वन्य जीव एवं जैव विविधता

दुनिया की 70 फीसदी वन भूमि के खराब होने का खतरा : यूएनसीसीडी

रिपोर्ट में 2030 तक वनों के गंभीर क्षति की आशंका जताई गई है। इस सूची में अमेजन के जंगल शीर्ष पर हैं।

Ishan Kukreti

लगातार शुद्ध वन क्षेत्रों के नुकसान से दुनिया के 70 फीसदी वनों में गिरावट का खतरा मंडरा रहा है। यह बात संयुक्त राष्ट्र के एक रिपोर्ट में कही गई है। यह रिपोर्ट मरुस्थलीकरण के विरुद्ध लड़ाई के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी) की ओर से बहुत ही जल्द जारी की जाएगी। रिपोर्ट में दुनिया के जमीनों की स्थिति का एक परिदृश्य पेश किया जाएगा।

रिपोर्ट के मुताबिक कई उष्णकटिबंधीय वन दशकों से वनों की कटाई संबंधी समस्या से जूझ रहे हैं जो कि धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। 2010 से 2015 के बीच उष्णकटिबंधीय वन सालाना 55 लाख हेक्टेयर की दर से नष्ट हुए हैं।

रिपोर्ट में 11 उन नष्ट हुए वन क्षेत्रों के बारे में भी बताया गया है जहां 2015 से 2030 तक वनों के गंभीर क्षति की आशंका जताई गई है। इस सूची में अमेजन के जंगल शीर्ष पर हैं। यहां 2030 तक अनुमानित वन क्षति 2.3 से 4.8 करोड़ तक हो सकती है।

अमेजन के बाद कतार में शामिल बोर्नियो में 2.1 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र और ग्रेटर मेकांग क्षेत्र में 1.5 से 3 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्रों के 2030 तक नुकसान का अनुमान रिपोर्ट में लगाया गया है।

यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव मोनिक बारबट ने कहा कि यदि हमारी मौजूदा उत्पादन, शहरीकरण और पर्यावरणीय क्षति की प्रवृत्ति को देखे तो हम बहुत ज्यादा जमीन खो और बर्बाद कर रहे हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक मिट्टी के जैविक कार्बन (एसओसी) की क्षति के लिए वनों की कटाई एक प्रमुख कारण है। निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण के विरुद्ध लड़ाई में एसओसी प्रमुख भूमिका अदा करता है। उष्टकटिबंध में वनों की कटाई दर बढ़ने से क्षेत्र में एसओसी को भी काफी नुकसान होगा।

रिपोर्ट में यह दिलचस्प है कि रूस, कनाडा और संयुक्त राष्ट्र में स्थित शीतोष्ण और उदीच्य वनों में बीते 200 वर्षों में मानव के जरिए कोई अशांति नहीं पैदा की गई है। जबकि यूरोपियन देशों में एक फीसदी से भीक कम वनों की अशांति है, इसके चलते दुनिया में यूरोप के शीतोष्ण वन सबसे ज्यादा खतरे में हैं। यूएनसीसीडी की यह रिपोर्ट 14वें कांफ्रेस ऑफ पार्टीज में 6 सितंबर को जारी की जाएगी।

रिपोर्ट में वनों की कटाई और वनों के निम्नीकरण को रोकने के लिए संरक्षण पर बल दिया गया है। अधिक से अधिक संरक्षित क्षेत्र बनाने और सरकार व समुदायो की मिले-जुले प्रयास, समावेशी प्रबंधन व संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करने के सुझाव दिए गए हैं।