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विश्व मौसम संगठन ने की अल नीनो के आगाज की घोषणा, भारत में भी मॉनसून पर रहेगी नजर

अनुमान है कि अल नीनो की यह घटना भारत में मॉनसून पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है

Akshit Sangomla, Lalit Maurya

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने 4 जुलाई, 2023 को भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल नीनो के आगाज की घोषणा कर दी है। ऐसे में वैश्विक स्तर पर वातावरण और समुद्र के औसत तापमान में होने वाली वृद्धि के साथ-साथ लू और सूखे जैसी चरम मौसमी घटनाओं पर भी नजर रखने की जरूरत है।

गौरतलब है कि अल नीनो, अल नीनो दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) घटना का सामान्य से अधिक गर्म चरण है, जिसके दौरान भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान (एसएसटी) जिसे नीनो 3.4 के रूप में जाना जाता है, वो औसत से 0.5 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक गर्म हो जाता है। तापमान के इस मान को ओशियन नीनो इंडेक्स (ओएनआई) के रूप में भी जाना जाता है। डब्ल्यूएमओ के अनुसार यह मान जून के मध्य में 0.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र के मौसम और जलवायु संगठन ने यह भी कहा है कि अल नीनो से पहले के कुछ महीनों के दौरान समुद्री परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आया है। जब ओशनिक नीनो इंडेक्स फरवरी 2023 में -0.44 डिग्री सेल्सियस से बढ़कर मई 2023 में +0.47 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया था। वहीं जून के मध्य तक इसका मान +0.9 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया था।

हालांकि डब्ल्यूएमओ ने यह भी कहा है कि अल नीनो को लेकर अभी भी कुछ अनिश्चितता बनी हुई है, क्योंकि समुद्री गर्मी के कारण वायुमंडल पर प्रभाव अभी भी अच्छी तरह से स्थापित नहीं हुआ है, जो अल नीनो के बनने के लिए जरूरी है।

डब्ल्यूएमओ ने इस बारे में मीडिया के लिए जारी एक बयान में कहा है कि उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में इसके पूर्ण और स्थापित कनेक्शन का निरीक्षण करने में करीब एक महीने या उससे अधिक का समय लगेगा। बयान के अनुसार अल नीनो के चलते वैश्विक तापमान में संभावित वृद्धि हो सकती है। साथ ही इसकी वजह से मौसम और जलवायु से जुड़ी प्रलयंकारी घटनाओं में वृद्धि हो सकती है।

वहीं यदि अतीत पर नजर डालें तो अल नीनो के कारण आम तौर पर ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, भारत सहित दक्षिणी एशिया के कुछ अन्य हिस्सों, मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के उत्तरी हिस्सों में गंभीर सूखा पड़ा है। वहीं यह दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी हिस्सों, अमेरिका के दक्षिणी क्षेत्रों के साथ हॉर्न ऑफ अफ्रीका और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों में बारिश में आई वृद्धि की वजह बना था। इतना ही नहीं अल नीनो मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में सामान्य से कहीं ज्यादा तूफानों को बढ़ावा दे सकता है और अटलांटिक महासागर में बनने वाले तूफानों को कम कर सकता है।

क्या है इसका क्लाइमेट कनेक्शन

लेकिन वर्तमान में यह अल नीनो ऐसे समय में घट रहा है जब वैश्विक तापमान में होती वृद्धि के कारण औसत तापमान पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है। इस बढ़ते तापमान के लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं, क्योंकि इंसानी गतिविधियां ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन की वजह हैं।

मई 2023 में, डब्ल्यूएमओ ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कहा गया था कि इस बात की 98 फीसदी संभावना है कि अगले पांच वर्षों में से एक अब तक का सबसे गर्म साल होगा, जो 2016 में बनाए गए पिछले रिकॉर्ड को तोड़ देगा। गौरतलब है कि 2016 में भी ग्लोबल वार्मिंग और अल नीनो का संयुक्त प्रभाव देखा गया था।

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक, वैश्विक वार्षिक औसत तापमान के अस्थाई रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करने की 66 फीसदी आशंका है। वहीं अल नीनो से जुड़े प्रभाव जैसे बढ़ा हुए तापमान, लू और सूखे के मामले में सबसे गंभीर प्रभाव 2024 में अनुभव किए जाएंगे, जब इस मौसमी घटना के अपने चरम पर पहुंचने की संभावना है।

इस बारे में डब्ल्यूएमओ में जलवायु सेवा के निदेशक क्रिस हेविट का कहना है कि, "इसका मतलब यह नहीं है कि अगले पांच वर्षों में हम पेरिस समझौते में तय 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर को पार कर जाएंगे, क्योंकि यह समझौता कई वर्षों में दीर्घकालिक वार्मिंग को संदर्भित करता है।"

उनका आगे कहना है कि, "हालांकि, यह एक और चेतावनी है, कि हम रास्ते से भटक गए हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को काफी हद तक कम करने के लिए 2015 में तय पेरिस समझौते के लक्ष्यों की राह पर नहीं हैं।"

वहीं डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेटेरी तालास का कहना है कि, "डब्ल्यूएमओ द्वारा अल नीनो की घोषणा दुनिया भर की सरकारों को हमारे स्वास्थ्य, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र और हमारी अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव को सीमित करने के लिए तैयारी करने का संकेत है।"

उनके मुताबिक, "ऐसे में जीवन और आजीविका की रक्षा के लिए इस प्रमुख जलवायु घटना से जुड़ी चरम मौसम घटनाओं के बारे में प्रारंभिक चेतावनी जैसे सक्रिय उपाय करना महत्वपूर्ण है।"

भारत में भी मॉनसून हो सकता है प्रभावित

यदि भारत की बात करें तो अल नीनो इस घटना के मौजूदा मॉनसून पर बड़ा प्रभाव पड़ने की आशंका है। इससे पहले भी कई अल नीनो वर्षों के दौरान पूरे भारत में सूखा पड़ा था और मॉनसून के दौरान होने वाली बारिश में कमी आई थी। 2015 में भी 2023 की तरह ही अल नीनो की घटना घटी थी, जिसकी वजह से मॉनसूनी बारिश में 14.5 फीसदी की कमी आई थी। वहीं सिन्धु-गंगा के मैदानी क्षेत्र में होने वाली बारिश में 25.8 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी। इसकी वजह से देश में सूखे की घटनाएं दर्ज की गई थी।

30 जून 2023 को, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा था कि तीन महीने का औसत ओशनिक नीनो इंडेक्स (ओएनआई) जून के अंत में 0.47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। वहीं जुलाई के अंत तक इसके 0.81 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाने की भविष्यवाणी की गई है। जो भूमध्य रेखा के पास प्रशांत महासागर में अल नीनो की बनती स्थिति की उपस्थिति का संकेत देता है।

आईएमडी ने जुलाई के दौरान में पूरे देश में सामान्य बारिश का अनुमान लगाया है, लेकिन अपने संभावित वर्षा वितरण मानचित्र में, मौसम एजेंसी ने भविष्यवाणी की है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, मेघालय, पंजाब, लद्दाख, दक्षिणी कर्नाटक और तमिलनाडु के बड़े हिस्सों में सामान्य से कम बारिश हो सकती है।

गौरतलब है कि देश के दक्षिणी प्रायद्वीप क्षेत्र में जून 2023 के दौरान केवल 88 मिलीमीटर बारिश हुई थी, जो 1901 से लेकर अब तक के मौसमी इतिहास में सबसे कम रही। इससे पहले 1976 में 90.7 मिमी बारिश दर्ज की गई थी।