वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि 1980 के बाद से हिंद महासागर में डॉल्फिन की आबादी 90 फीसदी तक घट गयी है। जिसके लिए बढ़ते मछली उद्योग को जिम्मेवार माना गया है। शोधकर्ताओं ने इसका कारण विशाल गिलनेटों के बढ़ते प्रयोग को माना है। गौरतलब है कि यह विशाल गिलनेट ट्यूना मछली को पकड़ने में इस्तेमाल किए जाते है।
गिलनेट जालों की एक दीवार होती हैं। जोकि आकार में 100 मीटर से लेकर 30 किमी तक लम्बी हो सकती है| इन्हें 5 से 20 मीटर की गहराई में लगाया जाता है। हालांकि बीच समुद्र में इनका उपयोग वर्जित है। इसके बावजूद नियमों को अनदेखा करके बड़े पैमाने पर इनका प्रयोग किया जा रहा है।
जाल में किये गए छेदों को इस प्रकार डिज़ाइन किया गया है जिससे ट्यूना का केवल सिर जाल से बाहर आ सके। जैसे-जैसे मछली स्वयं को मुक्त करने के लिए संघर्ष करती है, वो इस जाल में और अधिक उलझती जाती है। छोटी मछलियां तो इसमें से निकल जाती हैं। पर शार्क, कछुए, व्हेल और डॉल्फ़िन जैसी प्रजातियां इसमें फंस जाती हैं। यह अध्ययन जेम्स कुक यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया द्वारा किया गया है।
इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने 1981 से 2016 के बीच भारत, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका में किये गए 10 अलग-अलग अभियानों से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है। जिसमें उन्होंने ट्यूना के साथ पकड़ में आयी अन्य प्रजातियों जैसे व्हेल, डॉल्फ़िन और पर्पोइज़ की संख्या और उसकी दर का अनुमान लगाया है। उनके अनुसार इस तरह से किये गए शिकार में डॉल्फिन का एक बड़ा हिस्सा है।
अनुमान है कि 2004 से 2006 के बीच हर साल ट्यूना के साथ करीब 1,00,000 अन्य जीव भी इन जालों में फंस जाते हैं। जिनमें बड़ी संख्या में डॉल्फिन भी होती हैं। हालांकि यह आंकड़ा घटकर 80,000 पर आ चुका है।
अनुमान है कि 1950 से 2018 के बीच हिंद महासागर में लगाए गए गिलनेटों के चलते करीब 41 लाख जीव मारे जा चुके हैं। मगर उनका मानना है कि यह आंकड़ा इससे भी ज्यादा हो सकता है। जो रिकॉर्ड उपलब्ध हैं वो पूरे नहीं हैं। क्योंकि कई बार जो जाल समुद्रों में खो जाते हैं उनमें भी मछलियां फंसी रह जाती हैं। या फिर जिनकी मृत्यु बाद में होती हैं, उन्हें भी आंकड़ों में शामिल नहीं किया गया है।
इस अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता डॉ पुतु मुस्तिका ने बताया कि दशकों से हिन्द महासागर में गिलनेट की मदद से ट्यूना पकड़ी जा रही है। जिसके चलते बड़े पैमाने पर अन्य समुद्री जीवों को भी मारा जा रहा है। पर कभी भी उनपर ध्यान नहीं दिया गया। शोध के अनुसार आज भी प्रति 1,000 टन ट्यूना के साथ 175 टन अन्य जीव पकड़े जाते हैं| जबकि 1970 में देखें तो यह दर प्रति हजार 600 थी।
यदि वर्तमान में देखें तो ईरान, इंडोनेशिया, भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, ओमान, यमन, यूएई और तंजानिया में सबसे ज्यादा जीव ट्यूना के साथ मारे जा रहे हैं। जबकि ईरान और इंडोनेशिया में इनकी कोई जांच नहीं की जाती। ऐसे में बड़ी संख्या में अन्य जीवों का मारा जाना स्वाभाविक ही है। जिनके बारे में कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं होते।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे में यदि डॉल्फिन को बचाना और उनकी संख्या में सुधार करना है, तो मछली पकड़ने के तरीकों में बदलाव के साथ-साथ उनकी निगरानी, विश्लेषण और प्रशासनिक स्तर पर सुधार करने की जरुरत है।