वन्य जीव एवं जैव विविधता

पश्चिमी घाट में खोजी गई डैमसेल्फ्लाई की नई प्रजाति 'आर्मगेडन रीडटेल', जानिए क्यों है खास

Lalit Maurya

भारतीय वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाट में डैमसेल्फ्लाई की एक नई प्रजाति खोजी है, जिसे 'आर्मगेडन रीडटेल' (प्रोटोस्टिक्टा आर्मागेडोनिया) नाम दिया गया है। इसकी खोज पुणे की एमआईटी-वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी (डब्ल्यूपीयू) के शोधकर्ताओं द्वारा की गई है। बता दें कि शोधकर्ताओं ने इन संवेदनशील प्रजातियों के आवास को होते नुकसान और जलवायु में आते बदलावों की वजह से कीटों की आबादी में आती वैश्विक गिरावट की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए इसका नाम 'आर्मगेडन रीडटेल' रखा है।

इसका नाम, "आर्मगेडन रीडटेल", सीधे तौर पर "इकोलॉजिकल आर्मगेडन" के विचार को संदर्भित करता है, जो दुनिया भर में कीड़ों की आबादी में आती विनाशकारी गिरावट को दर्शाने के लिए उपयोग किया जाने शब्द है। इस घटना को जिसे अक्सर 'कीटों के महाविनाश' कहा जाता है, उसके पूरे पारिस्थितिक तंत्र पर दूरगामी प्रभाव पड़ते हैं, क्योंकि यह कीट परागण, पोषक तत्व चक्र और अन्य जीवों के भोजन स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

देखने में यह जीव बेहद खूबसूरत होता है। इसका गहरे भूरे से काले रंग का शरीर और उसपर हरी-नीली जीवंत आंखे इसे बेहद आकर्षक बनाती हैं। इसके पेट के आठ खंडों में से आधे पर हल्के नीले रंग के निशान होते हैं। इस प्रजाति की खोज  केरल में तिरुवनंतपुरम के उत्तर-पूर्व में की गई है। यह केरल में पाई जाने वाली एक स्थानीय प्रजाति है, जो मुख्य तौर पर पेड़ों की घनी छाया के नीचे प्राथमिक पर्वतीय धाराओं में रहना पसंद करती है।

इसके बारे में विस्तृत जानकारी अमेरिका स्थित वर्ल्डवाइड ड्रैगनफ्लाई एसोसिएशन से जुड़े प्रकाशन इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ओडोंटोलॉजी में प्रकाशित हुई है। साथ ही इस प्रजाति को जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, द्वारा भी दर्ज और पंजीकृत किया गया है। जो वैज्ञानिक समुदाय में इसके महत्व को रेखांकित करता है।

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में ड्रैगनफ्लाई और डैमसेलफ्लाई की 6,016 प्रजातियां हैं जिनमें से 16 फीसदी पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।

इंसानी महत्वाकांक्षा और जलवायु परिवर्तन बन रहा है इन कीटों के लिए काल

देखा जाए तो इस बेहद नाजुक प्रजाति का होने वाला पतन दलदलों, झीलों और नदियों को होने वाले व्यापक नुकसान को भी दर्शाता है, क्योंकिं यह प्रजातियां इन्हीं आद्रभूमियों में पनपती हैं। आईयूसीएन के मुताबिक इसके लिए काफी हद तक पर्यावरण को ध्यान में रखे बिना की जा रही खेती और बेतरतीब तरीके से होता शहरीकरण जिम्मेवार है।

हाल ही में जर्नल साइंस में छपे एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि 1990 के बाद से कीटों की आबादी में करीब 25 फीसदी की गिरावट आई है। इसके मुताबिक हर दशक नौ फीसदी की दर से कीटों की आबादी में कमी आ रही है। हालांकि दुनिया भर में जिस तरह नदियों और साफ पानी के स्रोतों को बचाने की कवायद चल रहे है, उसके चलते मीठे पानी में रहने वाली वाले कीटों की आबादी में 11 फीसदी प्रति दशक की दर से वृद्धि देखी गई है।

इससे पहले जर्नल बायोलॉजिकल कंजर्वेशन में छपे एक अन्य अध्ययन ने कीटों के तेजी से घटने की बात को स्वीकार किया था। इस शोध के मुताबिक अगले कुछ दशकों में दुनिया से करीब 40 फीसदी कीट खत्म हो जाएंगे। वैज्ञानिकों ने इसके लिए मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर होती कृषि को जिम्मेवार माना है। देखा जाए तो भारी मात्रा में किया जा रहा कीटनाशकों का उपयोग इन कीटों को भी तेजी से खत्म कर रहा है जो हमारे इकोसिस्टम के लिए बेहद अहम है। इस शोध में बढ़ते शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन को भी कीटों के विनाश की एक वजह माना है।

इसके बारे में एमआईटी-डब्ल्यूपीयू में सहायक प्रोफेसर और खोज से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर पंकज कोपार्डे ने प्रेस विज्ञप्ति में स्थिति की गंभीरता को उजागर करते हुए कहा है कि, "इस नई प्रजाति का नामकरण इनपर मंडराते खतरे की ओर ध्यान आकर्षित करने की एक हताश अपील है। ठीक वैसे ही जैसे यह प्रजाति निवास स्थान को होते नुकसान और बदलते पर्यावरण के कारण विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही है। उसी तरह अनगिनत स्थानीय संकटग्रस्त प्रजातियां भी विलुप्त होने की कगार पर हैं।"

उनका आगे कहना है कि, "हम पारिस्थितिकी की तबाही के कगार पर खड़े हैं और इसे बदलने के लिए तत्काल कार्रवाई आवश्यक है। जलवायु परिवर्तन से निपटने और ग्रह की जैव विविधता की सुरक्षा के लिए वैज्ञानिकों, संरक्षणवादियों, नीति निर्माताओं और जनता की मदद से साझा प्रयास की दरकार है।"

वहीं जाने-माने वन्यजीव फोटोग्राफर और टीम के सदस्य रेजी चंद्रन, जिन्होंने सबसे पहले इस प्रजाति को देखा था, ने डॉक्टर कोपार्डे की चिंताओं को साझा करते हुए कहा कि, "मैंने देखा है कि बड़े पैमाने पर होते विकास के चलते पश्चिमी घाट में जंगल तेजी से बदल रहे हैं।" आर्मागेडन रीडटेल की खोज उस बड़े संकट का प्रतीक है जिसका हम सामना कर रहे हैं, और इससे पहले कि बहुत देर हो जाए हमें कार्रवाई करनी होगी।"

आर्मगेडन रीडटेल की खोज हमें याद दिलाती है कि हम एक दोराहे पर खड़े हैं। जहां अब हम जो विकल्प चुनते हैं उसपर अनगिनत प्रजातियों का भाग्य और आने वाली पीढ़ियों के साथ-साथ हमारी पृथ्वी का भविष्य निर्भर करेगा। यह उस कार्रवाई का आह्वान है जो न केवल वैज्ञानिक समुदाय के लिए, बल्कि दुनिया के हर उस इंसान के लिए है जो धरती के भविष्य को लेकर चिंतित है।