देशभर में औसतन 108 फीसदी बारिश हुई, जो सामान्य से अधिक रही, उत्तर-पश्चिम भारत में 127 फीसदी तक बारिश दर्ज की गई।
मानसून का आगमन जल्दी हुआ—केरल में 24 मई को पहुंचा और 29 जून तक पूरे देश को ढक लिया।
महीनेवार बारिश – जून में 109 फीसदी, जुलाई-अगस्त 105 फीसदी और सितंबर में सबसे अधिक 115 फीसदी रही।
सात डिप्रेशन और 69 कम दबाव दिन बने, गुजरात, मध्यप्रदेश, कोकण और गोवा और कर्नाटक में भारी बारिश।
कृषि और जल संसाधनों को फायदा– मानसून कोर जोन में 122 फीसदी बारिश से खरीफ फसलों की पैदावार बेहतर होने की उम्मीद।
भारत में हर साल दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम जून से सितंबर तक होता है। यह खेती, जलस्रोतों और संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम होता है। इस साल का मानसून कई मायनों में खास रहा। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 का मानसून सामान्य से बेहतर रहा और देश के अधिकांश हिस्सों में अच्छी बारिश दर्ज की गई। हालांकि पूर्वोत्तर भारत में बारिश कम होने से क्षेत्रीय असमानता देखने को मिली।
पूरे देश में कितने बरसे बादल?
साल 2025 के जून से सितंबर तक देशभर में औसतन 108 फीसदी बारिश रिकॉर्ड की गई, जो कि दीर्घकालिक औसत (एलपीए) से अधिक है। इसे "सामान्य से अधिक बारिश" की श्रेणी में जगह दी है। पूरे देश में मानसून के दौरान औसतन 937.2 मिमी बारिश हुई। यह 2001 के बाद पांचवां सबसे अधिक और 1901 के बाद 38वां सबसे बड़ा आंकड़ा है। उत्तर-पश्चिम भारत में 127 फीसदी, मध्य भारत में 115 फीसदी और दक्षिण प्रायद्वीप में 110 फीसदी बारिश हुई। वहीं, पूर्वोत्तर भारत में केवल 80 फीसदी ही बरसे बादल, जो 1901 के बाद दूसरा सबसे कम आंकड़ा है।
मानसून का आगमन और वापसी
मानसून 2025 का आगमन सामान्य समय से पहले हुआ। 13 मई को ही अंडमान-निकोबार में मानसून पहुंच गया, जबकि सामान्यत: यह 19 मई को आता है।केरल में मानसून 24 मई 2025 को पहुंचा, जो कि सामान्य तिथि एक जून से आठ दिन पहले था। पूरा देश मानसून से 29 जून तक ढक गया, जबकि सामान्य तिथि आठ जुलाई होती है। मानसून की वापसी भी जल्दी शुरू हुई और 14 सितंबर को पश्चिमी राजस्थान से वापसी दर्ज की गई।
महीनेवार मानसूनी बारिश
महीनेवार बारिश की बात करें तो जून में बारिश109 फीसदी रही। जुलाई और अगस्त में 105 फीसदी रही। जबकि सितंबर में 115 फीसदी तक बरसे बादल।यानी पूरे चारों महीनों में देश ने सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई। विशेषकर सितंबर का महीना ज्यादा बरसात वाला रहा।
क्षेत्रवार बारिश में असमानता
भारत के 36 मौसम उपखंडों में, दो उपखंडों (10 फीसदी क्षेत्रफल) में बहुत अधिक बारिश हुई। 12 उपखंडों (35 फीसदी क्षेत्रफल) में अधिक बारिश दर्ज की गई। 19 उपखंडों (46 फीसदी क्षेत्रफल) में सामान्य बारिश देखने को मिली।
तीन उपखंडों (नौ फीसदी क्षेत्रफल)—अरुणाचल प्रदेश, असम और मेघालय तथा बिहार में बारिश कम रही। इससे साफ है कि देश के अधिकतर इलाकों में बारिश सामान्य से बेहतर रही, लेकिन उत्तर-पूर्वी राज्यों और बिहार में कमी ने चिंता बढ़ाई।
कम दबाव और चक्रवाती गतिविधियां
मानसून 2025 के दौरान सात डिप्रेशन बने, जिनमें से एक गहरे डिप्रेशन में तब्दील हुआ। कुल 69 दिन कम दबाव की गतिविधि सक्रिय रही, जो सामान्य (55 दिन) से अधिक है। इन मौसमी गतिविधियों के कारण पश्चिमी भारत, मध्य भारत और प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में अच्छी बारिश हुई।
बारिश की चरम घटनाएं
मानसून के दौरान कई जगहों पर भारी से बहुत भारी बारिश (115.6 मिमी से अधिक) और भीषण बारिश (204.5 मिमी से अधिक) दर्ज की गई। सबसे ज्यादा असर कोकण और गोवा, कर्नाटक तट, गुजरात, पश्चिमी मध्यप्रदेश, तेलंगाना, बिहार और ओडिशा में देखा गया। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी भयंकर बारिश की वजह से बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएं सामने आई।
कृषि पर मौसमी असर
2025 का मानसून देश के बारिश पर निर्भर खेती वाले इलाकों के लिए बहुत अनुकूल रहा। यहां औसतन 122 फीसदी बारिश दर्ज की गई। इससे खरीफ की फसलों—धान, मक्का, सोयाबीन और कपास को फायदा मिला। पर्याप्त बारिश से जलाशयों का स्तर भी बढ़ा, जिससे रबी फसलों के लिए सिंचाई की स्थिति बेहतर हुई।
मौसम विभाग का केरल में मानसून के आगमन को लेकर सटीक पूर्वानुमान रहा। वहीं, जून से सितंबर के लिए 105 -106 फीसदी एलपीए का अनुमान था और वास्तविक बारिश 108 फीसदी रही। केवल जुलाई में थोड़ी चूक रही, पर बाकी महीनों का अनुमान लगभग सटीक रहा।
साल 2025 का दक्षिण-पश्चिम मानसून कुल मिलाकर "सामान्य से बेहतर" रहा। उत्तर-पश्चिम, मध्य और दक्षिण भारत में अच्छी बारिश ने किसानों और जल संसाधनों को राहत दी। वहीं, पूर्वोत्तर भारत और बिहार जैसे राज्यों में कम वर्षा ने चुनौतियां पैदा कीं।
मानसून की समय से पहले शुरुआत और जल्दी वापसी भी इस साल की खासियत रही। इस बार का अनुभव बताता है कि जलवायु परिवर्तन के दौर में मानसून की असमानता और चरम बारिश की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।