कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार गत माह इतिहास का सबसे गर्म सितम्बर था। जारी आंकड़ों के अनुसार इस माह में तापमान सितम्बर 2019 की तुलना में 0.05 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया था। जबकि यदि पिछले तीस वर्षों (1981-2010) में सितम्बर के औसत तापमान से तुलना करें तो इस वर्ष तापमान करीब 0.63 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है।
यूरोप सहित दुनिया के कई देशों में सितम्बर का तापमान औसत से ज्यादा रिकॉर्ड किया गया था। जो स्पष्ट तौर पर जलवायु में आ रहे बदलावों की ओर इशारा करता है। वहीं यदि सितम्बर 2016 से तुलना करें तो इस वर्ष तापमान उससे 0.8 डिग्री सेल्सियस अधिक था। गौरतलब है कि 2016 को इतिहास का सबसे गर्म वर्ष माना जाता है।
इस वर्ष केवल सितम्बर ऐसा महीना नहीं है जब तापमान वैश्विक औसत से अधिक रिकॉर्ड किया गया है। इससे पहले जनवरी और मई 2020 में भी तापमान अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था। यूरोप में भी सितम्बर का तापमान अपनी उच्तम स्तर पर पहुंच गया है। जहां तापमान सितम्बर 2018 की तुलना में 0.2 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है। जबकि रूस में भी पिछले 130 वर्षों में सबसे गर्म सितम्बर रिकॉर्ड किया गया है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा किये विश्लेषण के अनुसार 2019 को मानव इतिहास के दूसरा सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया था। आंकड़ों के अनुसार 2019 के वार्षिक वैश्विक तापमान में औसत (1850 से 1900 के औसत तापमान) से 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। जबकि 2016 का नाम अभी भी रिकॉर्ड में सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज है। आंकड़ें दिखाते हैं कि 2010 से 2019 के बीच पिछले पांच साल रिकॉर्ड के सबसे गर्म वर्ष रहे हैं।
इसके साथ ही साइबेरियाई आर्कटिक में तापमान औसत से बहुत ज्यादा रिकॉर्ड किया गया। वहीं दूसरी और सैटेलाइट रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से यह दूसरा मौका है जब आर्कटिक में समुद्री बर्फ अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। यदि 1981 से 2020 के औसत की तुलना करें तो सितम्बर 2020 में आर्कटिक समुद्री बर्फ 40 फीसदी कम रिकॉर्ड की गई है, जबकि अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ की सीमा औसत से थोड़ा ज्यादा थी।
यह आंकड़े एक बार फिर इस और इशारा कर रहे हैं कि भविष्य में हमें और विकट मौसम का सामना करना पड़ेगा। जब दुनिया भर में हो रही ग्लोबल वार्मिंग हर चीज पर अपना असर डालना शुरू कर देगी। वैसे भी दुनिया भर में कहीं बाढ़ कहीं सूखा और कहीं तूफान के रूप में यह असर दिखने भी लगा है। जिसने इंसानों से लेकर जीव-जंतुओं और पेड़ पौधों पर भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है।
बढ़ते तापमान के चलते बाढ़, सूखा, तूफान जैसी चरम घटनाओं का होना आम होता जा रहा है, साथ ही इनकी तीव्रता में भी वृद्धि हो रही है। उदाहरण के लिए, भारत में वर्ष 2017 की सर्दियों में जब औसत तापमान 1901-1930 बेसलाइन से 2.95 डिग्री सेल्सियस अधिक था, उसी समय (2016-17) दक्षिणी भारत में सदी का सबसे भयंकर सूखा पड़ा था, जिसने 33 करोड़ से भी अधिक लोगों को प्रभावित किया था । अभी भी वक्त है यदि हम नहीं चेते और हमने इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये तो भविष्य में हमें इसके गंभीर परिणाम झेलने होंगे।