योजना के लिए लगभग 224  करोड़ रुपये खर्च होंगे।

चीता दुनिया का सबसे तेज जानवर माना जाता है और इसकी रफ्तार 80 से 128 किमी प्रति घंटा होने का अनुमान है। पतले पैर, लंबी पूंछ और हल्की बनावट की वजह से इनका शरीर इन्हे  इतनी तेज गति हासिल करने के लिए सक्षम बनाता है। 

एक वयस्क चीते का वजन 70 किलोग्राम तक हो सकता है। ये छोटे या  मध्यम आकार के जानवरों का शिकार करते हैं।

चीतों को वापस लाने की योजना को अंतिम रूप दिए जाने के बाद, कुनो राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारियों ने इस जगह को जानवरों के लिए उपयुक्त बनाने की तैयारी शुरू कर दी है।

कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान के संभागीय वन अधिकारी प्रकाश कुमार वर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वहां छह वॉच टावरों का निर्माण पूरा कर लिया है और शिकारियों को दूर रखने के लिए 12 किलोमीटर लंबी 12 फीट ऊंची बाड़ भी लगाई जा चुकी है. बाड़ लगभग छह वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है।

राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारियों ने चीतों के रास्ते से कांटेदार झाड़ियों और अन्य आक्रामक प्रजातियों को हटाने के लिए मार्बल घास और थेमेडा घास के साथ-साथ कुछ जंगली फलियां और घास लगाई थी ताकि उन्हें शिकार में आसानी हो।

“कुनो में 7 बाड़े हैं, जो 6 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैले हुए हैं जहाँ जानवरों को उनके गठबंधन के आधार पर रखा जाता है। मान लीजिए कि एक मां अपने शावकों के साथ है, उन्हें एक बाड़े में रखा जाएगा, भाइयों की तरह रहने वाला एक गठबंधन एक साथ दूसरे में डाल दिया जाएगा,” एक अन्य सूत्र ने गोपनीयता की शर्त पर कहा

अधिकारियों ने चीतों की निगरानी के लिए कैमरे लगाए हैं। चीतों को वातावरण में ढालने के लिए उनकी सतत निगरानी जरूरी है।

विदेशी जानवरों के स्वास्थ्य और फिटनेस को सुनिश्चित करने के लिए, दोनों देशों को सीआईटीईएस प्रोटोकॉल का पालन करना होगा।

झाला ने आगे बताया, “चीतों की बीमारियों की जांच की जाएगी और अगर कोई चीता अस्वस्थ पाया जाता है तो उसे भारत नहीं लाया जायेगा नहीं तो। आगमन से पहले उनकी फिटनेस सुनिश्चित करने के लिए उन्हें कई बीमारियों के खिलाफ टीका दिया जाएगा भारत लाए जाने के बाद उन्हें 45 दिन क्वारंटाइन किया जाएगा ।”

चीतों की देखभाल कैसे करें, इस बारे में प्रशिक्षण लेने के लिए भारत से पांच प्रतिनिधियों का एक दल नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका भी गया। वहां उन्हें चीतों के शिकार की तकनीक और उनके पसंदीदा शिकार के आकार और वजन के बारे में बताया गया।

वहां उन्होंने चीतों के प्रजनन संबंधी जानकारियां भी हासिल कीं। पशु चिकित्सकों को उन्हें संभालना, उनके भोजन की आदतों, उनके शरीर के तापमान की निगरानी करने की तकनीक, बीमार होने की स्थिति में देखभाल के गुर सिखाए गए.

चीतों को अफ्रीका से भारत लाए जाने के बाद उनपर छह से आठ महीने तक कड़ी निगरानी रखी जाएगी।

चीता पुनर्वास को भारत के घास के मैदानों के संरक्षण के साधन के रूप में भी देखा जा रहा है। ये घास के मैदान कई अन्य प्रजातियों के घर हैं और इसमें  गंभीर रूप से लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लुप्तप्राय भारतीय भेड़िया सहित कई जीव रहते हैं। विशेषज्ञ सवाल उठाते हैं कि क्या घास के मैदान को बचाने के लिए इतने महंगे निवेश की जरूरत थी।

भारत में कुछ संरक्षणवादियों को योजना की सफलता पर संदेह है और उन्हें डर है कि यह अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण से ध्यान भटकाएगा, जैसे कि एशियाई शेर, जिसे 2013 में शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार कुनो में स्थानांतरित किया जाना था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कतर एयरवेज ने चीतों को नामीबिया से भारत लाने की लिए सहमति व्यक्त की है, हालांकि, यह अभी तय नहीं है कि दिल्ली में उतरने के बाद उन्हें कुनो कैसे लाया जाएगा।

वन्यजीव जीवविज्ञानियों का मत है कि चूंकि एशियाई और अफ्रीकी चीतों के बीच मामूली रूपात्मक अंतर हैं, इसलिए यह देखा जाना बाकी है कि अफ्रीकी चीते भारतीय जलवायु और चुनौतियों के अनुकूल हो पाते हैं या नहीं ।