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जानिए, मानसून पर किस तरह असर डालता है जलवायु परिवर्तन

Dayanidhi

पिछले अंक में हमने मानसून का पूर्वानुमान किस तरह लगाया जाता है इस बारे में जानकारी ली थी। जलवायु परिवर्तन हमारे जीवन में काफी चीजों को प्रभावित कर रहा है, यह मानूसन में किस तरह का बदलाव कर रहा है आइए जानते हैं- 

क्या जलवायु परिवर्तन का मानसून पर कोई प्रभाव पड़ता है?
जलवायु परिवर्तन का मानसून पर कई तरह से प्रभाव पड़ता है। कई अध्ययनों ने अत्यधिक वर्षा होने की घटनाओं, इनके बार-बार होने और बढ़ती प्रवृत्ति के बारे में बताया है। मध्य भारतीय इलाकों में मानसून के मौसम के दौरान कम वर्षा होना जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक बदलाव के लिए जिम्मेदार है।  

देश के विभिन्न भागों में मानसूनी वर्षा पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
हाल के अध्ययनों के आधार पर यह देखा गया है कि भारत में ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा (जून से सितंबर) में पिछले पचास वर्षों से लगभग 6 फीसदी की गिरावट आई है, जिसमें भारत में गंगा के मैदानी इलाकों और पश्चिमी घाटों में बहुत ज्यादा कमी आई है। यह भी देखा गया है कि हाल की अवधि में गर्मी के मानसून के मौसम में अधिक बार शुष्क और अधिक तीव्र नमी के दौर का बदलाव आया है। मध्य भारत में, हाल के दशकों के दौरान प्रति दिन 150 मिमी से अधिक वर्षा हुई तथा इसकी तीव्रता, हर रोज होने वाली बारिश की चरम आवृत्ति में लगभग 75 फीसदी की वृद्धि हुई है।

जलवायु परिवर्तन भारी वर्षा गतिविधि को कैसे प्रभावित करता है?
मानवजनित ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। थर्मोडायनामिक रूप से, शुष्क हवा की तुलना में गर्म हवा में अधिक नमी होती है। क्लॉसियस-क्लैपेरॉन समीकरण के अनुसार, हर डिग्री में बढ़ते तापमान के लिए हवा की नमी धारण करने की क्षमता 7 फीसदी बढ़ जाती है। अध्ययनों से पता चलता है कि, बदलती जलवायु में, गर्मी के कारण नमी की अधिकता के चलते भारी वर्षा की घटनाओं में वृद्धि होने की आशंका है।  

मानसून पर पड़ने वाले दबाव प्रणालियों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
कई अध्ययनों ने हाल के दशकों में भारत के पूर्वी तट पर मानसून के दबाव की आवृत्ति में महत्वपूर्ण कमी देखी गई है। कुछ अध्ययनों ने मानसून के कम होने की आवृत्ति और अवधि में महत्वपूर्ण वृद्धि को भी देखा है, जबकि कम होने की संख्या में कमी देखी गई है।

एमएमसीएफएस क्या है?
एमएमसीएफएस का मतलब मानसून मिशन कपल्ड फोरकास्टिंग सिस्टम या मानसून से जुड़ी हुई पूर्वानुमान प्रणाली है। यह मानसून मिशन परियोजना के तहत विकसित किया गया एक मॉडल है। सीएफएस के मूल मॉडल का ढांचा राष्ट्रीय पर्यावरण पूर्वानुमान केंद्र (एनसीईपी), अमेरिका द्वारा विकसित किया गया था। भारत और विदेशों के विभिन्न जलवायु शोध केंद्रों के सहयोग से भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे द्वारा मिशन मोड तथा अनुसंधान कार्य के माध्यम से विभिन्न स्थानीय और अस्थायी आधार पर भारतीय मानसून क्षेत्र का बेहतर पूर्वानुमान लगाने के लिए इस मॉडल में बदलाव किए थे।

इस मॉडल का नवीनतम उच्च-रिज़ॉल्यूशन शोध संस्करण भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे में है, यह कंप्यूटर (एचपीसी) से लागू किया जाता है। आईएमडी सांख्यिकीय मॉडल के साथ वर्षा और तापमान के बारे में पूर्वानुमान तैयार करने के लिए मानसून मिशन जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली (एमएमसीएफएस) मॉडल का उपयोग करता है।


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