वन्य जीव एवं जैव विविधता

हर साल अपनी खाल के लिए मारे जा रहे 48 लाख गधे, सोशल नेटवर्क के जरिए फल-फूल रहा अवैध व्यापार

अनुमान है कि हर साल दुनिया में दस में से एक गधे को उसकी खाल के लिए मार दिया जाता है। भारत में भी इनकी आबादी में पिछले आठ वर्षों में 61 फीसदी की गिरावट आई है

Lalit Maurya

दुनिया भर में हर साल करीब 48 लाख गधों को उनकी खाल के लिए मारा जा रहा है। देखा जाए तो इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह चीन की पारम्परिक दवाओं के लिए इनकी खाल से मिलने वाले 'इजियाओ' की बढ़ती मांग है। यह जानकारी हाल ही में गधों की भलाई के लिए काम कर रहे अंतराष्ट्रीय संगठन द डोंकी सैंक्चुअरी द्वारा जारी रिपोर्ट ‘द ग्लोबल ट्रेड इन डोंकी स्किन्स: अ टिकिंग टाइम बॉम्ब’ में सामने आई है।  

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि हर साल दुनिया में दस में से एक गधे को उसकी खाल के व्यापार के लिए मार दिया जाता है। इतना ही नहीं पता चला है कि हर साल करीब 30 लाख खालों को अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका से चीन भेजा जाता है। जहां उसे प्रोसेस करने के बाद उससे 'इजियाओ' हासिल किया जाता है।

रिपोर्ट की मानें तो आज गधा दुनिया के सबसे ज्यादा तस्करी किए जाने वाले जानवरों में से एक है। इस अवैध व्यापार का ही नतीजा है कि दुनिया के कई देशों में इनकी आबादी लगभग खत्म होने की कगार पर आ गई है। जहां कभी गधों की बहुतायत थी, वहां स्थानीय स्रोत बताते हैं कि अब यह जीव दुर्लभ हो चुका है।   

ऐसा नहीं है कि चीन में गधों की खाल की बढ़ती मांग का असर अन्य देशों में गधों की आबादी पर ही पड़ा है। चीन में भी इनकी आबादी में तेजी से गिरावट आई है। जहां 1999 में इनकी आबादी 1.1 करोड़ से घटकर 2019 में 26 लाख रह गई है।

गौरतलब है कि इन गधों को उनकी त्वचा से मिलने वाले एक जिलेटिन के लिए मारा जा रहा है, जिसे 'इजियाओ' कहते हैं। चीन में कई लोगों को लगता है कि इस जिलेटिन में कई औषधीय गुण होते हैं, जिस वजह से वहां की पारम्परिक दवाओं में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। इतना ही नहीं इस इजियाओ का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों में भी किया जाता है।

भारत में भी तेजी से घट रही है गधों की आबादी

हाल ही में ब्रुक इंडिया (बीआई) द्वारा जारी रिपोर्ट 'द हिडन हाईड' से पता चला है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में भी गधों की आबादी में तेजी से कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक जहां 2012 में गधों की कुल संख्या 3.2 लाख थी, वो 2019 की गणना में घटकर 1.2 लाख रह गई है। मतलब की पिछले आठ वर्षों में इनकी आबादी में करीब 61.2 फीसदी की गिरावट आई है।

रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान जहां उत्तरप्रदेश में गधों की आबादी में 71.7 फीसदी की कमी आई है वहीं राजस्थान में 71 फीसदी और महाराष्ट्र में भी 39.7 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।

गौरतलब है कि 2012 की गणना में राजस्थान में मौजूद गधों की कुल संख्या देश में सबसे ज्यादा थी, जो करीब 81,000  दर्ज की गई थी। 2019 में यह आंकड़ा घटकर केवल 23,000 रह गया है। इसी तरह इस अवधि के दौरान गुजरात में गधों की कुल आबादी में 70.9 फीसदी, आंध्रप्रदेश में 53.2 फीसदी और बिहार में भी 47.3 फीसदी की कमी देखी गई है।

देखा जाए तो गधे जिन्हें आमतौर पर मूर्ख जानवर की पहचान दे दी गई है वो अत्यधिक बुद्धिमान, मेहनती और संवेदनशील जानवर होते हैं। यह जीव बरसों से इंसान का साथी रहा है। दुनिया के कई देशों में तो परिवार इस पर बहुत हद तक निर्भर करते हैं।

अफ्रीका जैसे कई देशों में तो इन गधों के न होने पर सबसे ज्यादा असर वहां की महिलाओं और बच्चियों पर पड़ रहा है जिन्हें इसकी वजह से अतिरिक्त गधा मजदूरी करनी पड़ रही है जो उनके स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक पर असर डाल रहा है।

बढ़ रहा है इन्फेक्शन के फैलने का खतरा

अब मशीनीकरण और इनकी खाल की बढ़ती मांग इन जानवरों के लिए बड़ा खतरा बन चुकी हैं। इनकी खाल के लिए इन्हें बिना भोजन, पानी और आराम के लिए बुरी स्थिति में लम्बी दूरी तक बूचड़खानों तक लाया जाता है जहां यह काटे जाने तक हर पल पीड़ा का सामना करते हैं।

इतना है नहीं जिस तरह से इनकी खालों को एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता है वहां उन्हें भेजने से पहले पूरी तरह साफ नहीं किया जाता और साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता जिससे प्रक्रिया के हर चरण में जानवरों और मनुष्यों दोनों में हानिकारक संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है।

इतना है नहीं जिस तरह से इनकी खालों को एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता है वहां उन्हें भेजने से पहले पूरी तरह साफ नहीं किया जाता और साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता जिससे प्रक्रिया के हर चरण में जानवरों और मनुष्यों दोनों में हानिकारक संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है। आमतौर पर इनके व्यापार को लेकर दुनिया में कोई स्पष्ट नीति नहीं है। कई देशों में तो इनका व्यापार वैध है जबकि कई में अवैध है। जहां इनकों मारना वैध है वहां या तो कानून सख्त नहीं है जहां हैं भी वहां इनका पालन नहीं किया जा रहा। वहीं जहां इनका व्यापार अवैध है वहां भी ब्लैक मार्किट के जरिए इन्हें बेचा जा रहा है, जिसके कोई कानून नहीं हैं।

सोशल नेटवर्क पर भी तेजी से फैल रहा अवैध व्यापार

इसके साथ-साथ अब गधों की खाल से जुड़ा व्यापार सोशल मीडिया पर भी तेजी से फल-फूल रहा है। रिपोर्ट से पता चला है कि ऑनलाइन मार्केटप्लेस में इनकी खाल से जुड़ा अवैध व्यापार तेजी से फैल रहा है जिसमें व्यापारी खुले तौर पर स्थानीय कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ फेसबुक जैसे बड़े सोशल मीडिया दिग्गज इस अवैध व्यापार को रोकने के लिए कोई खास प्रयास नहीं कर रहे हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार जहां नाइजीरिया के एक व्यापारी ने बिक्री के लिए गधे की खाल समेत अन्य उत्पादों की 200 तस्वीरें फेसबुक पर डाली हैं जिनमें रोज़वुड से लेकर पैंगोलिन स्केल्स तक शामिल थी। इसी तरह नाइजीरिया के ही तीन अन्य व्यापारियों ने अपने फेसबुक पेज पर गधों की खाल को बेकने की पेशकश की हैं, हालांकि नाइजीरिया में इनका निर्यात स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है।

इसी तरह केन्या में भी इसकी बिक्री पर प्रतिबन्ध है इसके बावजूद वहां की एक कंपनी ने अपने फेसबुक पेज पर करीब 2000 खालों के उपलब्ध होने की बात लिखी है। वहां हर खाल के लिए 40 डॉलर की कीमत रखी गई है साथ ही यह भी कहा है कि वो दुनिया के किसी भी देश में शिप कर सकते हैं।

इसी तरह थाईलैंड के भी एक व्यापारी ने गधे की खाल के साथ-साथ अन्य वन्यजीव उत्पादों की बात कही है। इसी तरह यूट्यूब पर भी इनकी खाल से जुड़े कई विज्ञापन मिले हैं। जहां सेनेगल के एक व्यापारी ने इनकी खाल सम्बन्धी विज्ञापन को डाला है जबकि सेनेगल में इसका व्यापार प्रतिबंधित है। इसी तरह इटली के भी एक व्यापारी ने घाना के गोदाम की फुटेज साझा की है जहां 2,800 खालें मौजूद हैं। हालांकि घाना में गधों को उनकी खाल के लिए मारा जाना पूरी तरह प्रतिबंधित है। इसी तरह नाइजीरिया से जुड़े व्यापारी मिले हैं।

ट्विटर पर भी  नाइजीरिया से जुड़े खाल व्यापार की जानकारी मिली है। वहीं अबू धाबी से जुड़ी कंपनी की एक 2018 की पोस्ट मिली है जिसमें गधे की खाल के साथ शेर और चीते के दांत के व्यापार की जानकारी सामने आई है। इतना है नहीं उस व्यापारी ने ग्रे पैरेट और मकाऊ से जुड़े पोस्ट डाले हैं। इसी तरह इंस्टाग्राम पर भी केन्या, नाइजीरिया और केन्या के व्यापारियों ने भी इससे जुड़ी पोस्ट डाली हैं।

यह सब कहीं न कहीं इस बात की ओर इशारा है कि सोशल नेटवर्क पर भी वन्यजीवों के साथ गधे की खाल का अवैध व्यापार तेजी से फैल रहा है। यह लोग खुले तौर पर नियमों को ताक पर रख इस व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं।