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यहां जानिए आखिर क्यों बदल रहा है मॉनसून का पैटर्न

शोधकर्ताओं को कोल्हापुर में, मॉनसून से पहले बादलों और इनके प्रसार की दिशा में बदलाव का पता चला है, जो मॉनसूनी वर्षा पैटर्न में बड़े बदलाव की ओर इशारा करते हैं

Dayanidhi

भारतीय शोधकर्ताओं के द्वारा किए गए एक शोध में कहा गया है कि, साल 2016 से 2020 तक मार्च से मई के महीनों के दौरान महाराष्ट्र के कोल्हापुर में बादलों की गति और हवा के पैटर्न में बदलाव देखा गया। वहीं इस इलाके में मॉनसून से पहले बादलों और इनके प्रसार की दिशा में बदलाव का पता चला है, जो मॉनसूनी वर्षा पैटर्न में बड़े बदलाव का इशारा है।

यह सभी जानते हैं कि बादल आने वाले सौर विकिरण को वायुमंडल में बिखेर सकते हैं और पृथ्वी से बाहर जाने वाली लंबी-तरंगों वाले विकिरण के लिए एक आवरण के रूप में कार्य करते हैं। बादलों का पृथ्वी की जलवायु पर खासा प्रभाव पड़ता है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रक्रियाओं द्वारा अपनी प्रकृति में बदलाव जारी रखते हैं।

इस प्रभाव को अंतरिक्ष-समय वितरण और उनकी ऊंचाई, मोटाई, आकार वितरण आदि द्वारा नियंत्रित किया जाता है। उपग्रह में लगे सेंसर बादलों की गति का पता लगाते हैं और इस धारणा के तहत कि बादल हवाओं के साथ चलते हैं, क्लाउड मोशन वेक्टर 'सीएमवी' तैयार करता है। सीएमवी के मान सिनोप्टिक स्केल वायुमंडलीय गतिशीलता और प्रसार को समझने में बहुत उपयोगी हैं।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत स्वायत्त संस्थान भारतीय भू-चुम्बकत्व संस्थान (आईआईजी) के वैज्ञानिकों ने निम्न अक्षांश स्टेशन कोल्हापुर में बादलों का पता लगाने के लिए सभी स्काई इमेजर डेटा (एएसआई), जिसे आमतौर पर ऊपरी वायुमंडलीय अध्ययन के लिए उपयोग किया जाता है, इसका उपयोग किया।

आमतौर पर, ऑल स्काई इमेजर का उपयोग रात की हवा का निरीक्षण करने के लिए किया जाता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने इसका उपयोग बादलों का पता लगाने के लिए किया। उन्होंने इस शोध के लिए रात के समय के आंकड़ों का उपयोग किया।

इस बात का पता लगाने के लिए सामान्य या रॉ आंकड़े या आकाश में बादलों से संबंधित आंकड़ों का उपयोग किया, जिसे एयरग्लो अध्ययन के लिए अप्रासंगिक माना जाता है, जो इस काम की एक नवीन विशेषता है।

एएसआई का स्थानिक रिज़ॉल्यूशन बहुत अधिक है और इससे वैज्ञानिकों को 10 किलोमीटर रिज़ॉल्यूशन के इनसैट के आंकड़ों के साथ आंकड़ों की तुलना करने में मदद मिली। एयरग्लो मॉनिटरिंग के मार्च, अप्रैल और मई महीनों के दौरान 2016 से 2020 की अवधि में एकत्र किए गए आंकड़ों का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने क्लाउड मोशन वेक्टर, क्लाउड कवरेज प्रतिशत और बादल विचरण की दिशा की गणना की।

2017 में इसकी सबसे धीमी गति देखी गई, जबकि अन्य वर्षों में इसकी गति अधिक थी। इस समयावधि के दौरान बादलों को दक्षिण-पश्चिम दिशा में बढ़ते पाया गया।

शोधकर्ता ने बताया कि, कोल्हापुर के अरब सागर के करीब होने के कारण, हमारे आंकड़ों में दर्ज की गई हवाओं के साथ-साथ बादलों की गति भी दक्षिण-पश्चिम दिशा में देखी गई। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि साल का समय आगे बढ़ने के साथ बादलों के प्रसार की दिशा दक्षिण की ओर मुड़ रही है।

मार्च और अप्रैल महीने के आंकड़ों में यह और अधिक स्पष्ट है। इसके जलवायु परिवर्तन से बड़े संबंध हो सकते हैं। इस विश्लेषण का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने दिखाया कि मॉनसून पैटर्न में बदलाव हो रहा है, जिसका प्रभाव बारिश के व्यवहार पर भी पड़ सकता है।