मौसम

जलवायु परिवर्तन से मैदान ही नहीं, पहाड़ भी झुलसे  

धरती के जन्नत का दर्जा पाए जम्मू और कश्मीर से लेकर देवभूमि उत्तराखंड भी लू (हीटवेव) से प्रभावित हो रहे हैं

Anil Ashwani Sharma

देश में सिर्फ मैदानी राज्य ही हीटवेव (लू) से नहीं झुलस रहे हैं। अब तो धरती के जन्नत का दर्जा पाए जम्मू और कश्मीर से लेकर देवभूमि उत्तराखंड भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। एचएनबी केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिक एसपी सती कहते हैं कि वैश्विक तापमान के कारण वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि हो रही है। देहरादून में 22 मई, 2019 को 38.6 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। जबकि स्थानीय मौसम विभाग के आगामी पांच दिन के मौसम पूर्वानुमान की माने तो 28 मई, 2019 को यह तापमान 39 तक जा सकता है। इस मौसम का सबसे गर्म  दिन देहरादून में बीते माह 30 अप्रैल, 2019 को रिकॉर्ड किया गया। उस दिन का तापमान 39.38 डिग्री सेल्सियस रहा। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में हर साल गर्मी के महीनों में लगने वाली भीषण आग से पूरा पहाड़ और हिमालयी हिमनद भी प्रभावित हो रहे हैं। और आग लगने की घटनाओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है।

आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर कृष्णा अच्युतराव कहते हैं कि वास्तव में जलवायु परिवर्तन के कारण ही हीटवेव की भयंकरता तेजी से बढ़ी है। उन्होंने बताया कि 2015 में हीटवेव से हुई दो हजार से अधिक मौतों के लिए जलवायु परिवर्तन पूरी तरह से जिम्मेदार है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन ने ही हीटवेव की गर्मी की लहरों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह कहते हैं, इस संबंध में 2016 में एक शोधपत्र तैयार किया गया। इस शोध पत्र को तैयार करने में मैं सीधे तौर पर जुड़ा हुआ था। इसी शोधपत्र में यह निष्कर्ष निकाला गया। वह बताते हैं कि भारत में हमेशा से हीटवेव होती आई है। भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हीटवेव की तीव्रता, आवृत्ति और अवधि में वृद्धि दर्ज हुई है, जबकि देश के अन्य ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बहुत अधिक नहीं बढ़ी है। इसमें कमी भी नहीं हुई है।

कृष्णा के अनुसार, हीटवेव से मौत के लिए प्रमुख कारक के रूप में एक संभावित कारण यह है कि उच्च तापमान वाली घटनाओं में आर्द्रता बढ़ी है। इससे मानव शरीर पर बहुत ही भयंकर असर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन से आर्द्रता बढ़ने की भी उम्मीद है। वर्तमान में आर्द्रता का अतिरिक्त प्रभाव पूर्वानुमानों से नहीं लिया जाता। क्योंकि भारत में अभी कई अन्य देशों की तरह हीटवेव और आर्द्रता को अलग-अलग रूप से परिभाषित नहीं किया जाता। इसका सीधा मतलब है कि हीटवेव या गंभीर हीटवेव की चेतावनियां प्रभावित क्षेत्र के लोगों के सामने नहीं आ पातीं और वे इसके शिकार हो जाते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण ही हीटवेव के दिनों में वृद्धि (40-65 दिन) हुई है। इस बात के समर्थन में आईआईटी गांधीनगर के प्रोफेसर विमल कुमार कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही भारत में हीटवेव की आवृत्ति में बढ़ोतरी हुई है। इसका कारण बताते हुए विमल कुमार कहते हैं कि इसके पीछे मुख्य कारण है कि भारत में हीटवेव संबंधी प्रारंभिक चेतावनी समय पर नहीं दी जाती। उनका कहना है कि अब भी लोग यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि हीटवेव मानव और जानवरों को मार देती है। हीटवेव की तुलना में बाढ़ और चक्रवात जैसी आपदाओं से निपटने के लिए हम बेहतर रूप से तैयार हैं।

पश्चिम राजस्थान के जाडन गांव की 58 वर्षीय जमना बाई दिहाड़ी मजदूर हैं, उनकी मानें तो वह 16 साल की उम्र से मजदूरी कर रहीं हैं। उन्होंने जीवन में मौसम को लेकर कई बदलाव देखे हैं, पर वह अब कहती हैं कि विगत कुछ सालों में मजूरी के समय लू के थपेड़ों को वह सहन नहीं कर पा रहीं। साथ ही वह कहती हैं कि तेज आंधी ने तो हमारे इलाके की रेतीले टीले को न जाने कहां गायब कर दिया है। अब तो रात भी गर्म होती है। पहले रात में हम 12 बजे के बाद अपने बिस्तारों पर रजाई रखते थे। इस संबंध में जोधपुर उच्च न्यायालय में पर्यावरणीय विषयों पर लगातार जनहित याचिका दायर करने वाले प्रेम सिंह राठौर बताते हैं, पिछले एक दशक से इस इलाके में रेतीले टीले खत्म होते जा रहे हैं। तेज आंधी से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में अब इस इलाके में बस ठोस जमीन बच रही है जिसे ठंडी होने में समय लगता है। जबकि जब रेत थी तो वह जितनी तेजी से गर्म होती थी उतनी ही तेजी से ठंडी भी हो जाती थी।

राजस्थान विश्वविद्यालय में पर्यावरण विभाग के प्रमुख टीआई खान हीटवेव के बढ़ने का कारण वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड के बढ़ने को मानते हैं। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में हीटवेव पर लगातार नजर रखने वाले पर्यावरणविद प्रशांत कुमार कहते हैं कि यह मुख्य कारण है गर्मी बढ़ने का। औसतन तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है।

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन पर इंडियन नेटवर्क फॉर क्लाइमेट चेंज असेसमेंट की रिपोर्ट में चेताया है कि पृथ्वी के औसत तापमान का बढ़ना इसी प्रकार जारी रहा तो आने वाले सालों में भारत को दुष्परिणाम झेलने होंगे। पहाड़, मैदान, रेगिस्तान, दलदल वाले इलाके व पश्चिमी घाट जैसे समृद्ध इलाके ग्लोबल वार्मिंग के कहर का शिकार होंगे और भारत में कृषि, जल, पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता व स्वास्थ्य ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न जटिल समस्याओं से जूझते रहेंगे। मौजूदा तंत्र ऐसे ही चलता रहा तो वर्ष 2030 तक धरती के औसत सतही तापमान में 1.7 से लेकर 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि असंभावी है जो मानव जाति ही नहीं वरन पशु-पक्षियों और अन्य जीवों के लिए बेहद हानिकारक साबित होगी। जलवायु परिवर्तन के अंतराष्ट्रीय पैनल के मुताबिक, विश्व के औसत तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में रुकावट न होने की वजह से जलवायु में कई परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं, जो स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। भारत में हीटवेव से ह्दय एवं सांस संबंधित रोग बढ़ रहे हैं। डेंगू, मलेरिया, डायरिया, चिकनगुनिया, जापानी इंसेफ्लाइटिस, वायरल और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां महामारी का रूप अख्तियार करती जा रही हैं।