वन्य जीव एवं जैव विविधता

मनुष्य की 9 में से 8 प्रजातियां हो चुकी हैं विलुप्त

विलुप्ति की टाइमिंग बताती है कि उनका गायब होना एक नई प्रजाति के उदय का नतीजा हो सकती है। यह प्रजाति थी होमो सेपियंस

DTE Staff

निक लॉन्गरिच 

तीन लाख साल पहले धरती पर मनुष्यों की 9 प्रजातियों का प्रादुर्भाव हुआ। वर्तमान में केवल एक प्रजाति ही बची है। इनकी एक प्रजाति थी होमो निअंडरथलेंसिस जिसे निअंडरथल्स के नाम से जाना जाता था। ये नाटे शिकारी थे और यूरोप के ठंडे मैदानों में रहने के अभ्यस्थ थे। इसी तरह डेनिसोवंस प्रजाति एशिया में रहती थी जबकि आदिम प्रजाति होमो इरेक्टस इंडोनेशिया और होमो रोडेसिएंसिस मध्य अफ्रीका में पाई जाती थी। इनके समानांतर कम ऊंचाई और छोटे मस्तिष्क वाली मनुष्यों की अन्य प्रजातियां भी थीं। दक्षिण अफ्रीका में होमो नलेदी, फिलीपींस में होमो लूजोनेंसिस, इंडोनेशिया में होमो फ्लोरेसिएंसिस (होबिट्स) और चीन में रहस्यमय रेड डियर केव प्रजाति के मानव होते थे। जिस तरह से हमें बहुत जल्दी नई-नई प्रजातियों का पता चल रहा है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि अभी और प्रजातियों की जानकारी सामने आएगी।

उपरोक्त प्रजातियां करीब 10 हजार साल पहले खत्म हो गईं। इन प्रजातियों की विलुप्ति को मास एक्सटिंग्शन यानी व्यापक विलुप्ति के रूप में देखा जा रहा है। क्या ये विलुप्ति प्राकृतिक कारकों जैसे ज्वालामुखी फटने, जलवायु परिवर्तन या एस्टोरॉइड प्रभाव का नतीजा थी? यह कहना मुश्किल है क्योंकि अब तक इसके प्रमाण नहीं मिले हैं। मनुष्यों की विलुप्ति की टाइमिंग बताती है कि उनका गायब होना एक नई प्रजाति के उदय का नतीजा हो सकती है। यह प्रजाति 2,60,000-3,50,000 साल पहले दक्षिणी अफ्रीका में पनपी और इसका नाम था होमो सेपियंस। आधुनिक मानव इसी प्रजाति से ताल्लुक रखता है। ये मानव अफ्रीका से निकलकर दुनियाभर में फैल गए और छठी विलुप्ति का कारण बने। करीब 40 हजार साल पहले हिमयुग के स्तनधारियों की समाप्ति से वर्षा वनों के नष्ट होने के बाद इसकी शुरुआत हुई थी। ऐसे में क्या कहा जा सकता है कि छठी विलुप्ति के पहले शिकार मनुष्य बने?

इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम बेहद खतरनाक प्रजाति हैं। हमने विशालकाय ऊनी हाथी मैमथ, ग्राउंड स्लोथ और विशाल पक्षी मोआ का इतना शिकार किया कि वे खत्म हो गए। हमने जंगलों और वनों को खेती के लिए बर्बाद कर दिया। हमने आधी से अधिक धरती की तस्वीर बदलकर रख दी। हमने धरती की जलवायु में तब्दीली कर दी। हम मनुष्यों की दूसरी प्रजातियों के लिए सबसे खतरनाक साबित हुए क्योंकि हम संसाधनों और जमीन के भूखे हैं। इतिहास इसका गवाह है। हमने युद्धों से असंख्य लोगों को विस्थापित किया और उनका नामोनिशान तक मिटा दिया। चाहे प्राचीन कार्थेज शहर में रोम द्वारा किया गया विनाश हो या पश्चिम में अमेरिकी जीत अथवा ऑस्ट्रेलिया पर ब्रिटेन का कब्जा। हाल की बात करें तो बोस्निया, रवांडा, ईराक, दरफूर और म्यानमार का संदर्भ लिया जा सकता है जहां अलग मतावलंबियों का बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ। नरसंहार में शामिल होना मानव की प्रवृत्ति रही है। इसलिए यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि शुरुआती होमो सेपियंस कम प्रादेशिक, कम हिंसक और कम असहनशील थे। दूसरे शब्दों में कहें तो उनमें मानवीय गुण कम थे।

बहुत से आशावादियों ने शुरुआती शिकारियों और संग्रहकर्ताओं को शांति चाहने वाले व सभ्य समाज के रूप में चित्रित किया है। उनकी दलील है कि प्रकृति के बजाय हमारी संस्कृति हिंसा के लिए जिम्मेदार है। लेकिन फील्ड अध्ययन, ऐतिहासिक घटनाक्रम और पुरातत्व विज्ञान बताता है कि शुरुआती सभ्यताओं में होने वाले युद्ध भीषण, व्यापक और खतरनाक होते थे। गुरिल्ला युद्ध में नवपाषाण (न्यूलिथिक) के औजार जैसे डंडे, बरछी, कुल्हाड़ी, धनुष आदि बड़े विनाशक साबित होते थे। इन समाजों में पुरुषों की मौत का मुख्य कारण ऐसे हिंसक संघर्ष थे। ऐसी हिंसाओं में प्रथम और दूसरे विश्वयुद्ध से अधिक मौतें हुई हैं। प्राचीन हड्डियां और कलाकृतियां बताती हैं कि ऐसी हिंसा प्राचीन काल से हो रही है।

“केनेविक मैन” नामक किताब में उत्तरी अमेरिका के केनेविक शहर में मिले एक ऐसे कंकाल का अध्ययन किया गया है जिसके कूल्हे में भाले का अगला हिस्सा टूटा मिला है। यह कंकाल करीब 9,000 साल पुराना है। केन्या का 10,000 साल पुराना एक ऐतिहासिक स्थल नटारुक कम से कम 27 महिलाओं, पुरुषों और बच्चों की निर्मम हत्या की गवाही देता है। अत: यह मानना संभव नहीं है कि मनुष्यों की दूसरी प्रजातियां शांतिप्रिय थीं। पुरुषों की संयुक्त रूप से होने वाली हिंसा बताती है कि युद्ध के साथ मनुष्यों का विकास हुआ है। निअंडरथल के कंकाल युद्ध कौशल दर्शाते हैं यानी उनके शरीर की बनावट युद्ध में शामिल होने की प्रवृति को इंगित करती है। बाद में परिष्कृत हथियारों ने होमो सेपियंस को सैन्य लाभ दिया। शुरुआती होमो सेपियंस के हथियारों में जावलिन, भाले, तीर व डंडे शामिल थे। उन्नत हथियारों ने बड़ी संख्या में जानवरों का शिकार करने और पौधों को काटने में मदद पहुंचाई। इससे बड़ी संख्या में लोगों को भोजन उपलब्ध हो सका और हमारी प्रजाति को अपनी संख्या बढ़ाने में रणनीतिक मदद मिली।

श्रेष्ठ हथियार
गुफाओं में बनी चित्रकारी, नक्काशियां और संगीत के यंत्र एक बेहद खतरनाक संकेत देते हैं। वह संकेत है अपने विचारों को व्यक्त करने और संचार की बेहतर क्षमता। सहयोग करना, योजना बनाना या रणनीति बनाना, चालाकी और धोखा देना हमारे उत्तम हथियार बन गए। जीवाश्म रिकॉर्ड अधूरे होने की वजह से इन विचारों को ठीक से नहीं परखा जा सका है। लेकिन यूरोप एक ऐसा स्थान है, जहां तुलनात्मक रूप से पूर्ण पुरातात्विक रिकॉर्ड उपलब्ध हैं। यहां के जीवाश्म रिकॉर्ड बताते हैं कि हमारे आने के कुछ हजार सालों में ही निअंडरथल्स विलुप्त हो गए। यूरेशियन लोगों में निअंडरथल्स के डीएनए के कुछ अंश मिले हैं जो बताते हैं कि उनकी विलुप्ति के बाद हमने केवल उनका स्थान ही नहीं लिया बल्कि हम मिले और हमारा मिलन होता गया। यानी हम अपनी संख्या दिन दूनी, रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ाते गए।

अन्य कुछ डीएनए भी आदिम प्रजातियों से हुए हमारे संपर्क पर रोशनी डालते हैं। पूर्वी एशियाई, पोलिनेशियन और ऑस्ट्रेलियाई समूहों के डीएनए डेनिसोवंस के मेल खाते हैं। बहुत से एशियाई लोगों में होमो इरेक्टस प्रजाति के डीएनए मिले हैं। अफ्रीकी जीनोम अन्य आदिम प्रजातियों के डीएनए पर रोशनी डालते हैं। ये तथ्य साबित करते हैं कि दूसरी प्रजातियां हमसे संपर्क में आने के बाद ही खत्म हुईं। ऐसे में सवाल उठता है कि हमारे पूर्वजों ने अपने रिश्तेदारों को खत्म क्यों किया और मास एक्सटिंग्शन का कारण क्यों बने? क्या यह व्यापक नरसंहार था? इस प्रश्न का उत्तर जनसंख्या की वृद्धि में निहित है। मनुष्य बहुत तेजी से अपनी संख्या बढ़ाते हैं। अगर हम प्रजनन पर लगाम न लगाएं तो हर 25 साल में अपनी संख्या दोगुनी कर लेते हैं। ऐसे में अगर हम सामूहिक शिकार करने लग जाएं तो हमसे हिंसक और खतरनाक कोई नहीं हो सकता। अपनी संख्या पर लगाम नहीं लगाने और परिवार नियोजन पर ध्यान नहीं देने पर आबादी उपलब्ध संसाधनों का दोहन करने की दिशा में अग्रसर होती है। आगे का विकास, सूखे के कारण पैदा हुआ खाद्य संकट, भीषण ठंड और संसाधनों के अत्यधिक दोहन जनजातियों के बीच संघर्ष पैदा करता है। यह संघर्ष मुख्य रूप से भोजन पर अधिकार को लेकर होता है। इस तरह युद्ध जनसंख्या में हो रही वृद्धि को नियंत्रित करता है।

ऐसा भी नहीं है कि हमने योजनाबद्ध तरीके से दूसरी प्रजातियों को विलुप्त कर दिया। न ही यह हमारी सभ्यता द्वारा संयुक्त प्रयास का नतीजा था, लेकिन यह युद्ध का नतीजा जरूर था। आधुनिक मनुष्य ने हमले दर हमले कर अपने दुश्मनों को परास्त किया और उनकी जमीन हथिया ली। इसके बावजूद निअंडरथल्स को विलुप्त होने में हजारों साल लग गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शुरुआती होमो सेपियंस बाद की विजेता सभ्यताओं जितने सक्षम नहीं थे। ये विजेता सभ्यताएं बड़ी संख्या में थीं और कृषि पर आधारित थीं। चेचक, फ्लू, खसरा जैसी महामारियां भी इनके दुश्मनों पर बहुत भारी पड़ीं। भले ही निअंडरथल्स युद्ध हार गए हों लेकिन उन्होंने लंबा युद्ध लड़ा और कई युद्ध जीते भी। इससे पता चलता है कि उनकी बौद्धिकता भी हमारी बौद्धिकता के करीब थी।

(लेखक बाथ विश्वविद्यालय के इवोल्यूशनरी बायोलॉजी एंड जीवाश्म विज्ञान में सीनियर लेक्चरर हैं)