मौसम

ऐसे होता है हीटवेव से होने वाली मौतों के आंकड़ों का खेल

Anil Ashwani Sharma

छत्तीसगढ़ के रायपुर में इन दिनों (मई, 2019) पारा 42 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया है। रायगढ़ में पारा 40 पार कर गया। बिलासपुर में अभी 42 तो रायगढ़ में भी 43 डिग्री सेल्सियस पार कर चुका है। पेंड्रा, मैनपाट, जिसे छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है, वहां भी इस बार पारा 40 के पार चल रहा है। रायपुर में पारा 42 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होने पर आमजन प्रभावित हो रहे हैं। 

रायपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित महासमुंद के बागबहरा में बीते साल 16 अप्रैल, 2018 को एक दिव्यांग की लू (हीटवेव) से मौत की खबर आई थी, लेकिन अस्पताल ने उसकी पुष्टि नहीं की। इस संबंध में दिनभर सेल्स का काम करने वाले नित्यव्रत राय ने बताया कि लू से मरने वालों के आंकड़े कम होने का यही एक बड़ा कारण है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस प्रदेश में मौतें हुई हैं, लेकिन सरकारी आंकड़ों में इन्हें तलाशेंगे तो ये आपको नहीं के बराबर ही मिलेंगे क्योंकि कोई व्यक्ति लू  से मरा है, यह साबित करना आसान नहीं है। डॉक्टर ऐसे मामलों में मरीज की मौत या तो निर्जलीकरण या फिर बुखार या अन्य बीमारी लिख देते हैं। गोल्डन ग्रीन पुरस्कार विजेता पर्यावरणविद् रमेश अग्रवाल कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में गर्मी बढ़ने का मुख्य कारण यहां खनन के नाम पर जंगलों की अंधाधुंध कटाई और पानी का अपर्याप्त संरक्षण है।

हरदोई (उत्तर प्रदेश) के लालपुर गांव में चिलचिलाती धूप में (41 डिग्री सेल्सियस लगभग) 48 साल के रामेश्वर सहित एक दर्जन से अधिक मजदूर गेहूं की फसल को खलिहान में मींज रहे हैं। इतनी धूप में काम कर हो? रामेश्वर कहते हैं कि क्या करें, हम तो मजदूर ठहरे। हमारे लिए खुला आसमान ही छत होता है। ध्यान रहे कि एनडीएमए ने राज्यों को जारी दिशा-निर्देश में कहा है कि खेतिहर मजदूरों से सुबह-शाम काम लिया जाए। लेकिन रामेश्वर कहते हैं कि जब तक इन गेहूं पूरी तरह से मींज नहीं जाता तब तक तो हमें काम करना ही होगा।  इसके अलावा चित्रकूट के पर्यावरण कार्यकर्ता अभिमन्यु भाई बताते हैं कि भीषण गर्मी में फसल काटते समय बड़ी संख्या में मजदूर लू  के शिकार भी हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि दो साल पहले( 2017) में बुंदेलखंड के बांदा और महोबा में पारा 47 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा था। इस दौरान दस लोगों की मौत लू  की चपेट में आने से हो गई थी। इसके बाद भी यहां एनडीएमए के लू  संबंधी कोई दिशा-निर्देश अब तक राज्य में लागू नहीं हुए हैं।  

लू के सबसे बड़े प्रभावित राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पिछले तीन सालों में सरकारी आंकड़ों में मौतों की संख्या में कमी दिखाई गई है। 2015 में 1427, 2016 में 723 और 2017 में 74 लोगों की मौत हुई। इसके अलावा राज्य में लू के मामलों में भी कमी दर्ज हुई है। यह कमी 2016 के मुकाबले लगभग 82 फीसदी कम है। वहीं यह ध्यान देने वाली बात है कि आंध्र प्रदेश मौसम विज्ञान विभाग का कहना है कि पिछले पांच सालों से लगभग हर साल गर्म हवाओं का असर झेलना पड़ा है और ऊपर से इसकी अवधि लगातार बढ़ रही है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि फिर लू  से होने वाली मौतें कम कैसे हो गई हैं।

आंध्र और तेलंगाना पर नजर रखने वाले पर्यावरणविद प्रशांत कुमार कहते हैं कि लू को प्राकृतिक आपदा नहीं माना जा सकता। यह विभिन्न चरणों में आती है और इसका आना एक प्राकृतिक घटना है।  लू  की संख्या, मामले और इससे होने वाली मौतों की संख्या से भारत में इसे अब एक बड़ी आपदा के रूप में देखा जा रहा है। देश के 24 राज्यों में पिछले साढ़े तीन दशक में लू की घटनाओं की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए 1970 में 24 राज्यों में 44 मर्तबा लू ने दस्तक दी। जबकि2016 में यह बढ़कर 661 हो गई।

यदि लू  की संख्या को देखें तो देश के 10 ऐसे राज्य हैं, जहां सबसे अधिक लू  आई है। लू  की संख्या के मामले में पहले नंबर पर महाराष्ट्र है, जहां पिछले37 सालों में यह संख्या 3 से बढ़कर 87 हो गई है। इस संबंध में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर में सेंटर फॉर एनवायरमेंट साइंस एंड इंजीनियरिंग के प्रोफेसर साची त्रिपाठी ने कहा, “जलवायु परिवर्तन क्या है? वास्तव में यह एक एनर्जी बैलेंस था, वह बैलेंस अब धीरे-धीरे हट रहा है। पहले पृथ्वी में जितनी ऊर्जा आती थी उतनी ही वापस जाती थी। इसके कारण हमारा वैश्विक तापमान संतुलित रहता था। लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद जैसे-जैसे कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में बढ़ा,इसके कारण एनर्जी बैलेंस दूसरी दिशा में चला गया और इसके कारण हमारे वातावरण में एनर्जी बढ़ गई। इसका नतीजा था वैश्विक तापमान में वृद्धि।

लू  के मामले ( लू  से होने वाली बीमारी) तेजी से बढ़े हैं। देश के पांच ऐसे राज्य हैं, जहां इन मामलों में तेजी से इजाफा हो रहा है। पहले नंबर पर तेलंगाना,जहां 2015 में 266 तो 2017 में बढ़कर 20,635 लू  के मामले दर्ज किए गए। जबकि मध्य प्रदेश में 2015 में केवल 826 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं 2016 में ये बढ़कर 2,584 हो गए। इसी प्रकार से झारखंड और छत्तीसगढ़ में भी क्रमश: 40 व 10 फीसदी लू  के मामले बढ़े हैं। तमिलनाडु में जहां 2015 में एक भी लू  का मामला सामने नहीं आया था, वहीं 2016-17 में क्रमश: 117 व 110 मामले दर्ज किए गए। इस संबंध में तमिलनाडु मौसम विज्ञान विभाग ने बताया कि पिछले एक दशक से अब इस राज्य में भी लू  की स्थित पैदा होने लगी है।

लू  से भारत में होने वाली मौतों के आंकड़े बहुत भयावह हैं। पिछले 26 सालों का रिकॉर्ड देखें तो लू  से होने वाली मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। 1992में लू  से देशभर में 612 मौतें दर्ज की गईं। जबकि 2015 में यह बढ़कर 2,422 हो गई। हालांकि इसके बाद सरकार द्वारा लू  एक्शन प्लान लागू करने के बावजूद2016 में 1,111 और 2017 में 222 मौतें दर्ज हुईं। लू  से हुई मौतों की संख्या जहां 1992 में केवल 612 थी, वहीं 1995 में बढ़कर 1,677 और 1998 में बढ़कर3,058 जा पहुंची। 2000 से लेकर 2005 तक भी मौतों का प्रतिशत लगातार बढ़ा। 2006 में जहां 754 लू  से मौतें हुईं, वहीं 2015 में इसका प्रतिशत बढ़कर 3 गुना अधिक हो गया।