मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने 31 जुलाई को जारी अपने पूर्वानुमान में कहा है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून के दूसरे भाग में अगस्त से सितंबर तक देश भर में सामान्य से अधिक बारिश होने की उम्मीद है, जो लंबी अवधि के औसत (एलपीए) के 106 फीसदी से अधिक होगी।
इस अवधि के दौरान भारत के अधिकतर इलाकों में सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना है, सिवाय पूर्वोत्तर और आसपास के पूर्वी क्षेत्रों, मध्य भारत के अलग-अलग हिस्सों और भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों, जहां सामान्य से कम बारिश होने के आसार हैं।
प्रेस वार्ता के दौरान आईएमडी के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्रा ने कहा कि पिछले पांच सालों, 2021 से 2025 तक, पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में बारिश सामान्य से कम रही है। पिछले कुछ दशकों से इस क्षेत्र में बारिश में गिरावट का रुझान देखा जा रहा है।
विभाग के अनुसार, 1971 से 2020 तक के ऐतिहासिक आंकड़ों के अनुसार, अगस्त से सितंबर की अवधि का लंबी अवधि के बारिश का औसत (एलपीए) 422.8 मिमी है।
खासकर अगस्त में देश भर में बारिश की लंबी अवधि का औसत (एलपीए) के 94 से 106 फीसदी की सामान्य सीमा के भीतर रहने की संभावना है। इस अवधि में, मध्य भारत के कई हिस्सों, पश्चिमी प्रायद्वीपीय क्षेत्रों, पूर्वोत्तर भारत और पूर्वी व उत्तर-पश्चिमी भारत के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से कम बारिश होने की आशंका जताई गई है।
अगस्त 2025 में तापमान की बात करें तो, विभाग का कहना है कि पूर्वोत्तर भारत और उत्तर-पश्चिम, पूर्वी और दक्षिणी प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान के सामान्य से अधिक रहने के आसार हैं, जबकि देश के अधिकतर इलाकों में अधिकतम तापमान सामान्य से नीचे रहने का पूर्वानुमान है।
देश के अधिकांश इलाकों में मासिक औसत न्यूनतम तापमान के सामान्य से ऊपर रहने का अनुमान है, हालांकि उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में न्यूनतम तापमान सामान्य से नीचे रह सकता है।
प्रशांत और हिंद महासागर में समुद्री सतह के तापमान (एसएसटी) की स्थिति
मौसम विभाग के मुताबिक, अगस्त और सितंबर के लिए यह पूर्वानुमान भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में व्याप्त तटस्थ अल नीनो-दक्षिणी दोलन स्थितियों की पृष्ठभूमि में जारी है। नवीनतम मानसून मिशन जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली और अन्य जलवायु मॉडल इस ओर इशारा कर रहे हैं कि ये तटस्थ स्थितियां बाकी मानसून अवधि तक जारी रहने की संभावना है। इसी प्रकार वर्तमान तटस्थ हिंद महासागर द्विध्रुवीय स्थितियां मानसून ऋतु के अंत तक कमजोर नकारात्मक स्थितियों में बदलने की उम्मीद जताई गई है।
अल नीनो घटनाएं आमतौर पर मानसूनी हवाओं को कमजोर कर महासागरों से नमी की गतिविधि को धीमा करके बारिश को कम करती हैं। इसके विपरीत, ला नीना की स्थितियां आमतौर पर मानसून प्रसार को संचालित करने वाले दबाव को मजबूत करके मानसून गतिविधि को बढ़ाती हैं।
वर्तमान में प्रचलित तटस्थ ईएनएसओ स्थितियां सामान्य मानसून प्रदर्शन के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती हैं, जिससे क्षेत्रीय मौसम प्रणालियां प्रशांत महासागर के तापमान संबंधी विसंगतियों के बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के बिना संचालित हो पाती हैं।
प्रेस वार्ता के दौरान आईएमडी के महानिदेशक डॉ. महापात्रा ने कहा कि जुलाई मानसून की गतिविधियों के लिए एक अहम महीना साबित हुआ, इस महीने में देश में 4.8 फीसदी से अधिक बारिश दर्ज की गई।
क्षेत्रीय प्रदर्शन में काफी अंतर देखा गया, जहां उत्तर-पश्चिम भारत में 12.2 फीसदी बारिश अधिक हुई और मध्य भारत में 21.9 फीसदी ज्यादा बारिश रेकॉर्ड की गई। हालांकि पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में 26.4 फीसदी की कमी दर्ज की गई, जबकि भारत के दक्षिणी प्रायद्वीप में दो फीसदी की कमी दर्ज की गई, जिसे सामान्य कहा जा सकता है।
महापात्रा ने कहा कि जुलाई में मानसूनी गतिविधि तीव्र रही, जहां 193 मौसम विज्ञान केंद्रों ने 20 सेमी से अधिक यानी भीषण बारिश दर्ज की और 624 केंद्रों ने 11.56 सेमी और 20.45 सेमी के बीच बहुत भारी बारिश दर्ज की। इस महीने में देश भर में नौवां सबसे अधिक रात्रि तापमान भी दर्ज किया गया, जबकि पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत ने 1901 के बाद से अपना चौथा सबसे गर्म जुलाई महसूस किया।