वन्य जीव एवं जैव विविधता

जलवायु नहीं, 96 फीसदी लोग हैं मौजूदा जैव संकट के जन्मदाता : रिपोर्ट

शोधकर्ताओं के अनुसार स्तनधारियों की वर्तमान विलुप्ति दर डायनासोर युग के अंत के बाद से सबसे बड़ी विलुप्त होने की घटना है।

Dayanidhi

वर्तमान जैव विविधता संकट को समझने के लिए मनुष्य ने अतीत में जैव विविधता को किस तरह प्रभावित किया, यह समझना महत्वपूर्ण है। एक नए अध्ययन के अनुसार पिछले लाखों वर्षों से स्तनपायी प्रजातियों के विलुप्त होने में 96 फीसदी तक लोग जिम्मेदार हैं।

स्तनधारियों की वर्तमान विविधता में लगभग 5700 प्रजातियां हैं। इसके अलावा, कम से कम 351 स्तनपायी प्रजातियां 126,000 साल पहले पूर्व प्लीस्टोसीन की शुरुआत के बाद से विलुप्त हो चुकी हैं। जिनमें से 80 प्रजातियां (1500 ई.पू.) के बाद से ऐतिहासिक रिपोर्टों से जानी जाती हैं, जबकि अन्य सभी केवल जीवाश्म के रूप में, चिड़ियाघर संबंधी रिकॉर्ड के द्वारा जानी जाती हैं। प्लेइस्टोसिन युग को आमतौर पर उस समय अवधि के रूप में परिभाषित किया जाता है जो लगभग 26 लाख (2.6 मिलियन) साल पहले शुरू हुआ था और लगभग 11,700 साल पहले तक चला था।

पिछले 1 लाख से अधिक वर्षों में, स्तनधारियों का प्राकृतिक तौर पर विलुप्त होने की तुलना में अप्राकृतिक कारणों से विलुप्त होने की दर में 1600 गुना वृद्धि हुई है। अध्ययन में बताया गया है कि यह वृद्धि अधिकतर लोगों के कारण हुई है।

अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु के प्रभावों से अधिक मानव प्रभावों के कारण जीव विलुप्त हो रहे हैं। प्रागैतिहासिक मनुष्यों का पहले से ही जैव विविधता पर एक महत्वपूर्ण विनाशकारी प्रभाव रहा है।

शोधकर्ता डेनियल सिल्वेस्ट्रो का दावा है कि हम पिछले 1 लाख से अधिक वर्षों के दौरान जलवायु के कारण विलुप्त होने का वास्तव में कोई सबूत नहीं दे पाए हैं। इसके बजाय हमने पाया हैं कि उस समय के दौर में स्तनपायी विलुप्त होने के लिए 96 फीसदी तक लोग जिम्मेदार थे।

कुछ विद्वानों के विचारों के साथ मतभेद है, जो मानते हैं कि अधिकांश पूर्व-ऐतिहासिक स्तनपायी विलुप्त होने के पीछे गंभीर जलवायु परिवर्तन था। बल्कि नए निष्कर्ष बताते हैं कि अतीत में स्तनपायी प्रजातियां वातावरण के अनुसार ढल जाती थी, यहां तक कि जलवायु में अत्यधिक उतार-चढ़ाव आने पर भी वे ऐसा कर सकते थे।

डेनियल सिलवेस्ट्रो कहते हैं हालांकि वर्तमान जलवायु परिवर्तन, नष्ट होते आवासों, अवैध शिकार और अन्य मानव-संबंधी प्रभावों के साथ कई प्रजातियों के लिए एक बड़ा खतरा है। यह अध्ययन साइंटिफिक जर्नल साइंस एडवांस में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ताओं का निष्कर्ष जीवाश्मों के एक बड़े डेटा सेट पर आधारित है। उन्होंने पूर्व प्लीस्टोसीन युग की शुरुआत के बाद से विलुप्त हो चुकी 351 स्तनपायी प्रजातियों के आंकड़ों का संकलन और विश्लेषण किया। कई अन्य में, इनमें स्तनधारी, बड़े दांत वाले बाघ (सेबर-टूथ टाइगर) और विशालकाय प्रजातिया शामिल थीं। शोधकर्ताओं ने बताया कि इस अध्ययन में जूलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन द्वारा प्रदान किए गए जीवाश्म डेटा का महत्वपूर्ण योगदान था।

गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के टोबियास अंडमान कहते हैं ये विलुप्तियां लगातार नहीं हुईं। इसके बजाय विलुप्त होने की तीव्रता का पता विभिन्न महाद्वीपों में ऐसे समय लगाया जाता है जब मानव पहली बार उन तक पहुंचा। इस बार दुनिया भर में देखा गया है कि लोगों के कारण जीवों की विलुप्तता की दर में फिर से तेजी आई है।

शोधकर्ताओं के अनुसार स्तनधारियों की वर्तमान विलुप्ति दर डायनासोर युग के अंत के बाद से सबसे बड़ी विलुप्त होने की घटना है। कंप्यूटर-आधारित सिमुलेशन का उपयोग करते हुए उन्होंने अनुमान लगाया हैं कि ये दरें तेजी से बढ़ती रहेंगी। वर्ष 2100 तक प्राकृतिक स्तर से 30,000 गुना अधिक तक पहुंचने के आसार हैं। ऐसा तब होता है जब मानव व्यवहार और जैव विविधता में गिरावट जारी रहती है।

टोबियास अंडमान ने अपने निष्कर्ष में कहा कि - इन गंभीर अनुमानों के बावजूद, स्थिति अभी भी बदली जा सकती है। हजारों प्रजातियों को कुशल संरक्षण रणनीतियों के साथ विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। लेकिन इसे हासिल करने के लिए, हमें जैव विविधता के संकट के बढ़ते विस्तार के बारे में अपनी सामूहिक जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। इस वैश्विक आपातकाल का मुकाबला करने की दिशा में हमें कदम उठाना होगा। हर लुप्त प्रजाति के साथ, हम अपरिवर्तनीय रूप से पृथ्वी के प्राकृतिक इतिहास के एक अनूठे हिस्से को खो देते हैं।