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उत्तराखंड: चार धाम यात्रा के लिए चुनौती बना मौसम, हिमस्खलन व भूस्खलन ने बढ़ाई दिक्कतें

विशेषज्ञों का कहना है कि बेमौसमी बारिश और बर्फबारी के बावजूद तीर्थयात्रियों की बढ़ती भीड़ एक बड़ा खतरा बन सकती है

Trilochan Bhatt

अप्रैल के आखिरी और मई के शुरुआती दिनों में मौसम में हुए अप्रत्याशित बदलाव के बाद उत्तराखंड के चारधामों की यात्रा बुरी तरह से प्रभावित है। 24 अप्रैल को केदारनाथ के कपाट खुलने के साथ ही बारिश और बर्फबारी का दौर शुरू हो गया था, जो एक दिन पहले तक जारी रहा। केदारनाथ पैदल मार्ग पर पिछले दो दिनों में दो बार एवलांच (हिमस्खलन) और बदरीनाथ मार्ग पर हेलंग के पास हुए बड़े भूस्खलन (लैंडस्लाइड) ने तीर्थयात्रियों की दिक्कतें बढ़ा दी है।

केदारनाथ मार्ग पर बीते 3 मई को शाम करीब 5 बजे कुबेर गदेरा के पास भारी मात्रा में ताजा बर्फ नीचे खिसक कर सड़क पर जमा हो गई। वहीं 4 मई की सुबह इसी जगह पर फिर से एवलांच आया। यह एवलांच आसपास के दो गदेरों में आया। बीच में एक टापू बच गया, जिस पर नेपाल मूल के चार पोर्टल फंस गये। पुलिस और एसडीआरएफ ने रस्सियों के सहारे उन्हें सुरक्षित निकाला। वहीं, भारी बारिश की आशंका के चलते केदारनाथ में आने वाले यात्रियों की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया फिलहाल सात मई तक रोक दी गई है।

इस सीजन में एक साथ दो एवलांच की घटना को असामान्य माना जा रहा है, लेकिन चूंकि असामायिक बर्फबारी हुई है और बर्फबारी के बाद एवलांच होने सामान्य सी बात है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भूवैज्ञानिक डॉ. मनीष मेहता कहते हैं कि अप्रैल और मई में इस तरह की बारिश और बर्फबारी अप्रत्याशित हैं। लेकिन, बर्फबारी के बाद एवलांच सामान्य और प्राकृतिक घटना है। खासकर तब जब बर्फबारी से पहले मौसम गर्म रहा हो तो ऐसे मौसम में पड़ने वाली बर्फ जमीन पर पकड़ नहीं बना पाती। जमीन और बर्फ की सतह के बीच एक सतह पानी की बनी रहती है, इससे ताजा पड़ी बर्फ तेज रफ्तार से नीचे की ओर फिसलने लगती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि अभी एवलांच की घटनाएं होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। भूवैज्ञानिक डॉ. सती कहते हैं कि एवलांच को लेकर न तो कोई चिन्ता की जानी चाहिए और न ही यह इस बात का संकेत है कि इससे ग्लेशियरों की हालत पर कोई असर पड़ेगा। लेकिन, वे तीर्थयात्रा के नाम में भारी भीड़ के हिमालयी क्षेत्र में पहुंचने को लेकर चिन्ता जताते हैं।

सती कहते हैं कि हर रोज हजारों की संख्या में तीर्थयात्रियों का केदारनाथ और बदरीनाथ जैसे उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित तीर्थस्थलों पर पहुंचना एवलांच की दृष्टि से खतरनाक साबित हो सकता है। एवलांच बेशक बेहद सामान्य और प्राकृतिक घटना हो, लेकिन एवलांच वाले क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी से खतरा हो सकता है।

कपाट खुलने से पहले हुई भारी बर्फबारी के बाद जिस तरह से रास्ते बनाए गए हैं, उस पर सवाल उठ रहे हैं। सती कहते हैं कि एवलांच से बंद हुए केदारनाथ मार्ग को जिस तरह से बर्फ काटकर खोला गया है, वह एवलांच से ज्यादा खतरनाक है। तस्वीरों में दिख रहा है कि रास्ता खोलने के लिए इस बर्फ को 90 डिग्री पर काटा गया है, इससे किसी भी समय एक झटके में कई टन बर्फ नीचे गिर सकती है और वहां से गुजर रहे लोग उसकी चपेट में आ सकते हैं।

भूस्खलन का खतरा
पश्चिमी विक्षोभ के कारण हो रही भारी बारिश से पहाड़ी राज्यों में भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है। 4 मई, 2023 को बदरीनाथ मार्ग पर हेलंग के पास पहाड़ का एक बड़ा हिस्सा टूट जाने को भी बड़े खतरे के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल हेलंग से लेकर जोशीमठ होते हुए विष्णुप्रयाग तक इन दिनों सड़क चौड़ीकरण का काम चल रहा है।

यह सरकार के चारधाम प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसे ऑलवेदर रोड कहा जाता है। हेलंग में जिस जगह पहाड़ी से हजारों टन मलबा गिरा, वहां पिछले कुछ दिनों से बड़ी-बड़ी मशीनों से पहाड़ काटा जा रहा है। भारी बारिश के कारण यह खोखला पहाड़ भरभराकर गिर गया।

हेलंग में हुए भूस्खलन को लेकर जाने-माने पर्यावरणविद् प्रो. रवि चोपड़ा चिन्तित हैं। वे कहते हैं कि चारधाम सड़क परियोजना की पर्यावरणीय आकलन के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने इस तरह की आशंकाओं को महसूस किया था, हालांकि उनके आकलन का तवज्जो नहीं दी गई।

प्रो. चोपड़ा कहते हैं कि इस तरह की बड़ी योजनाओं को बनाने से पहले कई तरह की जांच करने की जरूरत होती है। जिसमें भूगर्भीय जांच भी शामिल है। लेकिन, इस तरह की जांच करने में रुपया और समय काफी ज्यादा खर्च होता है। हमारी सरकारें हमेशा चुनावी मोड में रहती हैं, उन्हें जल्दी से जल्दी काम चाहिए होता है, ताकि उस काम के नाम पर वोट मांगे जा सकें, इसलिए इस तरह की जांच नहीं की जाती है, नतीजा चारधाम सड़क परियोजना जैसा होता है।

सामान्य से बहुत अधिक बारिश

केदारनाथ और बदरीनाथ मार्ग पर हुई भूस्खलन और हिमस्खलन की इन दोनों घटनाओं का प्रमुख कारण बेमौसम बारिश और बर्फबारी को माना जा रहा है। रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों में हुई बारिश के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस बार अप्रैल के आखिरी और मई के शुरुआती दिनों में सामान्य से कई गुना ज्यादा बारिश दर्ज की गई।

चमोली जिले में अप्रैल में सामान्य से 85 प्रतिशत ज्यादा बारिश दर्ज की गई। यहां अप्रैल में सामान्य तौर पर 47 मिमी बारिश होती है, इस बार 87 मिमी बारिश हुई। रुद्रप्रयाग जिले में अप्रैल में सामान्य रूप से 67.1 मिमी बारिश होती है, इस बार सामान्य से 53 प्रतिशत ज्यादा 105.1 मिमी बारिश दर्ज की गई।

मई के शुरुआती तीन दिनों में स्थिति और भी खराब रही। चमोली जिले में मई के पहले 3 दिनों में 26.0 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य से 150 प्रतिशत ज्यादा है। रुद्रप्रयाग जिले में इन तीन दिनों में सामान्य से 149 प्रतिशत ज्यादा 33.6 मिमी बारिश दर्ज की गई। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार 1 मार्च से लेकर 4 मई तक चमोली जिले में सामान्य से 17 प्रतिशत और रुद्रप्रयाग में 24 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई। खास बात यह है कि यह बारिश कुछ दिनों के भीतर हुई।, इस अवधि में ज्यादातर दिनों दोनों जिलों में सूखे की स्थिति बनी रही।