इस साल देवरिया जिला देश का सबसे सूखा जिला रहा, जहां 87 प्रतिशत कम बारिश हुई
मॉनसून के दौरान जिले में केवल 97.2 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई, जबकि औसत 759.4 एमएम है
कृषि वैज्ञानिक मांधाता सिंह ने इसे जलवायु परिवर्तन से जोड़ा है
किसान संगठन और विपक्षी दलों ने जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की है
मॉनसून की बारिश ने इस साल देश के कई इलाकों में जमकर तबाही मचाई है, वहीं 20 प्रतिशत जिले ऐसे भी हैं जहां कम या बहुत कम बारिश हुई है। इस लिस्ट में पूर्वी उत्तर प्रदेश डिवीजन का देवरिया जिले सबसे ऊपर है जहां 25 सितंबर 2025 तक 87 प्रतिशत कम बारिश दर्ज हुई है। जिले में मॉनसून सीजन में अब तक केवल 97.2 एमएम बारिश ही हुई है जबकि औसत बारिश का आंकड़ा 759.4 एमएम है।
मॉनसून सीजन के पिछले 16 हफ्तों में कोई हफ्ता ऐसा नहीं जब देवरिया में बारिश लार्ज डेफिसिट न हो। इन 16 हफ्तों में 8 हफ्ते ऐसे रहे जब बारिश 90-100 प्रतिशत तक कम हुई जबकि 8 हफ्तों में यह कमी 80-90 प्रतिशत तक रही।
देवरिया कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक मांधाता सिंह मानते हैं कि इस साल ऐतिहासिक रूप से कम बारिश हुई है। उन्होंने जिले में इतनी कम बारिश कभी नहीं देखी। कम बारिश को वह जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हुए कहते हैं कि पिछले चार साल से इस तरह की प्रवृत्ति देखी जा रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, किसान संगठन और विपक्षी दलों ने जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की है, हालांकि प्रशासन की ओर से इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि जिले में अधिकांश कृषि भूमि सिंचित है।
साल 2024 में भी देवरिया में 43 प्रतिशत जबकि 2023 में 46 प्रतिशत कम मॉनसूनी बारिश दर्ज की गई थी। इससे पहले के तीन वर्षों (2020-22) में जिले में सामान्य से अधिक बारिश रिकॉर्ड हुई थी।
पूर्वांचल में कम बारिश
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, पूर्वी उत्तर प्रदेश के 42 जिलों में मॉनसून की बारिश 16 प्रतिशत कम हुई जो सामान्य बारिश मानी जाती है, लेकिन इन जिलों में केवल देवरिया और कुशीनगर ऐसे जिले हैं जो लार्ज डेफिसिट (बहुत कम बारिश) की श्रेणी में हैं। कुशीनगर जिले में 64 प्रतिशत कम बारिश दर्ज हुई है।
आईएमडी द्वारा जारी 2024 की मॉनसून रिपोर्ट में कुशीनगर को गंभीर सूखे से ग्रस्त जबकि चंदौली, देवरिया, फैजाबाद, फतेहपुर, गौतमबुद्धनगर, पंचशीलनगर, जौनपुर, ज्योतिबाफुले नगर, मऊ, मिर्जापुर, सीतापुर, उन्नाव, संतरविदासनगर और अमेठी को मध्यम सूखे से ग्रस्त माना गया था। इनमें से अधिकांश जिले पूर्वांचल में आते हैं।
2025 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के 50 प्रतिशत जिले (21 जिले) डेफिसिट बारिश वाले जिलों की श्रेणी में शामिल है। इसका अर्थ है कि करीब आधे पूर्वी उत्तर प्रदेश में 20-59 प्रतिशत कम बारिश हुई है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश की स्थिति 33 जिलों वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश से अलग है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 12 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है और इस क्षेत्र में केवल एक जिला पीलीभीत लार्ज डेफिसिट और 5 जिले (18 प्रतिशत) डिफिसिट बारिश की श्रेणी में हैं।
मॉनसून का धोखा
कुशीनगर जिले के पडरौना में रहने वाले राजकुमार सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उनके जिले में पिछले चार-पांच वर्षों से बहुत कम बारिश हो रही है, जिससे धान की फसल पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। वह बताते हैं कि हालांकि अधिकांश भूमि सिंचित है लेकिन फिर भी मॉनसून में बादलों के न बरसने पर 40-60 प्रतिशत तक उत्पादन में कमी हो रही है।
मॉनसून पर नजर रखने वाले राजकुमार ने पाया है कि चार-पांच वर्षों से मॉनसून उनके क्षेत्र को बाईपास कर रहा है। इसे समझाते हुए वह आगे बताते हैं कि हम दक्षिण पश्चिमी मॉनसून की प्रगति पर हर साल नजर रखते हैं। हम देख रहे हैं कि मॉनसून पूर्वांचल के जिलों को छोड़ता हुआ आगे बढ़ जा रहा है।
आईएमडी के आंकड़ों में इसकी कुछ हद तक तस्दीक होती है। इस साल पूर्वी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के हिस्से में आने जिलों में ही सबसे अधिक डेफिसिट है।
आईएमडी के अनुसार, 2025 में अब तक पूर्वांचल के आजमगढ़ में 40 प्रतिशत, बलिया में 21 प्रतिशत, बस्ती में 22 प्रतिशत, भदौही में 32 प्रतिशत, चंदौली में 39 प्रतिशत, गाजीपुर में 24 प्रतिशत, गोरखपुर में 43 प्रतिशत, जौनपुर में 44 प्रतिशत, महाराजगंज में 20 प्रतिशत, मऊ में 53 प्रतिशत, संतकबीरनगर में 53 प्रतिशत और सिद्धार्थनगर में 33 प्रतिशत में कम बारिश दर्ज हुई है।
यह प्रवृत्ति पिछले कुछ सालों से लगातार बनी हुई है। मांधाता सिंह भी मानते हैं कि पूर्वांचल को मॉनसून बाईपास पर रहा है। वह यह भी बताते हैं देवरिया का अधिकांश हिस्सा सिंचित है, इसलिए कम मॉनसून में भी सूखे जैसे हालत नहीं बन रहे हैं। मांधाता के अनुसार, पूर्वांचल से सटे बिहार के जिलों में भी जलवायु परिवर्तन के कारण कम बारिश हो रही है।