फसल पकने के सीजन में तेज गर्मी ने किसानों की सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। सामान्य से बहुत ज्यादा तापमान होने के कारण पश्चिमी राजस्थान में फसल झुलस गई हैं। इससे किसानों की चार महीने की मेहनत बेकार हो रही है।
वहीं, पछैती फसलें (वे फसलें जो नवंबर अंत या दिसंबर के पहले हफ्ते में बोई गईं हैं) भी समय से पहले पकने लगी हैं। इससे सरसों, गेहूं, चने के दाने छोटे और कमजोर हो रहे हैं। साथ ही फसल अपना लाइफ साइकल पूरा नहीं कर पा रहीं। समय पूर्व फसल कटने के कारण उत्पादन में कमी होने की भी आशंका जताई जा रही है।
बाड़मेर जिले की सिड़वा तहसील के पनोरिया गांव के रहने वाले किसान आसुदान की ईसबगोल, जीरा और अरण्डी की पूरी फसल तेज तापमान के कारण झुलस गई। आसुदान को करीब 4 लाख रुपए का नुकसान हुआ है।
वे बताते हैं, “ मैंने 30 बीघा में ईसबगोल और जीरे की फसल की थी। बाड़मेर जिले में अभी तापमान 38-40 डिग्री सेल्सियस है। जबकि इन फसलों को प्राकृतिक रूप से पकने के लिए 30-32 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। इसी तरह मेरी 25 बीघे में बोई अरण्डी की फसल भी झुलस कर बेकार हो गई।”
आसुदान बताते हैं कि क्षेत्र में वे अकेले किसान नहीं हैं जिनका नुकसान हुआ है। पूरी चौहटन विधानसभा क्षेत्र की करीब 200 ग्राम पंचायतों में किसानों की फसलें खराब हुई हैं। क्षेत्र में जीरा, सरसों, ईसबगोल, अरण्डी की फसल रबी सीजन में की जाती है। किसान अब गिरदावरी की मांग कर रहे हैं।
मौसम विभाग, जयपुर के अनुसार बाड़मेर जिले का अधिकतम तापमान फिलहाल 40.5 डिग्री सेल्सियस है। पूरे प्रदेश में तापमान 36-42 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है। हालांकि यह समस्या सिर्फ पश्चिमी राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की है।
मार्च के दूसरे हफ्ते से तापमान में अचानक वृद्धि से फसल चक्र पर विपरीत असर पड़ा है। करौली जिले के मासलपुर निवासी एक किसान धर्मचंद की गेहूं की फसल भी गर्मी के कारण जल्दी पक गई। वे बताते हैं कि क्षेत्र में रबी की फसलें तेज गर्मी के कारण निर्धारित समय से पहले ही पक गई।
समय से करीब 20 दिन पहले ही उन्हें फसल काटनी पड़ी है। गर्मी के कारण इससे गेहूं के दाने छोटे और कमजोर हुए हैं। उत्पादन भी कम होगा और गेहूं की गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा।
चूरू कृषि विज्ञान केन्द्र के कार्यक्रम समन्वयक डॉ. बलबीर सिंह से इस संबंध में डाउन-टू-अर्थ ने बात की। डॉ. सिंह का कहना है कि पछैती फसलों में तेज गर्मी के कारण काफी नुकसान की खबरें आ रही हैं। रबी की फसलें गेहूं, चना, सरसों पर काफी प्रभाव पड़ा है। वहीं, जो फसलें वक्त पर बोई गई थीं, उन्हें अत्यधिक नमी ने नुकसान पहुंचाया है।
वहीं, पाली कृषि विज्ञान केन्द्र के कार्यक्रम समन्वयक डॉ. धीरज सिंह कहते हैं कि फसलों को पकने के लिए 30-32 डिग्री सेल्सियस तापमान चाहिए होता है। मार्च के आखिरी या अप्रेल के पहले हफ्ते में आमतौर पर फसलें कट जाती हैं। इस समय तक तापमान 30-32 डिग्री तक पहुंच जाता है। अभी दाने बनने से दाने के परिपक्व होने के दौरान तापमान में थोड़ी बढ़ोतरी की मांग होती है। लेकिन तापमान अचानक से 38-40 डिग्री तक पहुंच गया है। इससे फसलें जल्दी पक गई।
तापमान बढ़ने से जो दाना धीरे-धीरे परिपक्व होना चाहिए था, वो कुछ ही दिन में पक गया। साथ ही रात में नमी होने से दाने पर भी असर पड़ा। दिन में तेज गर्मी और रात की नमी से दाना पिचका हुआ, छोटा और उसमें पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। अधिक तापमान के कारण 25-35 फीसदी तक उत्पादन कम हो जाता है।
डॉ. सिंह जोड़ते हैं कि तापमान में बढ़ोतरी का असर सिर्फ राजस्थान में ही नहीं है। गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी यह समस्या आई है। बड़े पैमाने पर यह भी कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अब फसल चक्र में बदलाव साफ देखा जा रहा है।
प्रदेश में अचानक बढ़ा तापमान, कई शहरों में 40 के पार
राजस्थान में पिछले एक हफ्ते में तापमान में अचानक वृद्धि देखने को मिली है। मौसम विभाग के अनुसार अधिकतम तापमान 36 से 42 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। बाड़मेर में पिछले चार दिन से अधिकतम तापमान 38-40 डिग्री के बीच है।
अजमेर में सबसे कम 36 डिग्री अधिकतम तापमान दर्ज किया गया है, वहीं सबसे गर्म जवाई बांध, पाली में 41.4 डिग्री सेल्सियस है। इसके बाद बाड़मेर, पिलानी, चित्तौड़गढ़, बीकानेर, धौलपुर और करौली में 40.5 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज हुआ है।
वहीं, मौसम विभाग ने किसानों के लिए एक एडवायजरी भी जारी की है। बाड़मेर जिले की एडवायजरी के अनुसार आने वाले एक हफ्ते में मौसम शुष्क रहेगा। इसीलिए किसानों को फसल और सब्जियों में आवश्यकतानुसार सिंचाई करने का सुझाव दिया है।
वहीं, इस एडवायजरी में बताया गया है कि किसान अपनी फसलों को काटकर सुरक्षित स्थान पर रख लें। वहीं, तापमान में वृद्धि होने के कारण पशुधन के लिए अतिरिक्त व्यवस्था करें।