उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए कतारों में लगे लोग। फाइल फाेटो: मनमीत  
मौसम

भीषण गर्मी ने सरकारी अस्पतालों को बनाया “मौत का घर”

भारत में पिछले 15 वर्षों में अपनी सबसे लंबी और घातक गर्मी का सामना कर रहा है, यह गर्मी गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सबसे अधिक प्रभावित कर रही है

Anil Ashwani Sharma

भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा भीषण गर्मी से हुए बीमार लोगों की भारी संख्या के कारण चरमरा गया है। भारत में चल रही भीषण गर्मी में लोगों पर अप्रत्याशित असर भी हो सकता है। यह भीषण गर्मी देश के उन गरीब और हाशिए पर पड़े समुदायों को सबसे अधिक प्रभावित कर रही है, जिनके पास ठंडा करने वाले उपकरणों तक की पहुंच ही नहीं है।

द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार देश के कई अस्पतालों का दौरा करने के बाद यह बात सामने आई है कि गर्मी से बीमारों की संख्या इतनी अधिक हो गई है कि अस्पताल के वार्ड में एक बारगी नजर डाली जाए तो दिखता है कि जितने मरीज बेड पर हैं, उससे कई गुना अधिक फर्श पर पड़े हुए हैं।

यह तो हुई बात इलाज कराने वालों की। यदि अस्पताल परिसर के बाहर देखें तो बड़ी संख्या में ऐसे मरीज नजर आते हैं जो अपनी बारी का इंतजार करते दिखाई पड़ रहे होते हैं। वर्तमान में यह स्थिति देश के अधिकांश सरकारी अस्पतालों की बनी हुई है। अस्पतालों में अपनी बारी के इंतजार में उमस भरी गर्मी के कारण मरीजों के साथ आए स्वस्थ्य लोग भी बीमार हो रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के किसी भी सरकारी अस्पतालों में एक बात सभी को अचंभित करती है कि अधिकांश अस्पताल में चारों ओर देखने पर पता चलता है कि कहीं कोई खिड़की नहीं हैं। इसके अलावा हालनुमा जनरल वार्ड में ऊपरी छत पर एक आदम जमाने का पंखा खड़खड़ा रहा होता है और उससे गर्म हवा मरीजों पर पड़ रही हेाती है।

हालांकि यह देखने में आता है कि डॉक्टर अपने वातानुकूलित ड्यूटी रूम में आराम कर सकते हैं, मरीजों को ऐसी कोई राहत नहीं मिलती है। देश भर के अधिकांश अस्पतालों में ऐसा ही दमघोंटू माहौल है। कई मरीजों का कहना है कि अस्पताल का वेटिंग रूम भीड़भाड़ वाला और बहुत उमस भरा होता है। ऐसे में कई स्वस्थ्य लोग भी ऐसी परिस्थिति में बीमार की हालात में पहुंच जाते हैं।

इस साल भारत पिछले 15 वर्षों में अपनी सबसे लंबी और घातक गर्मी का सामना कर रहा है, जिसमें उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में रिकॉर्ड उच्च तापमान दर्ज किया गया है। यह गर्मी की लहर गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को असमान रूप से प्रभावित करती है, जिनके पास ठंडा करने के उपकरण नहीं है।

वर्तमान गर्मी की लहर ने कई तरह की असमानताओं को उजागर किया है। जैसे कि व्यावसायिक असमानता और लैंगिक असमानता। यह बात करना भी महत्वपूर्ण है कि कैसे समुदाय के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग जो सार्वजनिक क्षेत्र से स्वास्थ्य सेवा चाहते हैं, वे इन अस्पतालों के परिसर में गर्मी से संबंधित बीमारियों के संपर्क में आ जाते हैं।

दक्षिण भारत में तो कई मरीजों की मौत केवल इसलिए हो गई क्यों कि उनको ठंडा रखने के लिए असप्ताल के पास उपकरण नहीं थे। ऐसे मरीजों को ठंडा रखने के लिए उनके साथ आए रिश्तेदार लगातार स्प्रे बोतल से ठंडा पानी छिड़कते हैं। इसके अलावा उनके आसपास बर्फ की टूकडे रख कर पीछे से टेबल पंखा चलाते हैं कि ताकि मरीज को ठंडा रखा जा सके लेकिन ये सभी उपाय फैल हो रहे हैं।  

सरकारी अस्पताल में मरीज भर्ति होते हैं और उनकी बीमारी की पहचान नहीं हो पाने के कारण भी मौत हो जाती है। और इसमें सबसे गंभीर बात यह है कि जिस बीमार की पहचान नहीं कर पाते हैं डॉक्टर, वह बीमारी कोई और नहीं बल्कि गर्मी होती है। डाक्टर मरीजों का इलाज कई स्तर पर करते रहते हैं और तमाम टेस्ट करवाते रहते हैं लेकिन आखिर तक यह पता लगा पाने में असफल रहते हैं कि वह गर्मी के कारण बीमार हुआ है।

सीएमसी वेल्लोर अस्पताल के कंसल्टेंट फिजिशियन आनंद जकारिया के अनुसार जो लोग कुछ बीमारियों के लिए अस्पताल आते हैं, वे गर्मी से संबंधित बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वह कहते हैं कि विशेषकर जब किसी को किसी संक्रमण के कारण बुखार होता है, तो उनके लिए पसीने के माध्यम से अपने शरीर से गर्मी को बाहर निकालना बहुत महत्वपूर्ण होता है। हालांकि, अगर अस्पताल के वार्ड में गर्मी अधिक है, तो वे ऐसा नहीं कर पाएंगे। इससे उन्हें हीट स्ट्रोक होने का बहुत अधिक खतरा रहता है।

डॉ. जकारिया के शोध पत्र के अनुसार वृद्ध व्यक्ति जब अस्पताल में गर्मी से संबंधित बीमारी के इलाज के लिए भर्ती होता है तो उसे दूसरी बीमारी के लगने का खतरा बढ़ जताा है। मुंबई के कूपर अस्पताल में कार्यरत बाल रोग विशेषज्ञ अदिति दंडवते के अनुसार नवजात शिशुओं और अन्य बीमारी से भर्ती बच्चों में भी ऐसी समस्याएं बहुत आम हो सकती हैं।

वह बताती हैं कि गर्मियों में मुंबई में उच्च तापमान को देखते हुए हम हमेशा बच्चों के निर्जलीकरण पर कड़ी नजर गड़ा कर रखते हैं। वह कहती हैं कि हम माताओं को लगातार इस बात की सलाह देते रहते हैं कि वे अपने बच्चों को गर्मी से होने वाली बीमारी से बचने के लिए आवश्यक न्यूनतम कपड़े अवश्य पहनाएं। हम अपने रोगियों में पर्याप्त हाइड्रेशन को प्राथमिकता के रूप में सुनिश्चित करते हैं, उन्हें ओआरएस या नारियल पानी भी देते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि गर्मी बच्चे के स्वास्थ्य को खराब न करे।

ध्यान देने वाली बात यह है कि ये उपचार करने वाले डॉक्टरों के स्तर पर उठाए गए व्यक्तिगत उपाय हैं, लेकिन स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के खराब बुनियादी ढांचे की विफलताओं और बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन की लगातार बढ़ती समस्या से निपटने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। अस्पतालों को हर साल एक रणनीति बनाने की जरूरत है कि वे इस तरह की घटनाओं से कैसे निपटेंगे।

इस साल तिरुनेलवेली मेडिकल कॉलेज, आरएमएल अस्पताल दिल्ली, जीआरएच मदुरै आदि सहित कुछ और अस्पतालों ने हीट स्ट्रोक के रोगियों को भर्ती करने और उनका इलाज करने के लिए वातानुकूलित वार्ड शुरू किए गए हैं, लेकिन देशभर में अस्प्तालों की संख्या को देखते हुए ये उपाय पर्याप्त नहीं है। सीएमसी वेल्लोर ने अपने डॉक्टरों के लिए एक प्रोटोकॉल तैयार किया है जो इस बारे में जानकारी प्रसारित करता है कि अस्पताल में रहने के दौरान हीट स्ट्रोक कैसे विकसित हो सकता है।