मौसम

चौमास कथा: मानसून की मशीनी भविष्यवाणी कितनी सही?

20वीं, सदी में मौसम की गणना करके भविष्यवाणी कल्पना से परे था

दुनियाभर में हर एक क्षण लाखों-करोड़ों लोग अपने फोन या मोबइल एप्लीकेशन या वेबसाइट पर मौसम की भविष्यवाणियों के बारे में जानकारी लेते रहते हैं। इसकी वजह यह है कि वर्तमान समय में मौसम न सिर्फ अप्रत्याशित होता जा रहा है, बल्कि मौसम की धड़कन से ही देश के अर्थव्यवस्था के तमाम दैनिक कामकाज जुड़े हुए हैं। मिसाल के तौर पर परिवहन क्षेत्र हो या उड्डयन सेवाओं का क्षेत्र यहां पर मौसम की भविष्यवाणी का बहुत अधिक महत्व है। इसी तरह स्वास्थ्य का क्षेत्र हो या निर्माण क्षेत्र, इनमें भी मौसम की भविष्यावाणियों की काफी बड़ी भूमिका होती है। अगर मौसम की भविष्यवाणी न हो तो इन क्षेत्रों का संचालन करना काफी मुश्किल हो जाए। इसलिए जरूरी हो जाता है कि मौसम की पुख्ता व वैज्ञानिक जानकारी रोजाना आम लोगों तक पहुंचे।

दुनियाभर में इसीलिए मौसम विज्ञानी कई तरह के वेदर मॉडल का इस्तेमाल करते हुए मौसम की भविष्यवाणी करते हैं। इन भविष्यवाणी को संख्याओं पर आधारित मौसम का अनुमान कहा जाता है। इसका सरल मतलब यह हुआ कि जब हम मौसम की ताजा दशाओं या वातावरण की ताजा स्थितियों के आधार पर अगले 15 दिनों के मौसम का अनुमान लगाते हैं तो यह दरअसल संख्याओं की गणना पर ही आधारित होता है। लेकिन यह इतना आसान नहीं होता, क्योंकि मौसम की भविष्यवाणियों के सही होने के लिए सबसे बड़ी जरूरत यह होती है कि वैज्ञानिकों को भविष्यवाणी करने के लिए मौसम की ताजा स्थितियों की सटीक जानकारी होनी चाहिए। इन संख्याओं की गणना इतनी भारी होती है कि इसके लिए हमें साधारण नहीं बल्कि सुपर कंप्यूटर की जरूरत होती है।

वेदर मॉडल

मौसम और वातावरण की ताजा जानकारी को बटोरकर वैज्ञानिक इसे अलग-अलग सुपर कंप्यूटर्स में दर्ज करते हैं। इन सुपर कंप्यूटर में पहले से ही भौतिकी के जटिल समीकरण मौजूद होते हैं। यही समीकरण दर्ज की गई मौसमी जानकारियों के साथ गणना करते हैं और यह बताते हैं कि आने वाला मौसम कैसा होगा और आने वाले दिनों में यह किस तरह बदल सकता है। इस गणना को अंजाम देने वाले सुपर कंप्यूटर के इसी जटिल कंप्यूटर प्रोग्राम को वेदर मॉडल कहा जाता है। इसलिए भविष्य के मौसम का सटीक अनुमान लगाने के लिए मौसम विज्ञानियों को ताजा मौसमी दशाओं के साथ एक अच्छा वेदर मॉडल भी चाहिए होता है।

छह हफ्तों में छह घंटे का अनुमान

21वीं सदी में अब कई देशों के पास खुद के वेदर मॉडल हैं जो वहां के वैज्ञानिकों ने विकसित किए हैं या फिर उन्हें वैश्विक सहयोग से तैयार किया गया है। इनमें अमेरिका का ग्लोबल फॉरकास्ट सिस्टम (जीएफएस), उत्तरी अमेरिकन मीसो स्केल मॉडल (एनएएन), भारत में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), यूरोप में यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फॉरकास्ट (ईसीएमडब्ल्यूएफ) प्रमुख वेदर मॉडल हैं। यह वेदर मॉडल रोजाना दुनिया भर के प्रमुख वर्षा, चक्रवात और मौसमी घटनाओं की भविष्यवाणियां जारी करते हैं।

संख्यात्मक गणना के आधार पर मौसम की भविष्यवाणी करना विज्ञान में अन्य शाखाओं के मुकाबले एक नया और उभरता हुआ क्षेत्र है। 20वीं, शताब्दी की शुरूआत तक यह संभावना ही न के बराबर थी कि मौसम का अनुमान लगाया जा सकता है। यह एक नार्वे के भौतिकी वैज्ञानी विलहेल्म बिजर्कनेस नार्वे के प्रयासों के बाद संभव हुआ कि इस गणना के बारे में भी सोचा जाने लगा। उस समय विलहेल्म ने एक शोध पत्र प्रकाशित किया, इस शोध पत्र में उन्होंने बताया कि भौतिकी की कुछ जटिल समीकरणों को हल करके मौसम का अनुमान लगाया जा सकता है।

इसके बाद ल्वुईस फ्राई रिचर्डसन नाम के व्रिटिश गणितज्ञ ने विलहेल्म के काम को आगे बढ़ाया और करीब तीन साल उन्होंने मौसम के पूर्वानुमान के तरीकों को विकसित करने में लगाया। उस समय उन्होंने एक छह घंटे का वेदर फॉरकास्ट विकसित करने के लिए छह हफ्ते का समय लगा दिया। इतना समय लगने के बाद भी उनका फॉरकास्ट गलत हो गया।

रिचर्डसन के अनुमान के मुताबिक उनकी तकनीक इस्तेमाल करके पूरी दुनिया के मौसम की भविष्यवाणी ज्ञात करने के लिए 64 हजार मानव कंप्यूटर की जरूरत थी। रिचर्डसन के इस प्रयास के बाद आने वाले कई दशकों तक संख्यात्मक मौसम अनुमान में किसी तरह की प्रगति नहीं हो पाई।

बीसवीं शताब्दी की शुरूआत में मौसमी दशाओं को रिकॉर्ड करने के लिए कई पहलें की गईं। इसमें एक प्रयास ऐसा था कि गुब्बारों को एक साथ जोड़कर वेदर डाटा इकट्ठा करना और इस उपकरण को रेडियो साउंडेस्ट कहते हैं। इसके साथ संचार की व्यवस्था भी विकसित हुई। जिसके कारण जो भी मौसम की दशाएं रिकॉर्ड होती हैं उनमें एक स्थान से दूसरे स्थान तक ट्रांसमिट करना काफी आसान हो गया। दूसरे विश्व युद्ध के अंत तक पहला इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर विकसित हुआ, जिसके चलते भौतिकी उन सारे जटिल समीकरणों को सरलता से हल करना काफी हो गया जिन्हें हम मानवीय प्रसासों से हल करना लगभग नामुमकिन था।

1945 में इएनआईएसी नाम का एक कंप्यूटर विकसित हुआ इस कंप्यूटर को इस्तेमाल करते हुए जान वान न्यूमेन ने मौसम का अनुमान लगाने के क्षेत्र में काफी काम किया।

समय बीतता गया और फिर एडवर्ड लारेंज, जुले चार्ने जैसे कई शोधकर्ताओं ने गणितिया मॉडल विकसित करने का काम किया। इसकी वजह से हमें संख्यात्मक मौसम अनुमान के क्षेत्र में काफी सफलताएं मिलीं।

ईएनआईएसी कंप्यूटर का इस्तेमाल करके जुले चार्नें के समूह ने अप्रैल 1950 में उत्तरी अमेरिका के लिए पहला सफलता पूर्वक मौसम अनुमान लगाया। और इस काम के लिए उन्हें महज एक से थोड़ा अधिक दिन का समय लगा। 1950 में यूरोप और अमेरिका में रोजाना वेदर फॉरकास्टिंग शुरू की गई। और आने वाले कई दशकों में सुपर कंप्यूटर आने के बाद मौसम की भविष्यवाणी में कंप्यूटर का योगदान और बढ़ और सुधर गया।

इसके अलावा वेदर फॉर कास्ट रिपोर्ट तैयार करना और अधिक आसान हो गया। बाद में सेटेलाइट नेटवर्क से मजबूत होने से मौसम का सटिक अनुमान लगाना संभव हो गया। अभी मौजूदा वक्त अमेरिका में मौजूद सुपर कंप्यूटर करीब 12 क्वड्रिलियन ( एक करोड़ शंख ) गणनाएं प्रति सैकंड कर सकता है।

भविष्यवाणी की सीमाएं

सबसे दिलचस्प बात यह है कि हर एक वेदर मॉडल की मजबूती भी है और साथ ही साथ उसकी अपनी सीमाएं भी हैं। यानी कहा जा सकता है कि कोई भी वेदर मॉडल पूरी तरह से संपूर्ण नहीं है। सबसे अहम बात यह है कि हमें अभी भी यह नहीं मालूम है कि पृथ्वी का वातावरण कैसे विकसित होता है। इसके अलावा जब हम मौसम की दशाओं का रिकॉर्ड करते है उस वक्त भी कई त्रुटियां होती हैं और कई जगहों पर रिकार्ड के लिए डाटा ही नहीं उपलब्ध है।

वेदर मॉडल की एक और बड़ी कमी यह है कि जैसे ही दूर वाले दिनों की भविष्यवाणी की जाती है वैसे ही मॉडल कि त्रुटियां बढ़ जाती हैं, जिसके कारण मौसम की भविष्यवाणियों की सटीकता कम होती जाती है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि यदि कल के लिए कोई मौसम की भविष्यवाणी की गई है तो वह ज्यादा सटीक होगी न कि पांच दिनों के बाद वाली भविष्यवाणी। ऐसे में ज्यादा दूर दिनों वाली मौसम की भविष्वाणी की सटीकता कम होती है।

वेदर मॉडल की एक और सीमाएं यह होती हैं कि इसके तहत दीर्घ मौसमी दशा जैसे ट्रॉपिकल साइक्लोन का अनुमान काफी अच्छे से लगाया जा सकता है लेकिन स्थानीय स्तर पर लघु मौसमी दशाओं जैसे गर्जना के साथ तूफान के अनुमान बहुत अधिक सटीक नहीं होते हैं।

स्थानीय स्तर पर मौजूद वेदर मॉडल इस मामले में कम सटीकता वाला अनुमान बताते हैं। पहाड़ी इलाकों में मौसमी दशाओं का अनुमान भी काफी कम सटीक होता है क्योंकि वहां पर पर्वतों के प्रभाव के कारण मौमस काफी तेज और अप्रत्याशित विकसित हो सकता है। एक तरफ समीकरणों का हल करने के लिए सुपर कंप्यूटर बनाएं लेकिन जलवायु परिवर्तन ने मौसम को बहुत अधिक अस्थिर और अबूझ बना दिया है। जिससे अनुमान लगाना फिर से नई और बड़ी चुनौती बन चुका है।

मिसाल के तौर पर जुलाई 2021 महाराष्ट्र के महाबालेश्वर में 500 मिलीमीटर से अधिक बारिश एक दिन में हुई। वहीं जून 2022 में मासिनराम में एक दिन में 1004 मिलीमीटर वर्षा रिकार्ड की गई। लेकिन मौसम के अनुमान को मौसम विज्ञानी अपनी भविष्यवाणी में इन दोनों को नहीं आंक सके। मानूसन अब भी मौसम विज्ञानियों के लिए सहज ही असहज करने वाला साबित होता रहता है। हालांकि, यह किसानों के िलए काफी उपयोगी है।

21वीं सदी में जलवायु परिवर्तन के सबूत काफी स्पष्टता से दिखाई देते हैं। मसलन, कम दिनों में ही ज्यादा वर्षा होना फिर वर्षा का कम होना ऐसे अंतर स्पष्ट हैं। इसका विपरीत प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ रहा है। मौसम के इस बदलाव में भुक्तभोगी किसान ही बनते हैं। इसकी एक वजह यह है कि बुआई आदि के लिए वे अब भी पंचांग और पारंपरिक ज्ञान का इस्तेमाल करते हैं। मिसाल के तौर पर महाराष्ट्र में 10 जून के आस-पास मृगशिरा नक्षत्र के दौरान किसान बुआई करना पसंद करते हैं। लेकिन कई साल ऐसा होता है जब नक्षत्रों के हिसाब से बारिश नहीं होती है और किसानों को दोबारा बुआई करना पड़ता है। पारंपरिक ज्ञान क्रॉपिंग पैटर्न को चुनने और मिट्टी की नमी को पहचानने के लिए उपयुक्त हो सकता है लेकिन किसी नक्षत्र में बारिश होगी या नहीं इसके लिए उपयुक्त नहीं है। हमें मॉडर्न वेदर मॉडल काफी पहले सूचनाएं दे देते हैं जो किसानों के लिए आने वाले दिनों में और ज्यादा मददगार हो सकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून का व्यवहार और ज्यादा अप्रत्याशित होगा ऐसे में वेदर मॉडल काफी उपयोगी हो सकते हैं और किसानों को इसका इस्तेमाल करना सीखना होगा।

(लेखक स्वतंत्र मौसम विज्ञानी हैं। यूके के रेडिंग यूनिवर्सिटी में मौसम विज्ञान विभाग में शोधार्थी हैं।)