मौसम

बहुमंजिला इमारत की छांव में लू लगने का डर सबसे ज्यादा

हमारे शहर तेजी से गर्मद्वीप बन रहे हैं। वहीं, बहुमंजिला इमारतों के आस-पास ही लू लगने की संभावना सबसे ज्यादा है।

Anil Ashwani Sharma

बहुमंजिला इमारतों वाले शहर गर्म द्वीप यानी हीट आईलैंड में तब्दील हो रही हैं।  इनके आस-पास का इलाका न सिर्फ अत्यधिक गर्म होता है बल्कि इनके आस-पास आपको लू भी लग सकती है। इन स्थानों का तापमान सामान्य से चार से पांच डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया जाता है। वास्तव में पिछले कुछ सालों से ये हीट आईलैंड अब हीटवेब (लू) के एक बडे कारक के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं। हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली की प्रोफेसर मंजु मोहन ने हीट आईलैंड के प्रभाव को विस्तार से रेखांकित किया है। वहीं, इसके दुष्प्रभावों से बचने के उपाय भी सुझाए हैं। शहरी गर्मद्वीप कैसे लू को बढ़ा रहे हैं। इस विषय पर प्रोफेसर मंजू मोहन ने अनिल अश्विनी शर्मा के सवालों का विस्तार से जवाब दिया -    

क्या शहरी क्षेत्र, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में लू की चपेट में जल्दी आ जाते हैं ? यदि ऐसा है तो क्यों?

शहरी क्षेत्रों की संरचना गर्म हवाओं के प्रभाव को तीव्र कर देती है। शहरों में कृत्रिम निर्माण की अधिकता इसके ढांचे को ग्रामीण ढांचे से अलग करती है। यह कृत्रिम निर्माण शहरों को तंग बना रहा है जिसके कारण हरित क्षेत्र कम होते जा रहे हैं तथा वातावरण में नमी की कमी होती जा रही है। परिणामस्वरूप सूरज से हासिल होने वाली ज्यादतर ऊर्जा धरती के द्वारा अवशोषित कर ली जाती है, जिससे शहरों के वातावरण का तापमान रात के समय ग्रामीण क्षेत्रों के तापमान की तुलना में बढ़ जाता है। इसका कारण यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से शहरों की अपेक्षा ज्यादा वाष्पोत्सर्जन (वनस्पतियों के द्वारा जल का अवशोषण व उत्सर्जन) होता है और इस प्रक्रिया से वातावरण ठंडा होता है | इसके अलावा सामान्य मिट्टीवाली भूमि या कृषि क्षेत्र की तुलना में शहरी क्षेत्र में ऊष्मा का अवशोषण अधिक होता है, जिसका कारण है शहरों में प्रयुक्त होनेवाले कृत्रिम निर्माण सामग्रियों के तापीय गुण। इनके द्वारा अवशोषित ऊर्जा रात के समय उत्सर्जित होती है जो शहरी कृत्रिम संरचना में फंसकर रात में शहरों का तापमान बढ़ा देती है। इस कारण किसी ऊष्म लहर या गर्म हवा का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में ज्यादा होता है। ऊष्मा के अवशोषण, भवनों के निर्माण तथा गहरी दीवारों की परतों की वजह से कभी-कभी शहरी क्षेत्र सूर्योदय के समय आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में ठंडे महसूस किए जाते हैं। इस परिघटना को अर्बन कूल आइलैंड (शहरी शांत द्वीप) कहते हैं। हालाँकि यू.सी.आई. प्रभाव की अवधि तथा तीव्रता उस शहरी क्षेत्र की संरचना पर निर्भर करता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पिछले पांच दशकों में धरातलीय तापमान पर किए गए अध्ययन में ये तथ्य सामने आए हैं कि जैसे-जैसे शहरी क्षेत्र अपना आकार बढ़ाता गया है वैसे-वैसे एल.एस.टी. तथा टी2एम की मात्रा में बढ़ोतरी नोट की गई है। यह बढ़ोतरी दोपहर से शुरू होकर रात्रि में अपने अधिकतम स्तर पर पहुँच जाती है | सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक एलएसटी की यह बढ़ोतरी लगभग 4 -5 डिग्री सेल्सियस नोट की गई है | यद्यपि सुबह के समय शहरी शांत द्वीप प्रभाव को देखा गया है  परन्तु इसका परिमाण 1 डिग्री सेल्सियस से भी कम तथा व्याप्तता अधिकतम दो घंटे तक ही पाई गई है। 


भूमि का उपयोग किस प्रकार गर्म हवाओं या ऊष्म लहरों को प्रभावित करता है ? क्या आप ‘गर्मी द्वीप प्रभाव’ की व्याख्या कर सकती हैं ?

जैसा कि पहले बताया गया है , शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के उपयोग में बदलाव से शहरी क्षेत्रों के स्थानीय मौसम में परिवर्तन हो सकता है | मौसम विज्ञान के अनुसार कई वायुमंडलीय प्रक्रियाएँ भूमि की सतह की स्थिति पर निर्भर करती हैं | ये भूमि की सतह के मानकों जैसे – अल्बेडो, नमी की उपलब्धता ,उत्सर्जन ,खुरदरापन और थर्मल जड़त्व के द्वारा निर्धारित की जाती हैं | ये सभी मानदंड भूमि क्षेत्र के उपयोग और सतह के कार्य हैं | तेजी से बढ़ रहे शहरी क्षेत्रों के लिए बढ़ती आबादी और संरचनात्मक ढाँचे के दबाव के कारण भूमि उपयोग और भूमि कवर (एल यू एंड एल सी) में परिवर्तन, शहरी मौसम विज्ञान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं |जैसे –जैसे शहर बढ़ता है , शहर के मानवजनित स्रोतों से उत्सर्जित ऊष्मा भी बढ़ती है जो इसको आस-पास के ग्रामीण/कम विकसित क्षेत्रों की तुलना में निर्णायक रूप से गर्म बनाती है | यह शहरों के स्थानीय मौसम की एक ऐसी स्थिति है जिसे ‘शहरी गर्मी द्वीप प्रभाव’ के रूप में जाना जाता है |गर्मी द्वीप घटनाओं का प्रमुख कारण भूमि की सतह में बदलाव और मानवजनित अपशिष्ट गर्मी में वृद्धि है | जब इमारतों और सड़कों के द्वारा भूमि की हरियाली को प्रतिस्थापित कर दिया जाता है तो सतह  के तापीय गुण , विकिरण की प्रवृत्ति , नमी की उपस्थिति और वायुगतिकीय गुण और वातावरण बदल जाते हैं |ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आस-पास के ग्रामीण इलाकों की तुलना में  शहरों में प्रयुक्त निर्माण सामग्री में विशेष तापीय (गर्मी क्षमता और तापीय चालकता ) और विकिरण(परावर्तन और उत्सर्जन ) गुण होते हैं | ग्रामीण भूमि  की तुलना में शहरों की भूमि में सूर्य की उर्जा को ज्यादा संग्रहित किया जाता है | इसके अलावा भवन निर्माण सामग्रियों के द्वारा सूर्य की जो ऊर्जा अवशोषित की जाती है वह भवनों की ऊँचाई व विशेष  व्यवस्था के कारण रात के समय ठीक से मुक्त नहीं हो पाती है|इसका नतीजा यह होता है कि शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बहुत धीमी गति से ठंडे होते हैं और तुलनात्मक रूप से हवा के तापमान को बढ़ाए रखते हैं | इसके अलावा शहरी केन्द्रों में आस-पास के गैर- शहरी क्षेत्रों की तुलना में उर्जा की माँग अधिक होती है और यह मानवजनित गर्मी ‘गर्मी द्वीप प्रभाव’ को और बढ़ा सकती है |

आपने ‘गर्मी द्वीप प्रभाव’ के मॉडल द्वारा दिल्ली की परिस्थितियों को बेहतर और वास्तविक ढंग से समझने को लेकर एक पर्चा जारी किया है। यह किस प्रकार ऊष्मा लहरों से बचाव में उपयोगी हो सकता है ?
इस अध्ययन में दिल्ली में ‘गर्मी द्वीप प्रभाव’ का मूल्यांकन मेसोस्केल मौसम विज्ञान मॉडल या मौसम अनुसंधान और पूर्वानुमान मॉडल (डब्ल्यूआरएफ वी 3.5)  तथा शहरी सतह के आवरण मॉडल ( अर्बन कैनोपी मॉडल)  को साथ मिलाकर किया गया| गर्मी द्वीप की तीव्रता गर्मी द्वीप प्रभाव को मापने का एक तरीका है | भूमि उपयोग और भूमि आवरण (एलयूएलसी)  को इसकी प्राकृतिक अवस्था तथा उपग्रह अवलोकन के आधार पर एक मॉडल उत्पादक की कसौटी पर आँका गया तथा इनके अंतर्संबंधों को परखा गया | इस मॉडल ने यह दिखाया कि यह मॉडल तार्किक रूप से गर्मी द्वीप प्रभाव की तीव्रता (यूएचआई) का आंकलन कर सकता है तथा यूएचआई की प्रवृत्ति को पुनः प्रस्तुत कर सकता है | मेसोस्केल मॉडल की अनुमान क्षमता बढ़ाने के लिए शहरी सतह एवं  भूमि उपयोग एवं भूमि आवरण का सही ढंग से अध्ययन में समायोजन एक महत्वपूर्ण तरीका है |अध्ययन से इस निष्कर्ष पर पहुँचा गया कि डब्ल्यूआरएफ मॉडल  तथा एलयूएलसी  के सावधानीपूर्ण मूल्यांकन तथा बेहतर इनपुट से दिल्ली शहर के गर्मी द्वीप प्रभाव को सुनिश्चित किया जा सकता है | शहरी आवरण की विशेषताओं को अध्ययन में शामिल करके गर्म हवाओं के प्रभाव का बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है |इसके परिणामस्वरूप हम बढ़ते तापमान से लड़ने तथा इसके प्रभाव को कम करने के लिए बेहतर तरीके अपना सकते हैं | साथ ही इन तरीकों का प्रभाव भी हम इस मॉडलिंग सिस्टम से माप सकते हैं |

ऐसा अनुमान है कि भारत में गर्म हवाओं या उष्म लहरों का प्रभाव भविष्य में और बढ़ जाएगा| आपके विचार से ये अनुमान कितने चिंताजनक हैं? क्या इनसे निबटने के लिए पर्याप्त उपाय किए जा रहे हैं?
संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल के पिछले शोध से यह पता चला है कि गर्म हवाओं या उष्म लहरों को कुछ हिस्सों में कुछ हद तक ग्लोबल वार्मिंग के रूप में ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है जिसका कारण वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की सांद्रता बढ़ना है | रिपोर्ट के अनुसार,पिछले सौ वर्षों में विश्व भर में सभी अत्यधिक तापमान वृद्धि के 75 % और अत्यधिक वर्षा  के लगभग 18% के लिए मानव द्वारा किया गया ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार है ।