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भारत, बांग्लादेश सहित दक्षिण एशिया में 30 गुणा ज्यादा उमस भरी लू का खतरा, कौन है जिम्मेवार?

बढ़ते तापमान की प्रवृत्ति भारत और बांग्लादेश में थाईलैंड, लाओस और यूरोप की तुलना में कम पाई गई है

Akshit Sangomla, Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन के बिना अप्रैल 2023 के मध्य में थाईलैंड और लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक में उमस भरी लू का होना लगभग असंभव है। वहीं इसी दौरान जलवायु में आते बदलावों के चलते भारत और बांग्लादेश में इस उमस भरी लू की आशंका 30 गुणा अधिक थी। यह जानकारी 17 मई, 2023 को वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) द्वारा जारी नए अध्ययन में सामने आई है।

गौरतलब है कि भारत में, कई उत्तरी, मध्य और पूर्वी शहरों में 18 अप्रैल 2023 को अधिकतम तापमान 44 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया था। इसी तरह बांग्लादेश की राजधानी ढाका में 15 अप्रैल को पारा 40.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया जो दशकों में पहली बार देखा गया है।

इसी तरह थाईलैंड ने 15 अप्रैल को टाक शहर में अपना अब तक का सर्वाधिक तापमान 45.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया था। लाओस के सैंयाबुली प्रांत में भी 19 अप्रैल को तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया जो 42.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

इसी तरह लाओस की राजधानी वियनतियाने में 15 अप्रैल 2023 को तापमान 41.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो राजधानी में अब तक का सबसे गर्म दिन है। उसी दिन, लाओ पीडीआर के लुआन प्रबांग में पारा  42.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।

कुल मिलकर देखें तो अप्रैल के दूसरे से चौथे सप्ताह के बीच थाईलैंड और लाओ पीडीआर में तापमान के कई रिकॉर्ड बने-टूट वहीं उत्तर, मध्य और पूर्वी भारत के साथ बांग्लादेश में भी अत्यधिक उच्च तापमान और नमी देखी गई।

शोधकर्ताओं ने प्रेस को बताया कि इस दौरान भारत में लू के चलते कई लोगों की मौत तक हो गई थी। हालांकि इस घटना का लम्बे समय तक क्या प्रभाव पड़ेगा वो अगले कुछ महीनों में ही स्पष्ट हो पाएगा।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डब्ल्यूडब्ल्यूए जलवायु वैज्ञानिकों का एक अंतराष्ट्रीय संगठन है, जो मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन और उसके परिणामों का अध्ययन करता है। इसमें लू, सूखा, शीतलहर, भारी बारिश, बाढ़ और तूफान जैसी चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता एक अध्ययन शामिल है।

गौरतलब है कि उमस भरी लू का विश्लेषण हीट इंडेक्स की मदद से किया जाता है जो बढ़े हुए तापमान और सापेक्ष आर्द्रता के स्तर का संयोजन है। यह मानव शरीर पर लू के प्रभावों की बेहतर समझ प्रदान करता है।

बढ़ते तापमान के साथ और बिगड़ रहे हैं हालात

अपने इस अध्ययन में डब्ल्यूडब्ल्यूए से जुड़े वैज्ञानिकों ने अमेरिका के नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के हीट इंडेक्स का उपयोग किया है। लेकिन इसे एशियाई देशों के संदर्भ में उपयोग करने के लिए संशोधित किया गया है। इस अध्ययन के दौरान भारत के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों, बांग्लादेश के साथ थाईलैंड और लाओ पीडीआर के अधिकांश हिस्सों के लिए 17 से 21 अप्रैल के बीच हीट इंडेक्स का अवलोकन किया था।

वैज्ञानिकों ने पाया कि हीट इंडेक्स के पहले की तुलना में 2.3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होने से थाईलैंड और लाओ पीडीआर पर एक असाधारण लू का साया मंडरा रहा है, जिसके 200 वर्षों में केवल एक बार चलने की संभावना है।

इसी तरह भारत और बांग्लादेश पर भी लू का खतरा मंडरा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार बढ़ते तापमान के चलते दोनों देशों में हीट इंडेक्स सामान्य से दो डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म है। इससे भारत और बांग्लादेश में लू की आशंका 20 फीसदी बढ़ गई है। मतलब की हर पांचवें वर्ष उनके होने का खतरा है।

जो नतीजे सामने आए हैं उनसे पता चला है कि इन सभी देशों में इस अवधि के दौरान इंडेक्स सामान्य तौर पर 41 से अधिक दर्ज किया गया जो 'खतरनाक' श्रेणी को दर्शाता है। वहीं कुछ क्षेत्रों में यह इंडेक्स बेहद खतरनाक श्रेणी में भी पहुंच गया था।

रिपोर्ट के अनुसार यदि उत्सर्जन में कमी न की गई तो भविष्य में बढ़ते तापमान के साथ सभी चार देशों में ऐसी घटनाओं की आशंका समय के साथ और बढ़ जाएंगी। हालांकि जो रुझान सामने आए हैं वो भारत, बांग्लादेश की तुलना में थाईलैंड और लाओस में कहीं ज्यादा मजबूत हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक हाल में जिस तरह की लू की घटनाएं सामने आई हैं उनके घटने की आशंका वैश्विक तापमान में 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि (औद्योगिक काल से पहले की तुलना में दो डिग्री सेल्सियस) के साथ दस गुणा बढ़ जाएगी।

उनके मुताबिक  भारत और बांग्लादेश में जिस तरह से अप्रैल में घटनाएं दर्ज की गई हैं उनकी सम्भावना तापमान में आज की तुलना में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ करीब तीन गुणा बढ़ जाएगी। ऐसे में इस तरह की उमस भरी लू की घटनाएं हर साल-दूसरे साल में घट सकती हैं।

इस बारे में डब्ल्यूडब्ल्यूए और इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रांथम इंस्टीट्यूट से जुड़े वैज्ञानिक फ्रेडरिक ओटो के अनुसार बढ़ते तापमान के साथ लू की बढ़ती प्रवृत्ति थाईलैंड और लाओस की तुलना में भारत और बांग्लादेश में कम है। वास्तव में यह यूरोप जैसे क्षेत्रों की तुलना में भी कम है।

हालांकि उनका कहना है कि हम इस प्रवृत्ति को पूरी तरह से नहीं समझ पाए हैं, शायद संभवतः यह भारत और बांग्लादेश में एयरोसोल उत्सर्जन के कारण पैदा हुए ठंडे के प्रभाव के कारण हैं जो उसकी भरपाई कर रहे हैं। उनके मुताबिक साथ ही कुछ अन्य वायुमंडलीय परिसंचरण भी इसमें भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन फिर भी यह जानना या भविष्यवाणी करना मुश्किल है, क्योंकि तापमान पर एयरोसोल उत्सर्जन के प्रभाव को पूरी तरह स्पष्ट करना अभी मॉडल के लिए भी मुश्किल है।

डब्ल्यूडब्ल्यूए के शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि इस उमस भरी गर्मी से समाज के अलग-अलग वर्ग इससे अलग-अलग तरह से प्रभावित होते हैं। यह गर्मी और नमी के लिए लोगों की सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक सहनशीलता पर निर्भर करता है।

ऐसे में जो लोग पहले ही स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं उनके लिए यह कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकती है। इसी तरह बुजुर्गों, विकलांगों और ऐसे लोगों जिन्हें अपने काम-धंधों के लिए लू या भीषण गर्मी के समय बाहर खुले में काम करने के लिए निकलना पड़ता है वो विशेष रूप से इसके खतरे की जद में हैं।

हीट एक्शन प्लान पर ध्यान देने की है जरूरत

इसके अलावा, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, धर्म, जाति, लिंग, प्रवासन और आवास के आधार पर सामाजिक विभाजन भी ऐसी भीषण उमस भरी गर्मी की घटनाओं के प्रति लोगों के लिए जोखिम को बढ़ाने में भूमिका निभाता है।

वैज्ञानिकों की सलाह है कि ऐसी उमस भरी गर्मी से लोगों को बचाने के लिए हीट एक्शन प्लान (एचएपी) की मदद से व्यापक अनुकूलन और विकास सम्बन्धी उपाय किए जाने चाहिए। इस तरह के उपायों की विशेष रूप से थाईलैंड और लाओस में कमी है, जबकि भारत और बांग्लादेश में भी उनमें सुधार की आवश्यकता है। दिल्ली स्थित संस्थान सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने भारत में ऐसे 37 हीट एक्शन प्लान का विश्लेषण किया है, जिसमें पता चला है कि यह प्लान कसौटी पर खरे नहीं हैं।

इस बारे में डब्ल्यूडब्ल्यूए से जुड़े इमैनुएल राजू का कहना है कि “यह एक और आपदा है जिसके संकट को सीमित करने के साथ अनुकूलन के बारे में गहराई से सोचने की आवश्यकता है।“ इमैनुएल राजू कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में कोपेनहेगन सेंटर फॉर डिजास्टर रिसर्च के निदेशक भी हैं।

उनके मुताबिक “जैसा कि अक्सर होता है, हाशिए पर रहने वाले सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इनमें से कई अभी भी महामारी और पिछली बार आई लू की घटनाओं और चक्रवातों से उबर रहे हैं। यह उन्हें एक दुष्चक्र में फंसा रहा है। ऐसे में इसके जो नुकसान प्रत्यक्ष और अदृश्य हैं उनसे बचने के लिए शमन और अनुकूलन रणनीतियों को लागू करना सबसे ज्यादा जरूरी है।"

ऐसे में राजू ने अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ताओं के साथ सलाह दी है कि इन सभी देशों में उमस भरी गर्मी की चपेट में हैं, उनमें हीट एक्शन प्लान को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए।