मानसूनी तीव्रता में किसी भी प्रकार का बदलाव बंगाल की खाड़ी में समुद्री उत्पादकता को बुरी तरह से प्रभावित करता है। ध्यान रहे कि बंगाल की खाड़ी में वैश्विक मत्स्य उत्पादन का लगभग 8 प्रतिशत पैदा होता है जबकि विश्व के महासागरीय क्षेत्र में इसका प्रतिशत केवल एक है। पिछले 22,000 वर्षों में भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (आईएसएम) में उतार-चढ़ाव का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा कि मजबूत और कमजोर दोनों ही परिस्थितियों में मानसून बंगाल की खाड़ी में समुद्री उत्पादकता को प्रभावित करते हैं।
ध्यान रहे कि यदि महासागर की उत्पादकता में किसी प्रकार की गिरावट आती है तो यह पारिस्थितिकी तंत्र को बहुत अधिक प्रभावित करेगा। इससे समुद्री उत्पादक प्लवक (यह जलीय जीवन के पोषण का मुख्य स्रोत) प्रभावित हो सकते हैं।
यह अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कई जलवायु मॉडल वार्मिंग के प्रभाव के कारण मानसून में व्यवधानों की चेतावनी देते हैं। और इन सबके परिणाम स्वरूप अंततः मछली का उत्पादन कम होगा। साथ ही इससे तटीय समुदायों के सामने खाद्य सुरक्षा का खतरा पैदा हो जाएगा। अध्ययन में पाया गया कि पूरे इतिहास में असामान्य रूप से मजबूत और कमजोर मानसून दोनों ही ने महासागरीय मिश्रण में बड़े व्यवधान पैदा किए हैं। इससे समुद्री जीवन के लिए भोजन में 50 फीसदी की कमी आई है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अत्यधिक मानसून की स्थिति में गहरे समुद्र से सतह तक पोषक तत्वों से भरपूर पानी की गति में बाधा पड़ती है, जहां प्लवक (ऐसे सभी प्राणी या वनस्पति जो जलधारा द्वारा प्रवाहित होते हैं) पनपते हैं।
यह अध्ययन नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में भारत, चीन, यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक साथ अध्ययन किया है। ऑस्टिन विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता कौस्तुभ थिरुमलाई ने कहा, “रसायन विज्ञान का विश्लेषण करके और उत्पादक जल में पनपने वाले कुछ प्रकारों की प्रचुरता को ट्रैक कर हमने बंगाल की खाड़ी में वर्षा, समुद्र के तापमान और समुद्री जीवन में दीर्घकालिक परिवर्तनों का अध्ययन किया। साथ ही इन रासायनिक संकेतों ने हमें यह समझने में मदद की कि पिछले 22,000 वर्षों में मानसून और महासागर की स्थिति ने वैश्विक जलवायु परिवर्तनों पर कैसी प्रतिक्रियाएं हुई हैं।”
दुनिया के महासागर क्षेत्र के 1 प्रतिशत से भी कम कवर करने के बावजूद बंगाल की खाड़ी वैश्विक मत्स्य उत्पादन का लगभग 8 प्रतिशत उत्पादन करती है। इसके पोषक तत्वों से भरपूर तटीय जल समुद्र किनारे बसी घनी आबादी वाले समुदायों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनमें से कई भोजन और आय के लिए मत्स्य पालन पर बहुत अधिक निर्भर हैं। रटगर्स विश्वविद्यालय के यायर रोसेंथल ने कहा, “बंगाल की खाड़ी के किनारे रहने वाले लाखों लोग प्रोटीन के लिए (विशेष रूप से मत्स्य पालन करके) समुद्र पर निर्भर हैं।”
विगत की समुद्री परिस्थितियों को फिर से तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों ने फोरामिनिफेरा के जीवाश्म खोल का विश्लेषण किया। छोटे एकल-कोशिका वाले समुद्री जीव जो अपने कैल्शियम कार्बोनेट खोल में पर्यावरणीय डेटा रिकॉर्ड करते हैं। इन माइक्रोफॉसिल को वैज्ञानिकों ने समुद्र के तलछटी से निकाला था। शोधकर्ताओं ने पाया कि हेनरिक स्टैडियल 1 (17,500 और 15,500 साल पहले के बीच एक ठंडा चरण) और प्रारंभिक होलोसीन (लगभग 10,500 से 9,500 साल पहले) जैसे समय के दौरान समुद्री उत्पादकता में तेजी से गिरावट आई, जब मानसून या तो असामान्य रूप से कमजोर या मजबूत था।
मानसून की बारिश बंगाल की खाड़ी में नदी के बहाव को सीधे प्रभावित करती है, जिससे समुद्र की लवणता और परिसंचरण में बदलाव होता है। जब सतह पर बहुत अधिक मीठा पानी जमा हो जाता है तो यह पोषक तत्वों के मिश्रण को रोकता है। इसके विपरीत कमजोर मानसून हवा से चलने वाले मिश्रण को कम करता है, जिससे पोषक तत्वों की सतह के पानी में भी कमी आती है। थिरुमलाई ने कहा कि दोनों चरम समुद्री परिस्थितियां उपलब्धता को खतरे में डालती हैं।