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ग्लोबल वार्मिंग की काल्पनिक उड़ान जब हकीकत में बदली!

ग्लोबल वार्मिंग के कारण बड़ी संख्या में भारतीय व पाकिस्तानी दम तोड़ रहे हैं, गरीब और भीड़भाड़ वाले भारत-गंगा के मैदानी इलाकों में जलवायु परिवर्तन के कारण हीटवेव के भयावह दुष्परिणाम

Anil Ashwani Sharma

“द मिनिस्ट्री  फॉर द फ्यूचर” नामक चर्चित उपन्यास की शुरूआत में लेखक (किम स्टेनली रॉबिन्सन) ने उत्तर भारत में हीटवेव (लू) के समय किस प्रकार का माहौल रहता है, इसका काफी सजीव वर्णन किया है। हालांकि यह वर्णन काल्पनिक है लेकिन वह कल्पनिक उड़ान सच के काफी करीब महसूस होती है। जैसे लेखक कल्पना करता है कि लू (हीटवेव) से प्रभावित एक छोटे भारतीय शहर का परिदृश्य क्या होगा? सबसे पहले तो पूरा का पूरा का शहर दिन चढ़ते ही उसकी सड़कें, गली-कूचों आदि चारो ओर सन्नाटा पसर जाएगा।

शहर की हर प्रकार की गतिविधियों जहां की तहां थम सी जाएंगी। वातानुकूलित कमरे भर जाएंगे। यही नहीं बिजली की सप्लाई और कानूनी व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाएगी। एक बारगी शहर को देखकर लगेगा कि जैसे यह कोई मध्य युगीन शहर है। लू के कारण शहर की झीलें शवों से अटी पड़ी हुईं हैं। कहने क लिए तो उपन्यास की यह कल्पनिक उड़ान काफी दहला देनी वाली है लेकिन अपनी इस भयावह कल्पना के बारे में लेखक स्वयं स्पष्ट करते हुआ कहता है कि उसने यह भयानक कल्पना एक चेतावनी देने के लिए ही बस किया है। 

भारत-गंगा का मैदानी इलाका उत्तरी भारत के मध्य से शुरू होता हुआ पाकिस्तान से लेकर बांग्ला देश तक फैला हुआ है। इस इलाके में 700 मिलियन लोगों का घर बसा हुआ है। इस इलाके में जलवायु परिवर्तन के कारण लू बार-बार आती है। ध्यान रहे कि यह इलाका पृथ्वी पर सबसे गर्म, गरीब और अधिक आबादी वाले स्थानों में से एक है।

लेकिन एक बात पर ध्यान देना होगा कि लेखक ने तो अपनी किताब में भारत के इस इलाके का भयानक चित्रण अपनी किताब में उकेरा लेकिन जब इसकी हकीकत की पड़ताल की गई तो पता चला कि लेखक की कल्पनिक उड़ान इतनी भी कोरी कल्पना नहीं है। यह इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ पत्रिका ने अपने एक अध्ययन बताया है कि 2000 और 2019 के मध्य इन इलाकों (दक्षिण एशिया) में बढ़ते तापमान के कारण 1,10,000 से अधिक मौतें हुईं थीं। 

वैज्ञानिक अत्याधिक गर्मी से होने वाले तनाव को तापमान व आर्दता को मिलाकर रिकॉर्ड करते हैं। और इस स्तर पर होने वाली गर्मी से शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, ऐसे हालात में मनुष्य को तापमान कम करना कठिन हो जाता है। लगभग 31 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि ऐसे हालात में मस्तिष्क, हृदय और गुर्दों के काम करने की क्षमता कम होने की संभावना बढ़ जाती है।

लेखक ने अपनी पुस्तक में 35 डिग्री सेल्सियस के तापमान में निरंतर संपर्क में रहने की कल्पना की है। और यह सौ फीसदी सही है कि यह एक घातक स्थिति है। भारत के गंगा के मैदानी इलाके उन कुछ स्थानों में से एक हैं, जहां 35 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया है। ऐसा ही कई बार यह भी देखने में आया है कि यह स्थिति कमोबेश पाकिस्तानी शहर जैकबाबाद में भी होती है। नवंबर 2022 में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि तापमान में बढ़ोतरी के मामले में भारत विश्व में पहले नंबर पर आ सकता है, क्योंकि यहां कई स्थानों पर तापमान नियमित रूप से 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो रहा है।

द इकोमिस्ट पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान प्रांतों की सीमा पर बसे जैकबाबाद में 2022 में नियमित तापमान 51 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। शहर की दो लाख से अधिक की आबादी गर्मी से बचने के लिए शहर से बाहर चली गई थी। फिर जून की शुरुआत में तापमान कम होने के बाद ही लोगबाग लौटे और शहर की जीवनचर्या पटरी पर लौटी।

जैकबाबाद के दिहाड़ी मजदूर अली बहार जून में अपने घर के आसपास के खेतों में काम नहीं कर पाने की भयावह स्थिति को याद करते हुए बताते हैं कि उस समय 42 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में मैं ट्रैक्टर चला रहा था लेकिन इसके चलते मुझे चक्कर आ गया और मैं खेतों में ही गिर गया। साथ काम करने वालों ने जैसे-तैसे मुझे अस्पताल पहुंचाया, तब जाकर मेरी जान बची। हालांकि मुझे अस्पताल से एक हफ्ते में छुट्टी दे दी गई थी लेकिन मै माहभर काम पर नहीं लौट पाया। 

भारत में तापमान के रिकॉर्ड पूर्व में हुए भयावह परिवर्तनों की ओर इशारा करते हैं। भारत की मौसम एजेंसी के अनुसार भारत ने पिछले दो दशकों से यानी 2019 तक प्रतिवर्ष औसतन 23.5 हीटवेव देखी हैं। जो कि पहले की तुलना में दोगुनी है। ध्यान रहे कि 1980 और 1999 के बीच 9.9 का औसत देखा गया था। 2010 और 2019 के बीच भारत में हीटवेव की घटनाओं में पिछले दशक की तुलना में एक चौथाई की वृद्धि दर्ज हुई है। और इससे गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में 27 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया है। 2022 में तो भारत ने 2012 की इसी अवधि की तुलना में दोगुने हीटवेव के दिनों का अनुभव किया। 

वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के अनुसार भारत के औसत वार्षिक तापमान में 1900 और 2018 के बीच लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है। गर्मी के असामान्य होने से गर्मी और घातक हो गई है। शहरी वातावरण ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में दो डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म हो सकता है I अक्सर वे लोग जो घर आदि बनाने के लिए टिन जैसी गर्मी से तपने वाली सामग्री का उपयोग करते हैं, ऐसे लोग सबसे ज्यादा पीड़ित होते हैं।

उत्तरी कैरोलिना में ड्यूक विश्वविद्यालय के ल्यूक पार्सन्स का मानना है कि भीषण गर्मी से हर कार्य की लागत पहले की तुलना में बहुत अधिक है। यहां तक कि दिल्ली में औसत गर्मी के दिनों में काम करने से प्रति घंटे 15-20 मिनट के श्रम का नुकसान होता है। पार्सन्स और उनके सहयोगियों ने अनुमान लगाया है कि अत्यधिक गर्मी के कारण भारत प्रति वर्ष 101 अरब मानव घंटे और पाकिस्तान 13 अरब घंटे खो देता है।

2022 में गर्मी के कारण दोनों देशों में गेहूं की फसल लगभग 15 और कुछ क्षेत्रों में 30 तक कम पैदा हुई थी। इस दरमियान मेवेशियों की मौतें भी हुईं थीं। सामान्य रूप से खेती कार्य करना असंभव हो गया था। कूलिंग की बढ़ती मांग के कारण बिजली की भारी कटौती ने भारत के दिल्ली जैसे शहरों में ब्लैकआउट कि स्थिति पैदा कर दी। यही नहीं इस स्थिति ने स्कूली दिनों को भी कम कर दिया। 

मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट (एमजीआई) द्वारा 2020 में किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारत में अत्यधिक गर्मी से काम के घंटों का नुकसान 1980 से पहले के अधिकतम 10 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत हो गया है। ऐसा अनुमान है कि यह 2030 तक दोगुना हो जाएगा। विश्व बैंक ने पिछले साल चेतावनी दी थी कि पाकिस्तान जलवायु परिवर्तन के कारण सकल घरेलू उत्पाद का 6.5-9 प्रतिशत खो सकता है। कारण कि बढ़ती हुई बाढ़ और गर्मी ने कृषि और पशुधन की पैदावार को कम करती है, बुनियादी ढांचे को नष्ट करती हैं, साथ ही श्रम उत्पादकता को कम करती है और स्वास्थ्य को भी कमजोर करने में अहम भूमिका निभाती है। 

ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) से मुकाबला करने के लिए क्या किया जा सकता है? भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात के अहमदाबाद के प्रशासक दिलीप मावलंकर ने इस स्थिति से मुकाबला करने के लिए एक गाइड लाइन तैयार की है। 2010 में शहर ने एक भयावह लू का सामना किया था, जिसने एक सप्ताह में 800 लोगों की जानें ले लीं थीं। मावलंकर कहते हैं कि यह चौंकाने वाला आंकड़ा था। गुजरात की राजधानी गांधीनगर में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक के रूप में उन्होंने अहमदाबाद को भारत की पहली गर्मी कार्य योजना (एचएपी) को डिजाइन करने में मदद की। इसने कई सरल लेकिन प्रभावी उपायों की सिफारिशें कीं।

उदाहरण के लिए अत्यधिक तापमान के बारे में लोगों को चेतावनी देना, उन्हें घर के अंदर रहने और ढेर सारा पानी पीने की सलाह देना और आपातकालीन सेवाओं को हाई अलर्ट पर रखना। आज की तारीख में भारत के नगर, जिले और राज्यों में इस प्रकार की 100 से अधिक कार्य योजनाओं के होने का अनुमान है। पाकिस्तान की वाणिज्यिक राजधानी कराची में 2015 के हीट वेव से 1300  सौ लोग मारे गए थे। इसके बाद एक गर्मी कार्य योजना विकसित की गई। इस कार्य योजना का लाभ दिखा भी जब पिछले साल चली लू के दौरान आश्चर्यजनक रूप से मृत्यु दर में कमी देखने को मिली।

दिल्ली की सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एक नए अध्ययन में पाया गया कि नमी की भूमिका को नजरअंदाज करके गर्मी के खतरों को बहुत सरल और आसान बना दिया गया है। इससे समाज के सबसे कमजोर वर्ग को राहत दिलाने का लक्ष्य अब तक अधूरा है। भारत का आईएमडी पांच दिवसीय रंग-कोडित पूर्वानुमानों के साथ दैनिक हीट बुलेटिन जारी करता है। इस मामले में पाकिस्तान अभी बहुत पीछे है। पाकिस्तान की जलवायु परिवर्तन मंत्री शेरी रहमान कहती हैं कि प्रौद्योगिकी के मामले में पीएमडी पूरी तरह से चरमरा गया है। संयुक्त राष्ट का कहना है कि बेहतर पूर्वानुमान के लिए बेहतर क्षमताओं की जरुरत होगी और दोनों देश सहयोग से इस मामले में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।

इसके लिए दोनों देशों को अधिक अच्छे उपाय करने होंगे। न्यू जर्सी के प्रिंसटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक गेब्रियल वेची कहते हैं कि कायदे से हमें एक गर्म दुनिया में रहना सीखना होगा और यहां सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि यह सीखने की प्रक्रिया कितनी व्यवस्थित और महंगी होगी। समय रहते यदि हीटवेव के लिए कुछ नहीं किया गया तो साल-दर-साल गरीबी और भीड़-भाड़ वाले इंडो-गंगा के मैदानी हिस्से धीरे-धीरे अनुपयोगी होते जाएंगे। यहां तक कि ऐसे हालात में सबसे सक्षम सरकार भी उस तबाही को रोक पाने में सफल न होगी।