मौसम

मध्य प्रदेश: सूखे के बाद अतिवृष्टि ने किसानों को रुलाया, खराब होने लगी खड़ी फसलें

मध्य प्रदेश में 28 जून तक सामान्य से 23 प्रतिशत कम बारिश हुई थी, लेकिन इसके बाद हुई भारी बारिश के कारण अब सामान्य से 20 प्रतिशत अधिक बारिश हो चुकी है

Pooja Yadav

मौसम की मार कहें या जलवायु परिवर्तन के संकेत। दोनों ने मध्य प्रदेश के किसानों को चिंता में डाल दिया है। कुछ समय पहले तक जो किसान बारिश के लिए तरस रहे थे, वही किसान अब भारी बारिश के कारण परेशान हैं। बारिश की वजह से खेतों में फसलें आड़ी हो गई है या पीला पड़ गई या उनकी ग्रोथ रुक गई है।

समतल खेत दलदल में तब्दील हो रहे हैं तो पहाड़ी हिस्सों वाले खेतों में मृदा के कटाव के कारण शिशु फसलें ही उखड़ गई है। धान की खेती के लिए बनाए बंड के बंड टूटकर बह गए हैं। मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम, हरदा, धार, छिंदवाड़ा, बैतूल, भोपाल, सीहोर, विदिशा समेत 50 प्रतिशत जिलों में यह हालत बने हुए हैं।

प्रदेश में 28 जून तक सामान्य से 23 प्रतिशत कम बारिश हुई थी, लेकिन उसके बाद ऐसी बारिश हुई कि 20 जुलाई 2022 तक 388.5 मिमी पहुंच गई। जबकि सामान्य बारिश  323.2 मिमी बताई जाती है। यानी कि अब सामान्य से 20 प्रतिशत बारिश अधिक हो चुकी है।

यह पूरे प्रदेश में बारिश का हाल है। कुछ स्थानों पर तो सामान्य से 100 प्रतिशत तक अधिक बारिश दर्ज की जा चुकी है। उदाहरण के तौर पर मध्यप्रदेश के बैतूल जिले की बात करें तो यहां 20 जुलाई तक 359.7 मिमी बारिश होनी थी लेकिन 720 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है जो सामान्य बारिश से 100 प्रतिशत अधिक है। ऐसे जिलों की फसलें बहुत अधिक प्रभावित हो चुकी है।

मौसम के जानकार मानसून के इतने से अंतराल में बारिश की स्थिति में  हुए इस बदलाव को गंभीर मानते है। इसके परिणाम भी सामने हैं।

अब तक मक्के की जिस फसल को तीन से सवा तीन फीट की ऊंचाई तक आ जाना था, वह डेढ़ से दो फीट पर अटकी है।

काली मिट्टी व समतल भौगोलिक स्थिति वाले खेतों में तो मक्का फसल आड़ी हो गई है। वर्तमान में भी किसानों के लिए यही एक फसल थी, जो उम्मीदों का सहारा थी, क्योंकि कम लागत पर ठीक—ठाक पक जाती है और बीते कुछ वर्षों से दाम भी 2200 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल मिल जाते हैं।

अब किसानों को चिंता हो रही है कि यही हाल रहा और बारिश का दौर नहीं थमा तो बोया हुआ बीज भी नहीं पकेगा।

सोयाबीन की फसल भी अधिक बारिश बर्दाश्त नहीं कर पाती है, यह जल्दी पीली पड़ने लगती है, इसके पेड़ों की जड़े गलती है और पत्ता टूटकर गिरने लगे हैं। इसकी शुरूआत हो चुकी है। अभी भी बारिश का दौर बंद हो जाए तो ये फसलें मामूली संभल सकती है लेकिन बारिश थमने के कोई अनुमान नहीं है।

किसानों को राहत के नाम पर कृषि वैज्ञानिकों की सलाह मिल रही है कि खेतों में जलभराव न होने दे। थमे हुए पानी की निकासी की व्यवस्था करें।

मध्य प्रदेश में इस वर्ष 147 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बोवनी का लक्ष्य रखा गया है। जिसमें अभी तक केवल 68 प्रतिशत क्षेत्र में ही बोवनी हो पाई है। बाकी का रकबा खाली है। यह नौबत भी असामान्य मानसून के कारण बनी है। शुरूआत में बारिश नहीं हुई थी, जहां हुई थी तो वह बोवनी (बुआई) के लिए पर्याप्त नहीं थी।

नर्मदापुरम की सिवनी मालवा तहसील के करीब 175 गांवों के 90 प्रतिशत रकबे में सोयाबीन की बोवनी हुई है। इन गांवों में बीते 10 दिनों से लगातार बारिश हो रही है, जिसके कारण सोयाबीन की फसल ग्रोथ नहीं कर पा रही है।

तहसील के चापड़ागृहण गांव के किसान व भारतीय किसान संघ मध्य भारत के प्रांतीय सदस्य सूरजबली जाट बताते हैं कि इस फसल को धूप चाहिए होती है जो कि नहीं मिल रही है। अब तक इसकी ऊंचाई डेढ़ से दो फुट हो जानी चाहिए थी, जो कि अभी सात से आठ इंच ही  हुई है। हल्का पीलापन भी आने लगा है। यदि बारिश नहीं थमी तो पूरी तरह फसल प्रभावित हो जाएगी। अभी प्रभावित होना चालू हुआ है।

बैतूल के देवठान गांव के रहने वाले शिक्षित किसान नितिन यादव बताते हैं कि खेतों में जमीन से पानी निकलने लगा है, जो कि आसपास के ऊंचाई वाले क्षेत्रों का है। इसके कारण डेढ़ एकड़ खेत में लगाई मक्के की फसल आड़ी हो गई है। सोयाबीन फसल नहीं बढ़ पा रही है। अब यदि धूप भी खिल गई तो फसल नहीं पकेगी, रबी बोवनी तक खेत खाली रखना पड़ेगा। वह इसे असामान्य स्थिति बताते हैं।

धार जिले की कुक्षी तहसील के निसरपुर के किसान सुरेश पाटीदार ने 9 एकड़ में कपास लगाई है। दो महीने हो चुके हैं। वह बताते हैं कि कपास के पौधों की ऊंचाई अभी दो फुट ही हुई है जो कि तीन से सवा फीट तक हो जानी चाहिए थी। कपास की फसल के लिए लगातार बारिश बिल्कुल नहीं चाहिए, बीच—बीच में धूप की जरूरत भी पड़ती है जो निकलनी चाहिए, लेकिन 10 दिनों से बारिश ही हो रही है जिसके कारण ग्रोथ रूकी हुई है।

वह कहते हैं कि यदि मौसम अच्छा रहा तो प्रति एकड़ औसतन 10 से 12 क्विंटल उत्पादन हो जाता है लेकिन अभी जैसी स्थिति है उस अनुरूप अच्छा उत्पादन होगा, यह तय नहीं है। वह कहते हैं कि पहले इस तरह असामान्य स्थिति नहीं बनती थी, बारिश भले देरी से शुरू होती थी लेकिन बीच—बीच में धूप भी खिल जाती थी।

जिला कृषि विज्ञान केंद्र, बैतूल के कृषि वैज्ञानिक विजय कुमार श्रीवास्तव मानते हैं कि असामान्य बारिश कई तरह के गंभीर संकेत दे रही है। हम केवल किसान को यही कह सकते हैं कि खेतों में पानी जमा न होने दें और यदि हो रहा है तो उसकी निकासी की व्यवस्था करें। यदि खेतों में खरपतवार है तो उसे साफ करें। फिलहाल यह उपाय फसलों को बचा सकते हैं। यदि किसी तरह के कीट फसल पर प्रभावी है तो वैज्ञानिकों से सलाह लेकर उनकी रोकथाम के प्रयास करें।