वन्य जीव एवं जैव विविधता

मोतीचूर इलाके में गुलदार के हमले से 5 साल में 22 लोगों की मौत

Varsha Singh

राजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर रेंज में पिछले पांच सालों में 22 से अधिक लोग गुलदार के हमले में मारे जा चुके हैं। 8 मई को जंगल से सटे मोतीचूर गांव में सुखी नदी के किनारे तटबंध के पास घास काट रही महिला पर गुलदार ने हमला किया। कई घंटे की तलाश के बाद महिला का क्षत-विक्षत शव जंगल से बरामद किया गया। इस साल इस क्षेत्र में गुलदार के हमले में मौत की ये दूसरी घटना है। 

देहरादून में पिछले पांच-छह सालों से मोतीचूर रेंज से सत्यनारायण क्षेत्र के बीच करीब 6 से 7 किलोमीटर के स्ट्रेच में गुलदार का आतंक है। रायवाला क्षेत्र के गांव प्रतीत नगर, डांडी, खांड गांव, गूलर पड़ाव, हरिपुर कलां, सुखरो, सुसवा पुल, डोंडा, सौंग नदी के किनारे, सत्यनारायण-गौहरी माफी रोड, ठाकुरपुर गांव, जोहडा गांव में गुलदार का सबसे अधिक आतंक है। सबसे अधिक मौतें इन्हीं गांवों से हुई हैं। कभी रसोई घर में खेल रहे बच्चे को गुलदार उठाकर खेत में ले गया और मार डाला। मां के साथ जाते हुए बच्चे पर गुलदार ने हमला किया। मां की गोद तक से बच्चे को खींच ले गया। शौच के दौरान भी कई ग्रामीण गुलदार के हमले के शिकार हुए। साथ ही जंगल में लकड़ियां लेने गए ग्रामीणों पर गुलदार ने हमला किया। 

गुलदार के हमले की घटनाओं को लेकर राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक पीके पात्रो कहते हैं कि जंगल में लोगों का जाना मना है। कानून के लिहाज से भी ये जुर्म है। उनका कहना है कि 8 मई को गुलदार के हमले में मारी गई महिला जंगल के अंदर घास और लकड़ियां लेने गई थी। पात्रो कहते हैं कि लोगों को पता है कि उस क्षेत्र में गुलदार का आतंक है, बावजूद इसके वे जंगल में जाते हैं। यदि आप ऐसी जगह जा भी रहे हैं तो समूह में जाना चाहिए। उनका कहना है कि गुलदार ने गांव में आकर हमला किया होता तो अलग बात थी, लेकिन जंगल में जाने पर गुलदार हमला करता है तो ये लोगों की गलती है। पिछले पांच सालों में गुलदार के हमले में जो मौतें हुई हैं, उनमें सात मौतें जंगल के अंदर की हैं। ऐसी स्थिति में लोगों को मुआवज़ा देने में भी दिक्कत आती है।

निदेशक पीके पात्रो कहते हैं कि गुलदार के मूवमेंट पर नज़र रखने के लिए इस क्षेत्र में 30 से अधिक कैमरे लगे हुए हैं। इनके ज़रिये गुलदार के मूवमेंट की लगातार मॉनीटरिंग की जाती है। चूंकि अभी राज्य में चार धाम यात्रा भी शुरू हो गई है, हाईवे पर लोगों की आवाजाही बढ़ जाएगी, इसके चलते भी गुलदार संवेदनशील हो जाते हैं। इस लिए वन विभाग भी जंगल से सटे राजमार्ग पर पेट्रोलिंग कर रहा है। वे बताते हैं कि गांव के चारों ओर भी वन विभाग की टीमें गश्त लगाती हैं। इसकी वजह से गुलदार के हमले कुछ कम भी हुए हैं। पात्रों रास्ते में गाड़ी रोककर उतरने वाले पर्यटकों को भी आगाह करते हैं, क्योंकि इस दौरान गुलदार के हमले की आशंका बढ़ जाती है। पीके पात्रो कहते हैं कि इस समय हाईवे पर निर्माण कार्य भी चल रहे हैं। इससे दिन के समय गुलदार को आवाजाही में मुश्किल होती है।

गांव में चलाएंगे अभियान 

गुलदार की दहशत को कम करने के लिए वन विभाग के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक के मुताबिक अब विभाग की टीम गांव-गांव जाकर लोगों के साथ बैठकें करेगी और उन्हें जंगल में जाने से रोकने के बारे में समझाएगी। साथ ही लाउड स्पीकर के ज़रिये अनाउंसमेंट भी की जाएगी। वे कहते हैं कि घर-घर में गैस कनेक्शन होने के बावजूद लोग आदतन लकड़ियां लेने जंगल चले जाते हैं और फिर इस तरह के हमलों के शिकार होते हैं।

जिस तरह से मोतीचूर रेंज में गुलदार के हमले में मौते हो रही हैं, क्या ये माना जाए कि गुलदार नरभक्षी हो रहे हैं। इस पर पीके पात्रो कहते हैं कि जंगल के अंदर गुलदार किसी इंसान का शिकार करता है तो उससे आप नरभक्षी नहीं कह सकते। क्योंकि आप गुलदार के घर में घुस रहे हैं। उनका कहना है कि पहले भी इंसान पर हमला करने वाले गुलदार को चिन्हित कर जंगल में दूसरी जगह शिफ्ट करने की कोशिश की गई है। लेकिन उससे ज्यादा फायदा नहीं होता। हम एक गुलदार को निकालते हैं तो कोई दूसरा जंगली उसकी जगह ले लेता है।

मोतीचूर रेंज में कई गुलदार

देहरादून में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के डॉ बिवास पांडव कहते हैं कि मोतीचूर रेंज में गुलदार काफी अधिक संख्या में हैं। आमतौर पर 25 गुलदार प्रति 100 वर्ग किलोमीटर के दायरे में होने चाहिए। डॉ बिवास बताते हैं कि मोतीचूर, कांसरो, देवीवाड़ जैसे क्षेत्र में गुलदार की संख्या इससे कहीं अधिक है। हालांकि गुलदार की सही-सही संख्या नहीं पता है। लेकिन वन विभाग के कुछ अधिकारियों के मुताबिक 40 से अधिक गुलदार इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। डॉ बिवास कहते हैं कि जहां खाना ज्यादा होगा, वहां गुलदारों की संख्या भी अधिक होगी। इसके साथ ही इस क्षेत्र में बाघ कम है, उसकी अनुपस्थिति में भी गुलदार की संख्या बढ़ जाती है। वे कहते हैं कि कार्बेट टाइगर रिजर्व में बाघ ज्यादा हैं तो वहां गुलदार कम हैं।

हमला करने वाले गुलदार की पहचान जरूरी

डब्ल्यूआईआई के डॉ बिवास के मुताबिक चूंकि इस क्षेत्र में बहुत से गुलदार मौजूद हैं तो इंसान पर हमला करने वाले गुलदार की पहचान में मुश्किल आती है। उसकी पहचान करना बहुत जरूरी है। 

इस क्षेत्र में मानवीय गतिविधियां भी बहुत अधिक है, इसलिए भी ये संघर्ष देखने को मिल रहा है। उनके मुताबिक इंसानों पर हमला करने वाले गुलदार को चिन्हित कर उसे उस क्षेत्र से हटाना होगा। इसके लिए गुलदार के हमले में मारे गए व्यक्ति के शरीर पर जो बाइट मार्क हो, या सलाइवा हो, उसकी फॉरेंसिक जांच से हम गुलदार को चिन्हित कर सकते हैं। हालांकि ये मुश्किल प्रयोग है और इसमें असफलता के आसार भी हैं।

इसके साथ ही वे सभी गुलदारों को पकड़कर रेडियो कॉलर लगाने की भी सलाह देते हैं। जिससे उनकी आवाजाही की निगरानी की जा सके। ये महंगा और बहुत समय वाला काम है। डॉ बिवास के मुताबिक विभाग ने पहले भी कुछ गुलदार पकड़े हैं, उनमें यदि रेडियो कॉलर लगा दिया जाए, तो आगे चलकर ये समस्या कुछ हल हो सकती है।

डॉ बिवास पांडव के मुताबिक कार्बेट टाइगर रिजर्व में इतने बाघ हैं, वहां पर्यटकों की आवाजाही भी है, इसके बावजूद इस तरह के मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं कम होती हैं। जंगली जानवरों के हमले के लिए कहीं न कहीं इंसान भी जिम्मेदार हैं।