हाल ही में छपी रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ द वर्ल्ड प्लांट्स एंड फंगी 2020' के अनुसार हर पांच में से 2 पौधों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। दुनिया भर में अब तक पौधों की करीब 3,50,000 प्रजातियों को खोजा जा चुका है। जिसमें से 3,25,000 फूल वाले पौधे हैं। इस हिसाब से दुनिया की करीब 140,000 पौधों की प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा है, जबकि 2016 में छपी रिपोर्ट के अनुसार 21 फीसदी पौधों पर ही विलुप्ति का खतरा था।
यह रिपोर्ट 42 देशों के 210 शोधकर्ताओं द्वारा किए गए शोध का नतीजा है। अनुमान है कि धरती पर फंगी की करीब 22 से 38 लाख प्रजातियां हैं। जिनमें से अब तक करीब 148,000 प्रजातियों का पता चल चुका है, जबकि इसके बावजूद अभी भी इसकी 90 फीसदी प्रजातियों को खोजा जाना बाकी है।
रॉयल बॉटैनिकल गार्डन, केव से जुड़े अलेक्जेंड्रे एन्टोनेली के अनुसार एक ओर जहां हर साल नए पौधों और कवकों की खोज हो रही है, वहीं दूसरी ओर इन पौधों पर विलुप्ति का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। यह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु हैं जिन्हें समझना बहुत जरुरी है क्योंकि इस पर ही इन प्रजातियों का भविष्य निर्भर है।
उनके अनुसार जिस तरह से इन प्रजातियों पर खतरा बढ़ता जा रहा है, उसे देखते हुए त्वरंत कार्रवाई करने की जरुरत है। उनके अनुसार जिस तेजी से नई प्रजातियों को खोजा जा रहा है उससे कहीं अधिक तेजी से प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। इनमें से कई प्रजातियां तो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण हैं, जो वर्तमान और भविष्य में सामने आने वाली महामारियों की रोकथाम में अहम् भूमिका निभा सकती हैं।
रिपोर्ट से पता चला है कि मौजूदा पौधों की प्रजातियों का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही खाद्य पदार्थों और ईंधन के रूप में उपयोग किया जा रहा है। जबकि 7,000 से अधिक पौधे ऐसे हैं जिन्हें खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इसके बावजूद कुछ गिने-चुने पौधों का उपयोग बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए किया जा रहा है।
आज केवल छह फसलों - मक्का, गन्ना, सोयाबीन, ताड़, सफेद सरसों और गेहूं का प्रयोग ही जैव ईंधन बनाने के लिए किया जा रहा है। गौरतलब है कि इन पौधों से दुनिया के करीब 80 फीसदी बायोफ्यूल का निर्माण किया जाता है। जबकि करीब 2,500 पौधे ऐसे हैं, जिनका उपयोग ऊर्जा के क्षेत्र में किया जा सकता है।
दुनिया भर में लकड़ी का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है। अनुमान है कि उससे वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड का करीब 1.9 से 2.3 फीसदी हिस्सा उत्सर्जित हो रहा है। नेपाल और युगांडा जैसे देशों तो 90 फीसदी तक ऊर्जा की जरुरत के लिए इन जंगलों और उसकी लकड़ी पर ही निर्भर हैं। ऐसे में इन पौधों से उत्पन्न होने वाला बायोफ्यूल ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
दुनिया भर में पौधों की करीब 25,791 प्रजातियों को दवा के उपयोग लायक माना गया है। जिसमें से 5,411 को आईयूसीएन ने संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया है, जबकि रिपोर्ट के अनुसार उसमें से 13 फीसदी करीब 723 प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडराने लगा है। दवा के रूप में इन पौधों की कितनी उपयोगिता है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि 1981 से 2019 के बीच कैंसर के लिए स्वीकृत 185 दवाओं में से 65 फीसदी को प्राकृतिक उत्पादों से प्राप्त किया जाता है।
ऐसा नहीं है कि दुनिया भर में इन पौधों को बचाने की कवायद नहीं की जा रही है। आज दुनिया के 74 देशों के 350 बोटेनिक गार्डन्स में पौधों की करीब 57,051 प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए सीड बैंक बनाए गए हैं, जोकि बीजों वाले पौधों का करीब 17 फीसदी हैं।
इसके बावजूद जिस तेजी से बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए कृषि क्षेत्रों का प्रसार किया जा रहा है उससे इन प्रजातियों पर खतरा बढ़ता जा रहा है। आईयूसीएन ने कृषि और मछली पालन को पौधों के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में वर्गीकृत किया है जबकि मनुष्यों द्वारा किए जा रहे निर्माण और विकास कार्यों को फंगी के लिए सबसे बड़ा खतरा माना है। ऐसे में इन प्रजातियों के संरक्षण के लिए हमारी जिम्मेवारी और बढ़ जाती है, क्योंकि इनके विनाश के लिए हम ही जिम्मेदार हैं। इन पर न केवल मनुष्यों बल्कि सारी धरती का भविष्य टिका है।