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भारत में बढ़ती गर्मी के कहर के लिए कितने तैयार हैं हम, सीएसई विश्लेषण

सीएसई के विश्लेषण में पाया गया है कि प्री-मानसून तापमान के हिसाब से 2016 का वर्ष भारत के इतिहास का दूसरा सबसे गर्म साल था लेकिन यह उपलब्धि अब वर्ष 2022 के नाम है

Anil Ashwani Sharma

भले ही मॉनसून ने देश भर में अपनी दस्तक दे दी है लेकिन देश के कई हिस्सों में भीषण गर्मी से कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है। साथ ही साथ उमस की मात्रा भी तेजी से बढ़ी है।

हालिया समय में इस हीट वेव (लू) ने पूरे देश को अपने चंगुल में ले लिया है और यह उन विषम तापमान प्रवृत्तियों का लक्षण है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के साथ मिलकर और भी विकट रूप में हमारे सामने आने वाली हैं। 

अगर 2010 को छोड़ दें तो 2016 के बाद 2020 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और हैदराबाद जैसे बड़े शहर अपने आसपास के इलाकों की तुलना में बहुत अधिक गर्म हैं।

गर्मी के सतही अवशोषण और यातायात, उद्योग एवं  एयर कंडीशनिंग (ये केवल कुछ उदहारण हैं) इत्यादि के द्वारा उत्पन्न गर्मी के कारण इन शहरों में हीट आइलैंड प्रभाव देखा जाता है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा किए गए एक नए देशव्यापी विश्लेषण से संकेत मिलता है कि उत्तर-पश्चिम के राज्यों की एक्सट्रीम हीट वेव (भारतीय मौसमविज्ञान विभाग अथवा आईएमडी के वर्गीकरण के अनुसार) की खबरें ही मुख्य रूप से चर्चा का विषय बनती हैं जबकि देश के अन्य क्षेत्रों में औसत तापमान में हुए विषम परिवर्तनों को बड़े पैमाने पर उपेक्षित किया गया है।

सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रायचौधरी का कहना है कि यह एक बहुत ही परेशान करने वाली प्रवृत्ति है, क्योंकि भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी को काबू करने के लिए नीतिगत तैयारी लगभग अनुपस्थित है। हीट एक्शन प्लान के बिना, हवा का बढ़ता तापमान, जमीन की सतह से निकलने वाली गर्मी, कंक्रीटिंग, हीट-ट्रैपिंग के लिए  निर्मित संरचनाएं, औद्योगिक प्रक्रियाओं और एयर कंडीशनर से निकली गर्मी इस समस्या के कई रूप हैं। गर्मी से सुरक्षा प्रदान करने वाले जंगलों, शहरी हरियाली और जलाशयों के क्षरण से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। इसके लिए तत्काल समयबद्ध हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

वहीं सीएसई के सीनियर प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी कहते हैं किऔसत तापमान विसंगति, एक्सट्रीम हीट की स्थिति और भारत के विभिन्न क्षेत्रों में गर्मी के पैटर्न में आई मिश्रित प्रवृत्तियों को समझना इस जोखिम का आकलन करने के लिए आवश्यक हो गया है। वर्तमान में हमारा ध्यान मुख्य रूप से गर्मी के अधिकतम दैनिक स्तर और हीट वेव की चरम स्थितियों पर रहता है। लेकिन समस्या की गंभीरता को समझने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ते तापमान और आर्द्रता की प्रवृत्ति पर ध्यान देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

सीएसई की अर्बन लैब ने जनवरी 2015 से मई 2022 तक भारत में तापमान के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण में तापमान विसंगति का अध्ययन किया है।

इसके निष्कर्ष हैं कि 2022 के लिए औसत हवा का तापमान प्री-मॉनसून या गर्मी (आईएमडी वर्गीकरण के अनुसार मार्च, अप्रैल और मई) 1971-2000 क्लाईमेटॉलॉजी पर आधारित बेसलाइन ट्रेंड्स की तुलना में 1.24 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है।

यह 2016 के प्री-मॉनसून में दर्ज 1.20 डिग्री सेल्सियस की विसंगति से अधिक लेकिन 2010 के प्री-मॉनसून सीजन में दर्ज 1.45 डिग्री सेल्सियस की  विसंगति से कम है।

इसके अलावा, इस प्री-मॉनसून सीजन  में भूमि की सतह के तापमान की विसंगति चरम पर रही है ( बेसलाइन (1971-2000) से 1.46 डिग्री सेल्सियस का अंतर)। यहां इस बात पर  ध्यान दिया जाना चाहिए कि भूमि और हवा के तापमान दोनों में प्री-मॉनसून मौसमी रुझान वार्षिक रुझानों के समान हैं, लेकिन अधिकतम एवं न्यूनतम तापमानों में तीखा परिवर्तन आया है। 

मॉनसून, प्री-मॉनसून अवधि की तुलना में औसतन अधिक गर्म है, जबकि सर्दी और पोस्ट-मॉनसून मौसम के तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है। प्री-मॉनसून या गर्मियों की अवधि के लिए दशकीय औसत तापमान अब दीर्घावधि सामान्य (1951-80 बेसलाइन) की तुलना में 0.49 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है।

यह एक उल्लेखनीय वृद्धि है, लेकिन यह अन्य तीन मौसमों के लिए दशकीय औसत तापमान के बीच दर्ज की गई वृद्धि के सामने फीकी पड़ जाती है। पोस्ट - मॉनसून  अवधि (आईएमडी वर्गीकरण के अनुसार अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर)  का औसत  तापमान 0.73 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है। इसी तरह, सर्दियों (आईएमडी वर्गीकरण के अनुसार जनवरी और फरवरी) में 0.68 डिग्री सेल्सियस और मॉनसून में  0.58 डिग्री सेल्सियस की तापमान वृद्धि हुई है।

इस वर्ष भारत के उत्तर-पश्चिम के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में (चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड-आईएमडी वर्गीकरण के अनुसार) मार्च और अप्रैल का औसत दैनिक अधिकतम तापमान सामान्य से लगभग 4 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है (1981-2010 के बेसलाइन  की तुलना में)। यह अखिल भारतीय स्तर पर देखी गई विसंगति का लगभग दोगुना है और यह औसत दैनिक न्यूनतम, दैनिक औसत और भूमि की सतह के तापमान में भी परिलक्षित होता है। मई के महीने में तापमान सामान्य के अपेक्षाकृत निकट पाया  गया।

इसके अलावा उत्तर-पश्चिमी भागों के अलावा देश के अन्य हिस्से पहले की तुलना में  गर्म थे, चाहे भले ही एक्सट्रीम हीट वेव के दिनों की संख्या कम रही हो। मार्च के महीने में उत्तर पश्चिमी राज्यों का औसत दैनिक अधिकतम  तापमान 30.7 डिग्री सेल्सियस था। प्री-मॉनसून या गर्मी के मौसम के दौरान मध्य भारत (छत्तीसगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, गोवा, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा) और दक्षिणी प्रायद्वीपीय क्षेत्र (अंडमान और निकोबार, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, लक्षद्वीप, पुडुचेरी) , तमिलनाडु और तेलंगाना ) में  उत्तर-पश्चिम की तुलना में सामान्य तापमान अधिक था। मध्य भारत का सामान्य अधिकतम तापमान 2-7 डिग्री सेल्सियस अधिक था, जबकि दक्षिण प्रायद्वीपीय भारत का सामान्य न्यूनतम तापमान उत्तर पश्चिम भारत के तापमान से 4-10 डिग्री सेल्सियस अधिक था।