अनुमान है कि सदी के अंत तक प्रवाल भित्तियां (कोरल रीफ्स) दुनिया से पूरी तरह विलुप्त हो जाएंगी। जबकि अगले 20 वर्षों में ही इसकी 70 से 90 फीसदी आबादी के खत्म हो जाने का अनुमान है। वैज्ञानिकों इसके लिए दिन प्रतिदिन जलवायु में आ रहे बदलाव, प्रदूषण और समुद्रों में बढ़ रहे अम्लीकरण को बड़ी वजह मान रहे हैं। यह हैरान कर देने वाली जानकारी सैन डिएगो में चल रही ओसियन साइंस मीटिंग 2020 में प्रस्तुत किये नए शोध से पता चली है।
साथ ही, शोधकर्ताओं ने यह भी बताया है कि इन क्षेत्रों की बहाली के लिए चलायी जा रही परियोजनाएं गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही हैं| हालांकि कुछ वैज्ञानिक समूह कृत्रिम रूप से उगाई गयी प्रवाल भित्तियों को को मृत भित्तियों में प्रत्यारोपित करके इस गिरावट को रोकने का प्रयास कर रहे हैं। उनका मानना है कि इन युवा कोरल रीफ की मदद से प्रवाल भित्तियों को उनकी स्वस्थ स्थिति में वापस लाया जा सकता है। इसके बावजूद उनका मानना है कि दुनिया में कई जगह पर प्रवाल भित्तियां पूरी तरह नष्ट हो जाएंगी और अपनी पुरानी स्थिति में वापस नहीं आ पाएंगी। वो इनकी बहाली में बाधा डालने के लिए समुद्री सतह के तापमान, अम्लीकरण को एक बड़ी वजह मान रहे हैं। जिसके चलते इनकी बहाली नहीं हो पा रही है।
शोधकर्ताओं के अनुसार यह सच है कि प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के चलते कई समुद्री जीवों पर बुरा असर पड़ रहा है। पर इसका सबसे ज्यादा विनाशकारी प्रभाव प्रवाल भित्तियों पर देखने को मिल रहा है। साथ ही ग्रीनहाउस गैसों के लगातार बढ़ रहे उत्सर्जन से उनके आवास पर कहीं ज्यादा असर पड़ रहा है| इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता और यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई के बायोज्योग्राफर रेंनी सेटर ने बताया कि प्रदूषण की रोकथाम और समुद्री तटों को साफ करने के लिए किये जा रहे प्रयास कबीले तारीफ़ हैं। पर इन सबके बावजूद क्लाइमेट चेंज पर काम करना जरुरी है। बिना इसके इन कोरल्स को बचाया नहीं जा सकता।
दुनिया भर में आम बात हो गयी है कोरल ब्लीचिंग
समुद्र में बढ़ते तापमान के चलते दुनिया भर में कोरल अनिश्चितताओं का सामना कर रहे हैं। पानी में बढ़ रही गर्मी से मूंगे पर जोर पड़ता है, जिससे उनके अंदर रहने वाले सहजीवी शैवाल उनसे बाहर निकल जाते हैं। इसके चलते आमतौर पर रंग बिरंगे दिखने वाले कोरल सफेद रंग में बदल जाते हैं। इस प्रक्रिया को ब्लीचिंग कहा जाता है। हालांकि यह सफेद कोरल मृत नहीं होते। लेकिन उनके मरने की सम्भावना सबसे अधिक होती है। आज जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया भर में ब्लीचिंग की यह घटनाएं बहुत आम होती जा रही हैं।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन स्थानों का भी पता लगाने की कोशिश की है, जहां इन कोरल्स की बहाली की जा सकती है। उन्होंने उन स्थानों पर प्रदूषण, बढ़ते अम्लीकरण, तापमान में आ रही बढ़ोतरी, अधिक मात्रा में मछली पकड़ना आदि कारकों का विश्लेषण किया है। साथ ही उन्होंने तटों के पास जनसंख्या के घनत्व, भूमि उपयोग और मछली पकड़ने से होने वाले वेस्ट का भी आंकलन किया है। जिसके अनुसार आज समुद्र के अधिकांश हिस्सों में जहां प्रवाल भित्तियां मौजूद हैं वो 2045 तक कोरल के लिए उपयुक्त नहीं रह जायेंगे। जबकि सदी के अंत तक स्थिति बद से बदतर हो जाएगी। उनके अनुसार बढ़ता तापमान और अम्लीकरण ही इन प्रवालों के खत्म होने का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि मनुष्य द्वारा किया जा रहे प्रदूषण और उसमें हो रही वृद्धि सीधे तौर पर इनके आवास पर बड़ा थोड़ा असर डालेगी, क्योंकि मानव पहले ही इनको इतना नुकसान पहुंचा चुका है कि उनके और अधिक प्रभावित होने की गुंजाइश नहीं बची है।
यदि हमें इन प्रवाल भित्तियों को बचाना है जोकि हमारे इकोसिस्टम का एक बड़ा ही अहम हिस्सा हैं तो हमें दिन प्रतिदिन बढ़ रहे उत्सर्जन पर लगाम लगानी होगी। क्योंकि दुनिया के कई खूबसूरत द्वीप और देश इन्ही प्रवाल भित्तियों पर बसें हैं और यदि यह नष्ट होती हैं तो उनका अस्तित्व भी संकट में आ जायेगा।